आरएसटीवी वेज पैरिटी- आज नहीं, कल भी नहीं
सम्मान और निष्पक्षता के साथ समानता। माना जा सकता है कि यह वह भावना थी जिसके साथ राज्यसभा टेलीविजन (आर एस टी वी) प्रबंधन ने विभिन्न विभागों में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के बीच “अनुभव-मजदूरी असमानता” (वेज डिस्पैरिटी) को हटाने के लिए कदम उठाने का निर्णय लिया था, जो कि नए प्रबंधन द्वारा एक अच्छा संकेत भी कहा जा सकता है। लेकिन क्या यह कदम सच में चैनल के नए प्रबंधन सुविचारों का संकेत है या सिर्फ आर एस टी वी में काम कर रहे नाराज़ पेशेवरों को दिग्भ्रमित करने की एक कोशिश।
आरएसटीवी के पेशेवर लंबे समय से अन्यायपूर्ण पारिश्रमिक नीति और तीन से चार वर्षों से अधिक के लिए असमान वेतन वृद्धि के बारे में शिकायत कर रहे थे। हाल ही के दिनों में असंतोष अधिक दिखाई दे रहा था। जाहिर है इस मुद्दे पर आरएसटीवी प्रशासन ने इस सम्बन्ध में उठ रहे एतराजों को देखने के लिए एक अनुभव-पारिश्रमिक समानता (वेज पैरिटी) प्रक्रिया शुरू करने का प्रस्ताव दिया। इस दिशा में अप्रैल 2018 के आरंभ में चैनल प्रशासन ने उन सभी लोगों को व्यक्तिगत प्रतिनिधित्व देने के लिए कहा जो खुद को वेज डिस्पैरिटी से पीड़ित महसूस करते थे। इन कर्मचारियों को यह एक अच्छे अवसर की तरह लगा और 60 से अधिक कर्मचारियों ने अपना प्रतिनिधित्व प्रबंधन को भेज दिया। यहाँ तक तो सब सही था पर अचानक ये सारी प्रक्रिया एक अजब-गज़ब दिशा में चली गयी।
वास्तव में क्या हुआ था कि वेज पैरिटी प्रक्रिया शुरू करने के दौरान ही आरएसटीवी ने पूर्णकालिक मुख्य संपादक की नियुक्ति हेतु विज्ञापन जारी कर दिया। लम्बी चली प्रक्रिया के बाद राहुल महाजन की नियुक्ति चैनल में सर्वोच्च संपादकीय पद पर हुई। राहुल महाजन का चुनाव भी खासा विवादस्पद रहा जिसके बारे में मीडिया में काफी चर्चा भी हुयी। इस दौरान ” वेज पैरिटी” भी कहीं फाइलों में दब गयी। मुख्य संपादक की नियुक्ति के साथ ही चैनल में विभिन्न पदों पर ताजा भर्ती के लिए भी विज्ञापन जारी कर दिया गया। कुछ 43 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया जिसमें कार्यकारी संपादक, कार्यकारी निर्माता और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता भी शामिल हैं।
अनुभव-मजदूरी समानता प्रक्रिया का पूरा आधार पेशेवरों के अनुभव और वेतन में समानता लाने के लिए था। कर्मचारियों का मुख्य मुद्दा यह था कि पिछले तीन-चार साल के वेतन वृद्धि चैनल के कर्ता-धर्ताओं की चमचागिरी करने वाले या सिफारिशी लोगों को मिल रहा था। कम अनुभव वाले लोगों को अधिक वेतन वृद्धि दी गई थी। उनका ये भी आरोप था की कम अनुभव वाले कुछ लोगों को ऊंची नौकरी पर लिया गया था और 2011 के आरंभ में लगे पेशेवरों और को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था। कई ने शिकायत की कि उन्हें कम वृद्धि दी गयी थी जबकि बॉसेस के करीबी लोगों ने ज़्यादा वेतन बढ़ोतरी प्राप्त की थी।
कुछ मामलों का उल्लेख नीचे किया गया है। कृपया ध्यान दें कि किसी भी पेशेवर का नाम से उल्लेख व्यक्तिगत कारणों से नहीं किया गया है। विशिष्ट मामले को खबर की तथ्यपरकता के आधार पर ही उल्लेख किया जा रहा है।
एक बहुत ही वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश सुमन ने जून 2011 में सहायक संपादक के रूप में @रु 74000 / – प्रति माह के रूप में पारी शुरू की। सात साल बाद अखिलेश सहायक संपादक के एक ही पद पर हैं, हालांकि वह अब मासिक पारिश्रमिक में 37% लाभ के साथ @ रु 16373 /- पा रहे हैं। वहीँ विशाल दहिया ने नवंबर 2011 में प्रति माह रु.53000 /- पर ही सहायक संपादक के रूप में अपनी पारी शुरू की। दहिया को फरवरी 2015 में न सिर्फ वरिष्ठ निर्माता का अनुबंध नहीं मिला बल्कि वह अखिलेश सुमन की तुलना में कम समय में मासिक वेतन में लगभग 46% की वृद्धि के साथ प्रति माह @ रु 98625 /- तक भी पहुँच गए। मीडिया में चल रही रिपोर्ट के अनुसार विशाल कार्यकारी निर्माता (इनपुट) के पद के भी प्रबल दावेदार हैं।
