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मुक़ालिफ़ हमेशा से चाहता है कि मुसलमानों में सियासी शउर कभी भी पैदा न हो, इसके लिये वह, हर वह हरबा अपनाता है जिससे मुसलमान हर रोज़ एक नये मसायल में पड़ा रहे और उसे ही सुलझाने में अपनी ताक़त ज़ाया कर दे, ख़ासतौर पर जब मुल्क में कहीं भी इलेक्शन हो रहे हों और वहां मुसलमान इतनी तादाद में हो कि उनका एक भी फ़ीसद वोट इधर से उधर होने पर नतीजे बदल जायें और वही हो रहा है पूरा मुल्क इस वक़्त एक उस शख़्स के ख़िलाफ़ अपनी ताक़त को ज़ाया कर रहा है जिसके पुश्तपनाहों ने यह कराया ही इसलिये है कि मुसलमान इलेक्शन भूलकर क़ुरआन को बचाने में लग जाये जिसको क़यामत तक बाक़ी रखने का वादा ख़ुद अल्लाह ने किया है।
सलमान रूशदी के बाद भी उसकी नुमाइंदगी करने वाले अभी बाक़ी हैं इसीलिये वक़्तन ब वक़्तन क़ुरआन पर किसी न किसी तरह से एतराज़ करते रहते हैं उन्हीं में से एक ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटीशन डाली है कि क़ुरआन की 26 आयतों को क़ुरआन से हटाया जायें क्योंकि इन आयतों को क़ुरआन में ख़ोलाफ़ाये राशिदीन ने अपनी ताक़त के बल पर जबरन शामिल कराया है और इन्हीं आयतों की बुनियाद पर पूरी दुनियां में दहशतगर्दी फैल रही है। जबकि आलमे इस्लाम के सभी फ़िरक़े इस एक बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि मौजूदा क़ुरआन जिस हाल में हमारे हाथों में है इसमें ज़रा सा भी ज़बर ज़ेर का इज़ाफ़ा या कमी नहीं है यह सबके सब अल्लाह का कलाम हैं और यह पूरा क़ुरआन इल्म, मेल मोहब्बत, इत्तेहाद, अम्न और अमान के पैग़ाम के सिवा कुछ नहीं।
सब जानते हैं कि मौसूफ़ को सौ अुजंमनों की सिफ़ारिश पर क़ायदे मिल्लत ने अपना लख़्तेजिगर बनाकर अपने ख़ूने जिगर से इतना तनावर दरख़्त बना दिया कि अगले 5 साल दिन रात क़ौम और मिल्लत की ख़्वातीन और अम्मामों को सड़कों पर लाकर भी उसका एक बाल भी बीका न कर सके अगले 4 साल दोनों एक ही एक़तेदार के साथ रहकर शह और मात का खेल खेल रहे हैं इस मुक़ालेफ़त की आग ने मौसूफ़ को अन्दर से इतना खोखला कर दिया कि वह अपने वजूद को बचाने के लिये वह सब भी करने को तैयार हो गये जिसके शायद वह अहल न थे, क़ुरआन की 26 आयतें तो दूर अगर 6 आयतें भी वह पढ़कर बता दें कि इन आयतों का सही मफ़हूम क्या है तो बड़ी बात है लेकिन आज यह रिवाज हो गया है कि जैसे उर्दू अख़बारों के वह एडीटर बने बैठे हैं जिनको उर्दू आना तो दूर शीन क़ाफ़ भी दुरूस्त नहीं वैसे ही आज क़ुरान पर वह तफ़सरा करने को तैयार है जिसे क़ुरान के नुक़्ते की भी ख़बर नहीं।
मौसूफ़ को जो लोग जानते हैं वह उन्हें ख़ूब जानते हैं कि वह धारे के ख़िलाफ़ कभी नहीं चलते, मायावती एक़तेदार में थी तो क़ायदे मिलल्त की जेल की फ़ोटो उनके डराईंग रूम से हटवा दिया आज़म ख़ां एक़तेदार में आये तो उनके दायां हाथ बन गये और जब उनका ज़वाल हुआ तो उनसे बरात अख़्तयार करके मौजूदा सरकार से ज़ेड कैटिगरी की सेक्यूरिटी ले ली, लेकिन होशियार मुक़ालिफ़ सबसे पहले अपने मोहरे की हर दुखती रग पर पैर रखता है, यही यहां भी हुआ पाप का घड़ा इतना भर चुका था कि मदारी जो जो कहता गया करना इनकी मजबूरी बनती चली गयी। आज से नहीं पिछले 4 सालों से मौसूफ़ का इस्तेमाल इस तरीक़े से किया जा रहा है कि मुसलमानों में किसी तरह से इन्तेशार बना रहे, यह कहीं से भी मुत्तहिद न होने पायें। सुप्रीमकोर्ट में रिट भी इसी का एक हिस्सा है यह रिट इसके लिये हरगिज़ नहीं कि इसमें से कोई अनपढ़ जाहिल कोर्ट से ऐसा कहेगा और कोर्ट ऐसा कर देगी बल्कि इसलिये है कि न समझ मोलवी सड़कों पर आ जायें, एहतिजाज करें, धरना प्रदशन करें, सड़को पर मार्च करें, और यह सब अख़बार की सुख़ियां बनें टी.वी. पर बहस हो और मुसलमान यह भूल जाये कि मुल्क के कई सूबों में इलेक्शन हो रहा है और उसको उसमें कैसे हिस्सा लेना है, वरना आसान तरीक़ा है कि मुल्क भर में सभी थानों में ख़ामोशी के साथ मौसूफ़ के ख़िलाफ़ एफ़आई.आर दर्ज करायी जाती जिससे जेल के बाहर की ज़िन्दगी इन सम्मन का सामना करने में बीत जाती। वैसे भी हालात इतने बद से बदतर हो चुके हैं कि तौबा अगर क़बूल हो, तो इसके सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं वरना मौसूफ़ इस सिक्यूरिटी से क्योंकर महफ़ूज़ रहेंगें क्योंकि मौत बाहर से किसी शह के आने का नाम नहीं बल्कि जिस्म से रूह के निकल जाने का नाम मौत है और इसके लिये कोई सिक्यूरिटी काम नहीं आयेगी।