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इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (आइएमटेक) टीबी के लिए ऐसी नई दवा पर शोध कर रहा है जो मेक इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया एंड रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड के लिए हो। आइएमटेक के डायरेक्टर डॉ. अनिल कौल ने बताया कि आइएमटेक के वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं।
यह टीम तीन साल में इस दवा का क्लीनिकल टेस्ट कर लेगी। सीएसआइआर-माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी सेक्टर-39ए में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में डॉ. कौल ने बताया कि यह दुनिया का ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसमें हर तरह की टीबी के इलाज में कारगर दवा विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत जैसे देश में टीबी के लिए नई दवा का विकास और महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यहां अब भी गरीबी, कुपोषण व गंदगी की समस्या है। वैज्ञानिकों के सामने मुख्य चुनौती ऐसी दवा विकसित करना है, जिसे कम से कम दिनों तक खाकर बीमारी से निजात मिले।
पुरानी दवा ज्यादा कारगर नहीं
डॉ. कौल बताते हैं कि जितनी भी बाजार में पुरानी दवा है, वह कारगर नहीं है। मल्टीड्रग रेजिसटेंट ट्यूबरक्यूलोसिस (एमडीआर-टीबी) पर पुरानी दवा काम ही नहीं करती, ऐसे में इस बीमारी से 80 प्रतिशत मौत हो जाती है।
हालांकि इससे पहले 16 साल मेहनत करने के बाद टीबी की दवा (बेदाक्लीन) सिरट्यूरोटम तैयार की गई थी। यह दवा भी एमडीआर के लिए तैयार की है, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं था। इससे टीबी के मरीजों की मौत के आंकड़ों में कमी आई है।
पीजीआइ के डॉक्टरों ने कहा कि पहले 100 मरीजों में 70 लोगों की मौत हो रही थी। डॉ. कौल ने टीबी के लिए जो दवा तैयार की है उसके रिजल्ट्स अच्छे रहे हैं।
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