पक्षपात का एक और उदाहरण अरफा खानम के मामले में देखा जा सकता है जो अगस्त 2011 में वरिष्ठ एंकर @ 100000 / – प्रति माह के रूप में आरएसटीवी में शामिल हुयी थी। लेकिन 2014 में आरफा आरएसटीवी के साथ अंशकालिक अनुबंध में आ गयी, लेकिन उसकी आय काम होने बजाय वास्तव में बढ़ गयी। आरफा आरएसटीवी के साथ एक अंशकालिक एंकर बन गयी और प्रत्येक महीने @ 4500 / – प्रति असाइनमेंट पर कम से कम 20 एंकरिंग असाइनमेंट सुनिश्चित कर दिए गए। यह प्रति माह रु90000 /- रुपये तक बनता था। हालांकि इस समझौते के बाद प्रत्येक महीने उन्हें अतिरिक्त चार से पांच एंकरिंग असाइनमेंट दिए जाते थे। और अंशकालिक अनुबंध के बावजूद आरफा ने अपने पहले के मासिक वेतन से अधिक पारिश्रमिक लेना शुरू कर दिया।
कुछ ऐसा हे नीलू व्यास थॉमस का भी मामला है। अक्टूबर 2011 में नीलू आरएसटीवी में परामर्शदाता (प्रोमो और फिलर्स) के रूप में शामिल हुयी, तनख्वाह प्रति माह रु96000 /-। वर्तमान में वह अब रु1,47,865 / प्रति माह पा रही है। यह केवल 34% की वृद्धि है लेकिन उसे एसोसिएट कार्यकारी निर्माता का एक उन्नत अनुबंध दिया गया है।
ऐसे कई मामले को वेज पैरिटी प्रक्रिया के द्वारा सही करने के इरादे का मौजूदा प्रबंदजान दवा कर रहा था। हालांकि 43 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले नवीनतम विज्ञापन से संकेत मिलता है कि पूरी मजदूरी समानता कहानी एक ढकोसला थी। कहा जा सकता है कि ये पूरी कहानी किसी भी वास्तविक परिणाम प्राप्त करने के की दृष्टि से नहीं बल्कि मौजूदा पेशेवरों में फैली नाराज़गी को दबाने और उनका ध्या बताने मात्र के लिए किय गया था।
नवीनतम विज्ञापन में विज्ञापित तीन पदों सहित शीर्ष चार संपादकीय पदों में कार्य अनुभव की आवश्यकता समान है। लेकिन वरिष्ठता, जिम्मेदारी और पदानुक्रम के मामले में काफी अंतर हैं।
राहुल महाजन को पहले ही आरएसटीवी के मुख्या संपादक नियुक्त कर दिया गया है। अब कार्यकारी संपादक, कार्यकारी निर्माता (इनपुट) और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता (इनपुट) के तीन अन्य पद बाकि हैं। शीर्ष संपादकीय पद के लिए अनुभव मानदंड उसके नीचे के पदों की तुलना में कहीं अधिक आसान है। निचले पदों के लिए अनिवार्य अनुभव आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से कठिन बना दिया गया है। न तो मुख्या संपादक और न ही कार्यकारी संपादक को संसदीय समाचारों को संभालने में कोई अनुभव होना आवश्यक है। लेकिन निचले पदों के लिए कार्यकारी निर्माता (इनपुट) और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता (इनपुट) को क्रमशः संसद समाचार रिपोर्टिंग में 5 साल और 4 साल का अनुभव होना चाहिए। और ये ही दिचस्प है की सभी संपादकीय पदों में से भी केवल कार्यकारी निर्माता (इनपुट) और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता (इनपुट) को संसदीय रिपोर्टिंग अनुभव की आवश्यकता है।
एक और रोचक तथ्य यह भी है कि शीर्ष संपादकीय पद, कार्यकारी संपादक और उससे निचले कार्यकारी निर्माता (इनपुट) और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता (इनपुट) के निचले स्तर के असाइनमेंट डेस्क पदों के उम्मीदवारों, सभी को 15 वर्ष के समग्र अनुभव की आवश्यकता है।
और मामला सिर्फ यहीं पर नहीं रुकता है। चार पदों के मासिक वेतन में अंतर भी ध्यान देने योग्य है। जबकि मुख्य संपादक को मासिक रूप से रु 240000/- मिलते हैं, कार्यकारी सम्पदाक को रुपये 200000/- वेतन मिलेगा लेकिन बराबर अनुभव के साथ कार्यकारी निर्माता (इनपुट) और को रु150000/- और एसोसिएट कार्यकारी निर्माता (इनपुट) को प्रति माह केवल रु1,25000/- मिलेगा।
अब आरएसटीवी प्रशासन द्वारा शुरू किए गए वेज पैरिटी प्रक्रिया पर वापस लौटते हैं। नयी भर्ती के पूरा होते वेज पैरिटी की ये कहानी पूरी तरह ढेर हो जाएगी। क्योंकि सबसे ऊपर के चार पदों में ही अनुभव-वेतन की ऐसी भरी असमानता है की नए आरएसटीवी प्रबंधन के दावों की कलई खुद ही उतर जाएगी।
और उन लोगों के बारे में जो पहले से ही 15 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ आरएसटीवी की संपादकीय टीम में काम कर रहे हैं। क्या उन्हें मुख्य संपादक से ज़्यादा नहीं तो कम से कम बराबर वेतन वृद्धि का हक़दार माना जाएगा?
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