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किताबों को किसी देश की सरहद में नहीं बांटा जा सकता. ये बात पढ़ने में बहुत किताबी लग सकती है, मगर इस बात को सच कर रही हैं 13 साल की आयशा आरिफ असभानी. आयशा मूलतः कराची, पाकिस्तान की रहने वाली हैं.
आयशा ने स्कूल में पढ़ते हुए जब ये जाना कि वो जो भी किताबें वे पढ़ रही हैं, वे एक ब्रिटिश या उत्तरी अमरीकी लेखक की हैं तो उनके मन में अफ्रीकी लेखकों को पढ़ने की इच्छा प्रबल हुई. आयशा ऐसे देशों के बारे में जानना चाहती थीं, जिनके बारे में उन्होनें किताबों में भी नहीं पढ़ा था.
वे ऐसी कहानियां जानना चाहती थीं, जिनका अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ हो और इसी कड़ी में अप्रैल, 2016 में आयशा ने हर देश का एक उपन्यास/कहानी संग्रह या इतिहास पढ़ने की ठानी. बशर्ते लेखक उस देश का मूल निवासी हो.
बनाया फेसबुक पेज
इसके लिए आयशा ने एक फेसबुक पेज बनाया, जिस पर उन्हें बहुत सी प्रतिक्रियाएं और सुझाव भी मिलने लगे. मगर उनकी कम उम्र के कारण फेसबुक ने उनका पेज हटा दिया था. पेज के हटने तक आयशा 43 देशों की किताबें पढ़ चुकी थीं और उनके इस काम की सराहना कराची के अखबार द डॉन ने की थी.
नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति गुडलक एबेल जॉनाथन ने अक्टूबर में आयशा को एक बधाई संदेश भेजा. गुडलक ने उन्हें कई अच्छे नाइजीरियाई लेखकों के बारे में बताया और इस बात का भी आश्वासन दिया कि दुनिया के अलग-अलग कोनों से लोग इस काम में उनकी मदद करना चाहते हैं.
आयशा संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिन्हित देशों और स्कॉटलैंड, ताइवान, फिलिस्तीन जैसे देशों से उनकी देश की बेहतरीन किताबों के सुझाव पा चुकी हैं, मगर अब भी ऐसे कई देश बचे हैं, जहां से लोगों ने उन्हें कोई सुझाव नहीं भेजे हैं.
घरवालों का भी मिला सपोर्ट
ऐसे में आयशा अपने फेसबुक पेज पर लोगों को किताबों और लेखकों के सुझावों के लिए लगातार आमंत्रित कर रही हैं. आयशा अपने इस प्रोजेक्ट में साथ देने के लिए अपने माता-पिता और भाई का शुक्रिया अदा करती हैं.
आयशा अब तक बहुत से देशों की किताबें पढ़ चुकी हैं. जिनमें भारत की लेखिका अरुंधति रॉय की दि गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स, देवदत्त पटनाइक की दि प्रेग्नेंट किंग, अफगानिस्तान के लेखक खालिद हुसैनी की दि काइट रनर, थाउजेंड स्प्लेंडिड संस और इसके अलावा क्यूबा, आयरलैंड, बुल्गारिया, एलोंडा समेत अनेक देशों की किताबें हैं.
(तस्वीर आयशा के फेसबुक पेज से साभार)
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