सेना द्वारा सहायको का दुरूपयोगसहायक सेना के अफसरो को मददगार या साथी के रूप में दिये जाते है उनके रोजमर्रा के कामो में मदद पहुँचाने के लिए जब वे ऑपरेशन में घर से बाहर रहते है। पर बहुत दिनो से यह सुनने में आ रहा है अफसर सहायको को घर ले जाकर घर का काम कराते है जिसके लिए वह नही बने है। पर इधर जबकि सूचना टेक्नोलजी और सोशल मीडिया बढ़ गया है तबसे शिकायत आम होने लगी है। पिछले कुछ हफ्तो में दो विडियो सोशल मीडिया पर आये। पहला स्टिंग वीडियो है जो एक न्यूज वेबसाइड द्वारा प्रकाशित किया गया है पिछले महीने। इसमें लान्स नायक राय मेथ्यू शिकायत कर रहा है अपने सुपीरियर ऑफिसर का जो जबरदस्ती घर का काम काज करता है। दूसरे वीडियो में जो वायरल हो गया है सिन्धो जोगीदास आरोप लगा रहा है कुछ अधिकारी जवानो के साथ गुलामो का व्यवहार करते है।लान्स नायक मथ्यू पिछले हफ्ते देवलाली कैन्टोनमेन्ट में फाँसी पर लटके हुए पाया गया। आर्मी ने जाँच शुरू करते हुए कहा सम्भव है वह अपने सुपीरियर की छवि गिराने के अपराध बोध से प्रभावित हुआ हो जिसमें वह अन्जान आदमी को गलत बाते बता रहा था। सेना ने जोगीदास की शिकायत को आधारहीन बता कर खारिज कर दिया बताया वह कभी भी सहायक के तौर पर नही लगाया गया था।सेना का कहना है अधिकारी को सहायक उनके साथी के रूप में मिलते है जो मददगार की तरह युद्ध के समय में काम करते है। पर लोगो का कहना है ऐसे प्रावधानो का गलत इस्तेमाल होता है जो सिपाही को अपमानित करता है। भारतीय सेना में सहायक सिस्टम बहुत पुराना है। औपनिवेशिक शासन में अधिकारियो को नौकरो की फौज रखने की परम्परा थी। 19 वीं शताब्दी की एक लिस्ट मे जो ऑफिशियल है उसमें ऐसे नौकरो की संख्या 39 है युद्ध के समय उन्हें इन लोगो के मदद की जरूरत होती है। उन्होने इससे बैटमैन की अवधारणा विकसित की जो बैटिलमैन का छोटा फार्म है। इसमें नौजवान सिपाही एक अधिकारी की मदद करता था। उसके कुछ रोजमर्रा के कामो में। तबसे इस प्रैक्टिस को सेना के एक आदेश द्वारा कोडीफाई कर दिया गया और दूसरे पॉलसी लेटर्स द्वारा सहायक सिस्टम में। सहायको की संख्या के बारे में कोई ऑफिशिल लेटर नही है पर अनुमान है सेना में 50 हजार सहायक है।सहायक पाने के लिए कौन लोग अधिकारी है इसका ब्यौरा इस प्रकार है। सहायक अधिकारी और जूनियर कमिशन्ड ऑफिसर को अधिकृत किये जाते है जो यूनिट और हेडक्वार्टस के सेवा में काम कर रहे है वार इस्टैब्लिशमेन्ट पर मतलब वे यूनिट जो युद्ध के लिए गतिशील है। कितने सहायक किसको अधिकृत है यह इस तरह है। एक सहायक फिल्ड ऑफिसर और उसके ऊपर, एक सहायक दो अधिकारियो के बीच कैप्टन रैंक के और उसके नीचे, एक सहायक हर सूबेदार को, एक सहायक पर जूनियर कमिशन्ड अधिकारी सूबेदार रैंक का और उसके नीचे। यह भी नोट करने की बात है भारतीय नेवी और एयर फोर्स में अधिकारियो के लिए कोई सहायक सिस्टम नही है।सहायक जब जॉब पर आते है तब उनसे किन कामो की अपेक्षा की जाती है। आर्मी आदेश के अनुसार सहायको के लिए नीचे लिखे काम निर्धारित है। नीजि रूप से सुरक्षित रखना और सुरक्षा देना, टेलीफोन सुनना, संदेश देना, ऑपरेशन के समय में, ट्रेनिंग के समय में, इक्सरसाइज के समय में और शांति के समय में, हथियारो के रख रखाव, साजो समान का रख रखाव जो जूनियर ऑफिसर और ऑफिसर को मिले है सेना की परम्परा और उसके इस्तेमाल के लिहाज से मदद देना खाई खोदने में, मामूली निर्माण में, आश्रय निर्माण में युद्ध के समय मे, ट्रेनिंग या इक्सरसाइज के समय में या जब अधिकारी योजना बनाने में मशगूल हो, गश्त और स्वतन्त्र मिशन के समय सहायता देना, रेडियो सेट ढोना और चलाना, नक्शे और दूसरे साजो समान ढोना, ऑपरेशन के समय, ट्रेनिंग की संगठन के समय और बाहर इक्सरसाइज के समय।