लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

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नेशनल प्रोग्रेसिव फोरम, हील, परवाज़ और अली कांग्रेस जैसी तमाम तंज़ीमों का अब होगा इम्तेहान
”लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो हैÓÓ फ़ै ज़ का यह शेर आज हमें हौसला देता है कि पांच साल का वक्फ़ ़ा बहुत लम्बा सही लेकिन शाम ही तो है कभी तो सहर होगी और अब सहर होने का वक़्त आ गया, वैसे क़ुदरत का निज़ाम भी है कि जो चीज़ आसमान की तरफ़ उछाली जाती है वह कितनी ही उंचाई पर जाये लेकिन उसे फि र नीचे आना होता है बशर्ते नीचे आते वक़्त कोई और सहारा न बन जाये। ऐसे ही किसी सहारे को ख़्त्म करने के लिये इस वक़्त नेशनल प्रोग्रेसिव फ ोरम, ए.एम.यू. ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन, हील, परवाज़ और अली कांग्रेस जैसी तमाम तंज़ीमों की ज़रूरत है जो बचे हुये तीन-चार महीनें में मुस्लिम बाहुल इलाक़ें मुस्लिम वोट ज़ाया नहीं होने दें, ज़ाया ही नहीं ज़्यादा से ज़्यादा वोटिंग कराने में भी बेदारी पैदा करें जिससे इस मुल्क में बनने वाली सरकार में हमारी भी हिस्सेदारी बढ़चढ़ कर हो।
यह तय है जो भी हुकूमत मरकज़ में बरसरे इक़तेदार होगी उसका रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जायेगा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने आपस में मिलकर मौजूदा ग़म की लम्बी शाम को अब ख़त्म करने की यक़ीनदहानी करा दी है, कांग्रेस का इन दोनों से अलग रहना भी भाजपा के लिये नुकसानदेह ही साबित होगा सिवाये इसके कि मुस्लिम अकसरियत वाले इला$के में अगर कांग्रेस भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार देती है तो यक़ीनीतौर पर मुस्लिम वोट तक़सीम हो जायेगा हालांकि कल इस बाबत भरी महफिल में सलमान खुर्शीद साहब से दरख्व़ास्त की थी कि आप मुस्लिम अक्सरियत वाले इलाके में मुस्लिम उम्मीदवार न खड़े करें लेकिन शायद यह मुमकिन न हो सके। ऐसे में ख़ुसूसन इन जगहों पर इन तमाम तंज़ीमों का रोल अहम हो जाता है कि वह इनके बीच यह बेदारी पैदा करें कि इस वक़्त किसी एक के साथ जाने में ही हम सब की भलाई है और किसी एक को चुनने का फ़ ामूर्ला, सब तंज़ीमें मिलकर बना लें तो ही इसका हल निकल सकता है, अगर अच्छा उम्मीदवार तलाश करेंगें तो कौन किसकी नजऱ में कितना अच्छा है यह उसकी नजऱों में कैद है और इसपर इत्तेहाद मुमकिन नहीं। एक आसान तजवीज़ यह ज़रूर हो सकती है कि कांग्रेस और सपा बसपा में जो अपने मुस्लिम उम्मीदवार का सबसे पहले एलान करेगा हमारा वोट एकमुश्त उसी को जायेगा। यह फ ़ार्मूला हम अगर लोगों के ज़हेन में नक्श करने में कामयाब हो गये तो शायद उत्तर प्रदेश की तस्वीर पिछली बार से बिल्कुल मुख़्तलिफ हो। फ़ै सला आप सब के हाथ में है कि यह तमाम तंज़ीमें इस सिलसिले में कितनी संजीदा हैं? क्या क़दम उठाती हैं? कितनी जल्दी उठाती हैं? और किसे ज़रिया बनाती हैं, कौन सा रास्ता अपनाती हैं? हम क़ौम को बेदार करने में हमेशा आपके साथ रहे हैं और इन्शाअल्लाह आगे भी रहेंगें।
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