BRIJENDRA BAHADUR MAURYA….
कलियुग की सावित्री श्रीमती परबीना देवी ने तीस साल बाद लड़कर, तीस साल पहले से दिलाई अपने सत्यवान भारतीय-सेना के रिक्रूट शमशेर सिंह को विकलांगता पेंशन
कलयुग की सावित्री ने साबित की महिला-शक्ति की उपादेयता: जनरल सेक्रेटरी ए.ऍफ़.टी.बार.
सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. के माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय ले.जनरल ज्ञान भूषण की खंड-पीठ ने एक्स रिक्रूट शमशेर सिंह बनाम बनाम भारत सरकार एवं अन्य, वाद सं. 249/2016, के मामले में तीस साल बाद 50% डिसेबिलिटी पेंशन, 9% ब्याज के साथ, 30 साल पहले से देते हुए भारत सरकार को आदेशित किया कि याची का दुबारा मेडिकल कराया जाय यदि, उसकी विकलांगता में बढ़ोत्तरी का मामला सामने आता है तो उसे बढ़ी हुई दर से विकलांगता पेंशन भारत सरकार दे, मामले में विशेष बात यह थी की याची खुद न्यायालय में अपने केश की पैरवी नहीं कर सकता था इसलिए मुकदमा उसकी पत्नी श्रीमती परबीना देवी लड़ रही थीं. प्रकरण यह था कि पिथौरागढ़, उत्तराखंड निवासी शमशेर सिंह 29.05.1985 को ई.एम्.ई. कोर में भर्ती हुआ था, दो वर्ष की नौकरी के बाद सेना के उच्चाधिकारियों ने शमशेर सिंह को सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी का शिकार बताकर 25.05.1987 को बगैर डिसेबिलिटी पेंशन दिए सेना से निष्कासित कर दिया और, भारत सरकार ने निकालने के कारण को उचित ठहराने के लिए अपने मनमाने आदेश में यह कहा कि, न तो यह बीमारी सेना की नौकरी के दौरान हुई और न ही सेना की नौकरी की परिस्थितियों की वजह से हुई इसलिए याची दिव्यांगता-पेंशन पाने का हकदार नहीं है. याची अक्षम था इसलिए पत्नी परवीना ने अपने पति की इस जंग में कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी ही नहीं रहीं अपितु हर जगह भारत सरकार और थल-सेनाध्यक्ष से मजबूती से लड़ी और उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ पेंशन देने वाली भारत सरकार की सर्वोच्च सरकारी-संस्थान पी.सी.डी.ए.(पेंशन) इलाहाबाद से विकलांगता पेंशन देने की याचना की लेकिन, उसने मनमाने तरीके से इसे खारिज कर दिया; जिसके खिलाफ याची ने थल-सेनाध्यक्ष के सामने अपील की लेकिन थलसेनाध्यक्ष ने मनमाना रवैया अपनाते हुए याची की अपील को 30.05.1988 को खारिज कर दिया और कहा कि हमारे मातहत अधिकारियों का निर्णय सही है और उन्होंने आपकी पेंशन पर निर्णय सही तरीके से लिया है उसके बाद प्रार्थी बैठ गया क्योंकि, उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. लेकिन कलयुग की सावित्री श्रीमती परबीना देवी ने विकलांग पति की जंग को थमने नहीं दिया और तीस साल बाद याची की मुलाकात अधिवक्ता डी.एस.तिवारी से हुई और उन्होंने याची को मुकदमा दायर करने के लिए प्रेरित किया और अपनी तरफ से हर सम्भव सहायता का आश्वासन भी दिया फलस्वरूप; सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. लखनऊ, में विकलांगता पेंशन के लिय मुकदमा दायर हुआ चूँकि मुकदमा लगभग तीस वर्ष बाद दायर किया गया था इसलिए भारत सरकार कालबाधित मुकदमे की आड़ में याची के पेंशन-सम्बन्धी मामले को कोर्ट द्वारा न सुनने पर जोरदार बहस की लेकिन कोर्ट ने सरकार को फटकारते हुए कहा कि विकलांगता जैसे गम्भीर मामले में सरकार की इस दलील का कोई स्थान नहीं है इसलिए कोर्ट इसे ख़ारिज करती है और 21 सितम्बर 2016 को काल-बाधा सम्बन्धी विवाद याची के पक्ष में निर्णीत करते हुए सरकार को आदेशित किया मामला गुण-दोष के आधार पर तय होगा लिहाजा अपना पक्ष कोर्ट के सामने सरकार रखे और बताये कि याची को पेंशन न दिए जाने का उसके पास क्या ठोस आधार क्या था, इस फैसले से सरकार को करारा झटका लगा. सेनाकोर्ट ए.