.हंगामा क्यों है बरपा!
सय्यद काजि़म रज़ा शकील
अकबर इलाहाबादी की लिखी और गुलाम अली की गायी गजल, ‘हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली हैÓ आज देश के माहौल पर मौजू बैठती है। इसमें शायर कहता है कि डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है। आज देश में हंगामा बरपा है, लेकिन यह हंगामा वर्ग विशेष के लोगों को निशाना बनाने को लेकर बरपा है। हमारे मुल्क का सबसे बदतरीन वक्त वह था जब मुल्क का बंटवारा हुआ, और कुछ मौका व मफादपरस्तों की वजह से पाकिस्तान नाम का मुल्क बना। पाकिस्तान की बुनियाद यह कह कर डाली गयी कि मुसलमान अलग मुल्क चाहता है, जबकि मुल्क के मुसलमानों की बड़ी आबादी ने पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया। हिन्दुस्तान की बड़ी आबादी ने मुसलमानों के फैसले का स्वागत करते हुए उनका साथ दिया। उस फैसले का परिणाम दुनिया ने देखा कि किस तरह से पाकिस्तान के हालात दिन-ब-दिन खराब होते गये, जबकि उसके उलट हिन्दुस्तान अपने संविधान की बदौलत रोज तरक्की की नई राहें तय कर रहा है। भारतीय संविधान ने देश को विविध धर्मों का एक ऐसा गुलदस्ता बना दिया, जिससे दुनिया का हर देश को हिन्दुस्तान से रश्क करता है।
यह बात अलग रही कि इन सबके बीच सियासत अपना रंग दिखाती रही। कभी गुजरात, कभी मालेगांव , कभी हाशिमपुरा तो कभी मलियाना, कभी बाटला हाउस, कभी बाबरी मस्जिद समेत कई मसले पैदा होते रहे लेकिन मुल्क में एक खास मज़हब के लोगों के खिलाफ इतनी नफरत नहीं देखी गयी, जितनी अब दिखने लगी है। शायद पहले वजह यह रही कि सरकार नफरत फैलाने वाली ताकतों के खिलाफ चाहे दिखावे की खातिर ही सही सख्त रुख अपनाती थीं। लेकिन इधर कुछ सालों से इन नफरतों को हुकूमत की ख़ामोशी से शेल्टर मिला और नफऱतें इतनी बढ़ी की हंगामा बरपा होने लगा। कौन सा हंगामा! वह हंगामा जिसमें लोगों की भीड़ हंगामा करते हुए आती है और एक खास मज़हब या वर्ग-समुदाय के लोगों को निशाना बना कर चली जाती है। यह नफरत का बीज बहुत तेजी से मजबूत पेड़ का रूप ले रहा है। बात चाहे ओला ड्राइवर की हो या एयरटेल स्टाफ की या फिर पासपोर्ट की। सारे प्रकरणों में एक खास मजहब के लोगों को निशाना बनाया गया। इसमें अगर थोड़ा भी सरकार ने भीड़ तंत्र के खिलाफ और कंपनी ने मजहब की बुनियाद पर स्टाफ को बदलने की मांग खारिज कर दी होती तो शायद हंगामा इतना बरपा न होता।
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