चन्द्रदर्शन और ग्रहण

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अली संजर नियाज़ी गोण्डवी
आज कल चन्द्रदर्शन पर जो फैसले लिये जा रहे हैं। यह हालात के मददेनजर आने वाले वक्त के लिये शुभ-शगुन नहीं हैं। चन्द्र दर्शन पर ऐसे ही फैसले होते रहे तो त्यौहारों की छुट्टियां खतरे में पड़ जायेंगी। क्योंकि कैलेन्डर, जन्त्ररी में जो तारीखें दर्ज होती हैं। उसी हिसाब से हर सरकारी कार्यालयों में टाइम-टेबिल और तैयारियां फिक्स की जाती हैं। ऐसा न हो की ये छुट्टियां सरकारी छुट्टी की लिस्ट से बाहर हो जाये। इस लिये आप सभी हजरात को तवज्जो दिलाना चाहता हूं।
सूरज या चन्द्र ग्र्रहण की तारीख का ऐलान दो या डेढ़ माह पहले हो जाता है। तो फिर 29 या 30 की तारीख का ऐलान सही वक्त पर क्यों नही हो पाता। ग्रहण का वक्त भी फिक्स वक्त दे दिया जाता है यहां तक कि हिन्दुस्तान में दिखेगा या नहीं इसकी भी तस्वीर पेश कर दी जाती है। अगर हम पेश करें कि 2019 में पहला रोजा 6 मई और ईद 5 जून को होगी तो इसे कोई नहीं मानेगा जबकि अभी कैलेन्डर या जन्त्री नहीं आयी है। जिस तरीके से बकरीद के चाँद का ऐलान हुआ अगर उसी तरह ईद के चाँद का ऐलान हुआ होता तो दो ईदें होना फित्री था। भला हो होनहार उलेमा का कि वक्त रहते सोच समझ कर फैसला ले लिया था।
ग़ौर करने का मुकाम है कि सूरज के हिसाब से एक साल में 365( दिन होते हैं और चाँद के हिसाब से 354 दिन होते हैं। इस लिये हर साल 11 दिन घट जाते हैं। इससे चन्द्र दर्शन के बारे में आसानी से पता लगा लिया जाता है। दूसरी बात यह है कि चन्द्र दर्शन के ऐलान का तरीका यह है कि आसाम से मुम्बई तक की तहवील में लगभग एक घंटे का फर्क है। अगर आसाम में सूरज डूबा तो यूपी वाले आसाम से पता करेंगे कि चांद हुआ या नहीं। अगर यूपी में सूरज डूबा तो मुम्बई वाले पता कर सकते हैं। इससे यह होगा कि दो घंटे के अन्दर चांद दिखा या नहीं यह आईने की तरह साफ हो जायेगा।
तीसरी बात यह है कि हर साल 11 दिन घटते हैं। यानी एक साल में 11 दिन तो 100 साल में 1100 दिन और 1400 साल में 15,400 दिन (43.5 वर्ष) घट गये। यह 43 साल कहां है? यही नहीं जिस वक्त 2800 साल गुजरेगा उस वक्त 85 साल निकल चुके होंगे। फिर 4200 साल पूरा होते ही एक सदी निकल जायेगी। इससे क्या हासिल होगा? अगर हिज्री इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो ईस्वी से भी आगे निकल जायेगी। तब यह सवाल पैदा होगा कि क्या हजरत ईसा (अ0) से पहले हुजूर अकरम (स0) की हिज्रत हुई थी? इससे उम्मते मुसल्लिमा पस व पेश में पड़ जायेगी और सोचेगी उस वक्त हमारे उलमा-ए-कराम क्या कर रहे थे। जिसका खमियाजा आज हम भुगत रहें हैं।
चन्द्र दर्शन के बाबत जो तमाशा हो रहा है इससे ग़ैर कौंमे मजाक उड़ायेंगी। इस टेक्नाॅलोजी के दौर में हर कौमें तरक्की की मंजिलें तय कर रहीं हैं और उम्मते मुसल्लिमा पस्ती की तरफ जा रही है। इस लिये चन्द लाइनें पेश कर दी हैं ताकि उम्मते मुसल्लिमा को आगे चलकर पछताना न पड़े।
एक गुजारिश
उलमा-ए-कराम से गुजारिश है कि कोई चीज बनाने में काफी वक्त लग जाते हैं और बिगड़ने में कोई वक्त नहीं लगता। हुजूर अकरम (स0) ने अपनी उम्मत को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिये कितनी मशक्कतें कीं। यहां तक कि समाजी बाईकाट किया गया, मक्का से हिज्रत करने पर मजबूर किया गया, कूड़े पत्थर फेंके गये, राह में कांटे बिछाये गये, जंगें हुईं, हजरत अमीर हमज़ा की शहादत हुई, हुजूर अकरम (स0) के दन्दान-ए-मुबारक शहीद हुये और क्या-क्या नहीं हुआ। इसके बावजूद हुजूर अकरम (स0) ने एक-एक करके सबको एक प्लेटफार्म पर ला कर खड़ा कर दिया था।
अतः एक बार फिर आपसे गुजारिश है कि कोई चीज बिगड़ने में देर नहीं लगती और बनने में मुद्दतों गुजर जाते हैं। उम्मीद है कि आप इस कथन पर जरूर ग़ौर फरमायेंगे। वह दिन कितना अच्छा था जब बिला-तअस्सुब, बिला-तकब्बुर और बिला-तफरीक महजब व मिल्लत की बयार चल रही थी। इस सम्बन्ध में हजरत अल्लामा इकबाल का एक शैर:
हां दिखा दे वह तसव्वुर फिर सुबुह व शाम तू।
दौड़ पीछे की तरफ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू।।
, (486/32 बब्बूवाली गली, डालीगंज) लखनऊ-226020
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