नई दिल्ली: लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति न होने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सशक्त कानून न बनाये जाने तथा किसानों की समस्याओं के निराकरण के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल नहीं होने से क्षुब्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा कि वह इन मांगों को लेकर दिल्ली में फिर से जन आंदोलन करेंगे।
पीएम मोदी को लिखा पत्र
हजारे ने इस सबंध में प्रधानमंत्री को बाकायदा पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरु किए गए अपने पूर्व के जनआंदोलन तथा इस आंदोलन को देखते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून लाए जाने के आश्वासनों का जिक्र करते हुए कहा कि तत्कालीन सरकार ने और उसके बाद आई नई सरकार ने अपने कार्यकाल के तीन साल बीत जाने के बाद भी इस बारे में कोई संतोषजनक कदम नहीं उठाया जिससे व्यथित होकर उन्हें फिर से जनआंदालेन शुुरू करने का फैसला लेना पड़ा है। पत्र में हजारे ने लिखा है कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखते हुए देश की जनता ने अगस्त 2011 में दिल्ली के रामलिला मैदान पर और पूरे देशभर में ऐतिहासिक आंदोलन की शुरूआत की थी।
नई सरकार से जनता को थी उम्मीदें
देश भर में गांव-गांव, शहर-शहर के लाखों की संख्या में लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया क्योंकी भ्रष्टाचार के कारण आम जनता का जीवन जीना मुश्किल हो रहा था। जनशक्ति के इस आंदोलन के कारण तात्कालिक सरकार के शासन में लोकपाल, लोकायुक्त का कानून 17 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में और 18 दिसंबर, 2013 को लोकसभा में पारित हो गया। उसके बाद एक जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने इसपर हस्ताक्षर भी कर दिए थे। उसके बाद 26 मई, 2014 को नयी सरकार सत्ता में आयी। नई सरकार से जनता को बहुत उम्मीदें थीं लेकिन यह पूरी नहीं हुई।
कानून पर अमल ना करना संसद और राष्ट्रपती का अपमान
हजारे ने आगे लिखा कि सत्ता में आने से पहले आपने देश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की प्राथमिकता का आश्वासन दिया था। जिस राज्यों में आपकी पार्टी की सरकारे हैं वहां भी नये कानून के तहत लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए गये हैं। इससे यह स्पष्ट होता है की आप के पास लोकपाल, लोकायुक्त कानून पर अमल करने के लिये इच्छाशक्ति का अभाव है। आपकी कथनी और करनी में अंतर आ गया है। फिर कैसे होगा भ्रष्टाचारमुक्त भारत? जिस संसद ने देश के लाखों लोगों की मांग पर यह कानून बनवाया और राष्ट्रपती ने हस्ताक्षर भी कर दिए फिर भी उस कानून पर अमल ना करना, क्या यह जनता, संसद और राष्ट्रपती का अपमान नहीं है।
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