यही होना था, उम्मीद के ख़िलाफ़ कुछ नहीं-वक़ार रिज़वी………..

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यही होना था, उम्मीद के ख़िलाफ़ कुछ  नहीं
मीडिया हाउस आज भी सबसे ईमानदार ?
चुनावी नतीजे इसकी यकीनदहानी कराते हैं कि आज के इस दौर में जब जि़म्मेदारी लेने के बाद कोई अपनी जि़म्मेदारी निभाते हमें नहीं दिखता, ऐसे में एक मीडिया हाउस ही ऐसा अकेला दिखा जिसने जो जि़म्मेदारी उठायी उसे आखरी दम तक ईमानदारी से निरन्तर निभा रहा है।
कहते हैं जंग और मोहब्बत में सब जायज़ है और इस जंग में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने साबित कर दिया कि अगर किसी जंग को जीतने के लिये सही तरीके से मंसूबाबंदी की जाये तो अपने में कोई अच्छाई न होते हुये भी आप दूसरों की खामियों को उजागर कर भी जीत सकते हैं। जो हुआ इसमें कुछ भी नया नहीं है, जो लोग हमारे लेख अभी तक पढ़ते आयें हैं वह जानते हैं कि हम पहले ही दिन से तथ्यों के आधार पर नाकि आस्था के आधार पर कहते आयें हैं कि भारतीय जनता पार्टी को ही जीतना चाहिये क्योंकि भाजपा की हमेशा से यह रणनीति रही है कि अपनी सारी ताकत अपने $िखला$फ वोटों के बिखराव पर $खर्च करें और वह इसमें कामयाब भी हैं। जहां कमायाब न हो सके वहां दिल्ली, बिहार और अब पंजाब जैसे नतीजों का सामना करना पड़ा।
हमारे मस्जिद के साथी से लेकर तमाम दोस्त अहबाब एकमत थे कि नोटबंदी का $फैसला मोदी के $िखला$फ जायेगा लेकिन उसी वक़्त मेरे द्वारा लिखा गया लेख ”$फूहड़पन से उठाया गया सही $कदमÓÓ जिन लोगों को याद है वह इस बात की तसदी$क करेंगें कि मैने उसी वक़्त कहा था कि यह मोदी के ह$क में होगा उसके पीछे तर्क यह था कि इससे $गरीबों को लाईन तो लगनी पड़ी लेकिन बहुतों को माली $फायदा भी हुआ। न जाने कितने लोगों ने अपने पैसे गांवों के $गरीबों को यह कहकर बांट दिये कि अभी ले लो जब हो तो दे देना। जिनके पास पैसे नहीं थे उन्होंने पैसे वालों के पैसे कमीशन पर लेकर पैसे बदल दिये। इन सब बातों ने वक़्ती परेशानी को भुला दिया, मोदी ने भी इसे अमीरों की परेशानी कहकर $गरीबों के वोट हासिल कर लिये।
समाजवादी पार्टी की $िकस्मत कहे या मुसलमानों की नासमझी, कि उसने इस हाल में भी सपा को ही वोट दिया जिस सपा ने आज़म $खान को मुसलमान समझा और जिसे पूरी मुस्लिम $कयादत का मसीहा समझा उनको अपने बेटे को अपने ही घर में जिताने में दांतों तले पसीना आ गया। दूसरे कांग्रेस से गठबंधन होते ही सपा की हार तय हो गयी थी। वह क्यों! इसका $खुलासा सिराज मेंहदी साहब के यहां कांग्रेस के प्रमोद तिवारी, आशोक गहलोत, राजीव शुक्ला जैसे तमाम वरिष्ठ नेताओं के सामने एक सवाल से ही कर दिया था। जब वहां मौजूद तमाम लोगों ने $कसीदे पढ़ लिये कि कांग्रेस सब की सब सीटें जीत रही है तो किसी ने हमसे कहा कि आप भी कुछ बतायें, तो मैने बस उनसे यह जानना चाहा कि हमें बस यह बता दीजिये कि जिन 100 सीटों पर कांग्रेस लड़ रही है वहां सत्ता पार्टी के नेता अपने चुनाव की तैयारी पिछले 5 सालों से कर रहे हैं, ऐसे में आप अगर जीत जाते हैं तो उनका चुनावी भविष्य तो सदा के लिये समाप्त हो जायेगा, तो क्या वह आपको जीतने देंगे? किसी ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। वैसे भी विधान सभा में जो कांग्रेस का वोट बैंक है वह या तो कांग्रेस में जाता है या फिर भाजपा को। कांग्रेस की 300 सीटों पर $गैरमौजूदगी ने भी अपना परम्परागत वोट भाजपा को ट्रांसफर कर दिया।
इन सबके बावजूद हमेशा की तरह नरेन्द्र मोदी और अमितशाह ने मंसूबाबंदी के साथ अपनी पार्टी को जिताने के लिये जहां दिन-रात एक कर, जी-तोड़ मेहनत कर $कामयाबी हासिल करने के लिये किसी भी हरबे को अपनाने में कोई परहेज़ नहीं किया वहीं उन्हें उन तमाम मौलवियों का भी एहसानमंद ज़रूर होना चाहिये जो अपने ज़ाती $फायदे या ज़ाती दुश्मनी के लिये वोटों का बंटवारा कराकर उन्हें इस कामयाबी तक पहुंचानें में मददगार बने। पंजाब, गोवा और मणिपुर में मौलवियों का सियासत में द$खल कम है इसलिये मोदी वैसा नहीं कर सके जैसा यहां किया। इसलिये अगर केवल मोदी जादू चलता तो सब जगह चलता।
मुसलमान अब क्या करें यह एक बड़ा सवाल है, बिना आपसी इत्तेहाद के अब उसकी ब$का मुमकिन नहीं, और मौलवियों के रहते यह मुमकिन नहीं। अब बस एक ही रास्ता है कि वह संजीदगी से $गौर करे कि जिन्हें हम अब तक वोट देते आये हैं उन्होंने हमारे लिये क्या किया ? और जिन्हें हमनें आज तक कभी वोट नहीं दिया और उन्होंने हमारे बिना न सि$र्फ तमाम प्रदेशों में सरकारें बनायी बल्कि पिछले 3 साल से केन्द्र में भी सरकार चला रहे हैं, उन्होंने हमसे क्या-क्या ले लिया ? अगर हम आपसी इत्तेहाद करने में सक्षम नहीं हैं तो हम कब तक सरकार के नक्कू बने रहेंगें, ऐसे में हमें कोई मुतालबा करने का भी ह$क नहीं होगा, जुडऩे पर न सि$र्फ $करीब आयेंगें बल्कि तब हम अपना ह$क, ह$क के साथ तलब कर सकते हैं। भाजपा की यह जीत हो सकता है हाथी, साईकिल और पंजे को अपनी शिनाख़्त बा$की रखने के लिये एक कर दे, अगर ऐसा हुआ तो 2019 में फिर बिहार जैसे नतायज सामने आ सकते हैं।
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