मानवाधिकार की परिधि सशत्र-बलों के लिए सीमित है, इसे समझना आवश्यक :न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह

0
153
JOIN US-9918956492———————————————–
अपने व्हाट्सप्प ग्रुप में 9918956492 को जोड़े—————————– 
मानवाधिकार की परिधि सशत्र-बलों के लिए सीमित है, इसे समझना आवश्यक :न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह

मानवाधिकार के नाम पर देश के दुश्मनों को सेना पर मानसिक बढ़त नहीं दी जानी चाहिए: विजय कुमार पाण्डेय           

लखनऊ ने ‘मानवाधिकार एवं सशत्र-बल’ पर आयोजित सेमीनार में सेना कोर्ट के विभागाध्यक्ष डी.पी.सिंह मुख्य-अतिथि थे, न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दो घटनाएँ पहली मणिपुर और दूसरी कश्मीर में हुईं जिनमें सेना के विरुद्ध मानवाधिकार का मामला गम्भीरता से उठा जिसमें भारत सरकार को उपयुक्त न्यायिक सहायता के अभाव में सेना और मानवाधिकार की सीमा की उचित व्याख्या नहीं हो सकी जबकि संविधान के अनुच्छेद 33 से 35 एवं भारतीय दंड संहिता के भाग-4 की धारा-79 से 81 में युक्ति-युक्त आधार पर सेना की कार्यशैली को मानवाधिकार के नाम पर अनुचित ठहराए जाने से छूट प्राप्त है, अधिवक्ता समाज के सामने बड़ी चुनौती है कि वह कानूनी पक्ष को न्यायालय के सामने रखे अन्यथा भविष्य में बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि राजनितिक निर्णयों की त्रुटियों का प्रभाव तात्कालिक रूप से दिखने लगता है जबकि न्यायिक निर्णयों की त्रुटियां लम्बे समय बाद दिखती हैं जब समाज उसकी बहुत बड़ी कीमत चुका लेता है lअध्यक्ष डा.चेत नारायण सिंह ने कहा कि सेना बहुत विषम परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है लिहाजा उसको मानवाधिकार के नाम पर प्रभावित करने की मनोवृत्ति से बचने की आवश्यकता है, बार के महामंत्री विजय  कुमार पाण्डेय ने विचार रखते हुए कहा कि मानवाधिकार देश की सम्प्रभुता में आस्था एवं विश्वास व्यक्त करने वाले लोगों का होता है न कि देश की सेना और देश की एकता को खंडित करने के लिए कार्य कर रहे हैं विगत में भारतीय सेना के अमानवीय चरित्र को दुनिया के सामने रखने की जिस तरह कोशिश हुई गलत है सेना अपने दायित्वों का निर्वहन बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में करती है इसलिए उसको विभिन्न उपबंधो के अंतर्गत छूट प्रदान की गयी है इसके पीछे मन्तव्य यही है कि सेना देश की सीमाओं की रक्षा करने में स्वयम को कमजोर न महसूस करे lविजय पाण्डेय ने कहा कि भारत की सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ अनुशासित और मानवीय कर्तव्यों का निर्वहन करने वाली सेना है इसलिए उस पर मानवाधिकार के नाम पर दबाव बनाने की जरूरत नहीं हैं वरना देश की सीमाओं में परिवर्तन होने में समय नहीं लगेगा वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व महामंत्री डी.एस.तिवारी ने कहा कि हमारे सशत्र-बल देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं इसलिए उनके मामले में मानवाधिकार को सिमित सन्दर्भों में ही ग्रहण करने की आवश्यकता है, विजय कुमार पाण्डेय ने मीडिया को बताया कि देश विरोधी ताकतें हमारी सेनाओं के मनोबल को हतोत्साहित करने के लिए मानवाधिकार को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं जिसके प्रति अधिवक्ता समाज को संजीदा रहने की जरूरत है क्योंकि मानवाधिकार की आड़ में दुश्मनों को सेना पर मानसिक बढ़त नहीं दी जा सकती वरना देश का भूगोल परिवर्तित होने में समय नहीं लगेगा |बार के विद्वान सदस्य कर्नल वाई.आर.शर्मा ने कहा कि हमारी सेनाएं किसी भी आपरेशन में जिन चुनौतियों का सामना करती हैं उसे बाहर से समझ पाना नामुमकिन है क्योंकि दुश्मन से संघर्ष में भाषा, भौगोलिक ज्ञान, दुश्मन और दोस्त की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल होता है ऐसे में हमारी न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि मानवाधिकार की आड़ में विरोधी ताकतें सेना के मनोबल को कमजोर करने में लग जाती हैं, आर चन्द्रा, आर के सिंह, के के शुक्ला, संयुक्त सचिव पी के शुक्ला, उपाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह, पारिजात मिश्रा, अनुराग मिश्रा, कविता मिश्रा, कविता सिंह, विनय पाण्डेय एवं शमशाद आलम ने भी अपने विचार रखे l  

https://www.youtube.com/watch?v=eBIyfSqbc0o


अवधनामा के साथ आप भी रहे अपडेट हमे लाइक करे फेसबुक पर और फॉलो करे ट्विटर पर साथ ही हमारे वीडियो के लिए यूट्यूब पर हमारा चैनल avadhnama सब्स्क्राइब करना न भूले अपना सुझाव हमे नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते है|
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here