ऍफ़.टी. के माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय ले.जनरल ज्ञान भूषण की खंड-पीठ ने भारत सरकार को याची शमशेर सिंह से सम्बन्धित सारे दस्तावेज न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने को कहा और, दस्तावेजों को देखकर कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि याची जिस समय सेना में भर्ती हुआ था उस समय उसे कोई बीमारी नहीं थी औ,र भारत सरका के दस्तावेजों में कही भी मेडिकल आफिसर ने कोई नोट नहीं दर्ज किया है याची सिजोफ्रेनिया का शिकार है और भारत सरकार ने कोई भी दस्तावेज इस आशय का नहीं प्रस्तुत किया है जिससे यह साबित होता हो कि याची की बीमारी भर्ती के समय थी, यदि सरकार के पास कोई लिखित दस्तावेजी-साक्ष्य नहीं है तो यह माना जाएगा की याची की बीमारी सेना की नौकरी के दौरान और सेना की नौकरी की परिस्थितियों के कारण हुई है और भारत सरकार द्वारा विकलांगता-पेंशन देने से इनकार करना माननीय उच्चतम-न्यायलय द्वारा धर्मवीर सिंह बनाम भारत सरकार, सुकविंदर सिंह बनाम भारत सरकार, भारत सरकार बनाम अंगद सिंह, वीरपाल सिंह बनाम भारत सरकार है, और भारत सरकार बनाम के.जे.एस.बत्तर का खुला उल्लंघन है जबकि यह व्यवस्थाएं याची की विकलांगता पेंशन के पक्ष में हैं, भारत-सरकार एवं थल-सेनाध्यक्ष ने मनमाने तरीके से नहीं माना. सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय ले.जनरल ज्ञान भूषण की खंड-पीठ ने भारत सरकार और थल-सेनाध्यक्ष द्वारा पारित आदेश को ख़ारिज करते हुए आदेशित किया याची एक्स रिक्रूट शमशेर सिंह को 50% विकलांगता-पेंशन 9% ब्याज के साथ, सेना से निकाले जाने की तिथि से दे और उसका पुनः मेडिकल कराकर पेंशान का पुनर्निर्धारण करे यदि विकलांगता बढ़ी हुई पाई जाती है तो उसे बढ़ी हुई दर पर विकलांगता-पेंशन भारत-सरकार अदा करें. ए.ऍफ़.टी बार के जनरल सेक्रेटरी को निर्णय की प्रतिलिप रजिस्ट्री द्वारा उपलब्ध कराई गयी जिसके बारें उन्होंने मीडिया को बताया कि विकलांगत-पेंशन के मामलों में इस निर्णय का बहुत महत्व होगा क्योकि; तीस साल बाद सेना कोर्ट के सामने न्याय की याचना करने वाले याची को न्यायलय ने तीस साल पहले से पेंशन देने का आदेश पारित किया और, इस मामले में अधिवक्ता डी.एस.तिवारी ने मानवीय रुख अपनाते हुए याची को हर सम्भव मदद न्याय दिलाने में की जो ‘सैनिक-मित्र’ न्यायिक सहायता की एक मिसाल है, जनरल सेक्रेटरी ने कहा कि निर्णय सेना के मनोविद्यान को परिवर्तित करने में सहायक होगा और इसका लाभ हमारे अन्य पीड़ित सैनिक उठा सकेंगें और ऐसे निर्णय गतिशील सामाजिक सन्दर्भों को परिभाषित करते हैं और ‘कतार के अंतिम पायदान पर खड़े पीड़ित-सिपाही’ के लिए उम्मीदों को जन्म देते हैं और भविष्य में इसका लाभ अन्य लोगों को भी मिलने वाला है.