सहायक का कोई कैडर नही है इसलिए रसोइया, स्वीपर, नाई, हाउसकीपर की तरह उनकी भर्ती नही होती है सेना में ऐसा कोई ट्रेड नही है जिसे सहायक कहा जाता है। आम प्रैक्टिस है यूनिट में नये सिपाहियो को लगाया जाता है। सहायक की ड्यूटी में बारी-बारी से इन्हें लगाते रहते है। यह एच्छिक है अगर कोई सहायक का काम करने के लिए तैयार नही है तो उसे छोड़ दिया जाता है। सहायक को अधिकारी या उनकी फैमली द्वारा मिनियल कॉम नही कराया जा सकता है। पर मीडिया द्वारा कई बार यह देखने को मिला है कि सहायक अधिकारियो के घरो पर काम करने के लिए लगाया गया है। सहायक देखे गये है कार साफ करते हुए, उनके कुत्तो को टहलाते हुए। गलत इस्तेमाल के लिए कई बार आरोप लगाये गये पर कोई पुख्ता सुबूत या डाटा नही है। आर्मी का कहना है सहायक अधिकारियो के लिए सहायक के तौर पर है घर का काम वे अधिकारी के सम्मानवश करते रहे होगें। तकनीकी रूप से उनसे घर का काम करने की आशा नही की जाती है। वर्तमान आर्मी चीफ रावत ने इनॉग्रल आर्मी डे प्रेस कॉफ्रेंस में जनवरी में यही बाते दोहराई थी। सहायक का मुद्दा समय-समय लोगो का ध्यान खींचता रहा है पर सबसे मजबूत आलोचना इसकी 2008 में आई जब पार्लियामेन्ट्री स्टेंडिंग कमेटी ऑन डिफेंस शर्मनाक व्यवहार पर सख्त रूख लिया। कहा इसके लिए स्वतंत्र भारत में कोई जगह नही रहनी चाहिए। कमेटी ने डिफेंस मंत्रालय को आदेश दिया अभी से यह प्रैक्टिस खत्म की जाए जो जवानो के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाती है। पर कमेटी की सिफारिश सरकार पर बाध्यकारी नही था इसलिए कई बदलाव नही लाया गया। हालात ज्यों के त्यों बने रहे। सोशल मीडिया आने से आसान हो गया है ऐसी शिकायतो को लोगो की निगाह में लाना। सिविल लाइफ और मिलिट्री कैन्टोनमेन्ट के बीच अपारदर्शिता घटी है सामाजिक नर्म्स में बदलाव आने से। इसलिए मीडिया मे इन बातो पर ध्यान बढा है।सेना जवाब में हमेशा दोहराती रहती है आदेश और गाइड लाइन सहायक के उपयोग के बारे में अफसरो से सेना सुनिश्चित करने के लिए कहती रहती है कि एक सिपाही अनाधिकृत रूप से काम में न लगाया जाए। यह भी प्रस्तावित किया गया है कि अलड़ाकू लोग हायर किये जाए अस्थाई रूप से प्रमुख शांत स्टेशनो पर लगाने के लिए ऐसे कामो को करने के लिए। पहले यह प्रस्ताव 2012 में लाया गया। हाल में इसे फिर लाया गया है उम्मीद बनती है सहायक के रूप मे लगाये गये 25 हजार से ज्यादा सिपाही मुक्त हो जायेगे। अधिकारी जो मैदानी क्षेत्र में है अधिकृत रहेंगे सहायक पाने के लिए और वे पाते रहेगें। एशियन मुल्क में कुछ ही देश है जहाँ सहायक सिस्टम से मिलती जुलती व्यवस्था है। चीन के पीपल्स लीब्रेशन आर्मी में इस तरह की कोई प्रथा नही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेना मे अलड़ाकू सिविल आर्डर्ली है अधिकारियो की मदद के लिए।
सेना द्वारा सहायको का दुरूपयोग-शैलेंद्र नाथ वर्मा
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