वकार रिजवी
9415018288
खुले थे शहर में सौ दर, मगर एक हद के अन्दर
कहां जाता, अगर मैं लौट के, फिर घर नहीं जाता।।
मशहूर शायर वसीम बरेलवी का यह शेर बताता है कि उनकी वुसअते नजऱ आज के हालात से भी बेख़बर न थी जिसमें दिल्ली, मुम्बई, सूरत में मज़दूर अपने अपने घर जाने को बेकऱार हैं जबकि कहते हैं कि मरकज़ और सूबे की सरकार ने उनके लिये सौ दर खोल रखे हैं इसके बावजूद उन्हें दो वक़्त का पेटभर खाना नहीं मिल पा रहा है क्योंकि सरकार जो इन बेघर और बरोजग़ार लोगों को खाना खिला रही हैं उसके लिये राशन कार्ड, बी.पी.एल. कार्ड, लाल कार्ड, पीला कार्ड यानि वह सारे कार्ड दिखाकर ही खाना दे रही हैं जिन्हें एन.पी.आर. से बाहर रखा गया है जिससे आपकी भारतीयता सिद्ध नहीं होती। ऐसे में अगर यह भूखे ही रहें तो कोई ताज्जुब नहीं, सिवाये इसके कि अपने-अपने इलाक़े में अगर वहां के कारपोरेटेर आगे आयें, यह जि़म्मेदारी उठायें, सरकारी मदद जिन लोगों तक पहुंच सकती है उन तक ज़्यादा से ज़्यादा पहुंचाने में मदद करें और जिन लोगों तक सरकारी मदद पहुंचने में दुश्वारी है उनकी मदद कारपोरेटर अपने इलाक़े के साहबे हैसियत जिनके सीने में दिल हो, मदद करने का जज़्बा हो की मदद लेकर ज़रूरतमंदों की मदद करें, भूखों को खाना खिलायें। यह जि़म्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं कि वह भूखों को खाना खिलाये, यह जि़म्मेदारी हम लोगों की भी है कि इस मुश्किल वक़्त में हम अपने देश के साथ खड़े हों, देशवासियों की मदद करें। यह मौक़ा है ग़ैरों को अपना बनाने का। यह अलग बात है कि देश की आधी सम्पत्ति मुम्बई के नौ लोगों के पास, तब भी लोग मुम्बई में भूखे हैं? क्योंकि यह 9 लोग केयर $फंड में तो मोटी रक़म दे रहे हैं जिससे उन्हें इंकम टैक्स में हैवी रिबेट भी मिलेगी और सरकार की मदद भी होगी लेकिन जिनके पास एन.पी.आर. में अपनी नागरिकता साबित करने वाला कोई कार्ड नहीं उनका क्या? क्या वह भूखे रहेंगें? हरगिज़ नहीं अगर हम आप जैसे लोग सिर्फ़ सरकार की तरफ़ न देखें और अपनी जि़म्मेदारी ख़ुद उठाने के लिये आगे आयें।
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