यमन की ज़ंग खत्म, सऊदी अरब से हुआ समझौता?

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यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता वाली सरकार की अदन में वापसी हो गई है. इसी साल गर्मियों में दक्षिणी अलगाववदियों के साथ जंग के बाद सरकार के शीर्ष अधिकारियों को देश से बाहर जाना पड़ा था.


यमन के प्रधानमंत्री माइन अब्दुलमलिक सईद अदन शहर के एयरपोर्ट पर सोमवार को उतरे. सऊदी अरब की मध्यस्थता में दो हफ्ते पहले विद्रोहियों के साथ हुए समझौते के बाद ही उनकी वतन वापसी हो सकी है. इसके साथ ही कई महीनों से चली आ रही जंग रुक गई है.

सईद ने जहाज से उतरने के बाद समाचार एजेंसी एपी से कहा, “अगले चरण के लिए सरकार की प्राथमिकता पहले अदन में हालात को सामान्य करना है, उसके बाद जमीनी स्तर पर सरकारी संस्थाओं को संगठित किया जाएगा…यह स्थिरता के लिए एक तरह से गारंटी होगी.”

उन्होंने सरकार की वापसी को “नागरिक सेवाओं में बेहतरी के लिए अधारभूत” बताया लेकिन साथ ही कहा, “सुरक्षा की चुनौतियों की अनदेखी नहीं की जा सकती, खासतौर से इस अवस्था में.”

सईद के साथ राष्ट्रपति अबेद रब्बो मंसूर की सरकार के पांच मंत्री भी आए हैं. हवाई अड्डे पर सऊदी अरब की सेना और स्थानीय प्रशासन ने उनका स्वागत किया.

संयुक्त अरब अमीरात समर्थित अलगाववादी इसी साल अगस्त में अदन में घुस गए और राष्ट्रपति हादी की वफादार सेना को शहर से बाहर निकाल दिया. राष्ट्रपति हादी 2015 से ही सऊदी अरब में रह रहे है.

ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों के खिलाफ इस लड़ाई में सऊदी अरब के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के सहयोगियों के बीच ही जब हिंसा होने लगी तो इस लड़ाई में नया मोड़ आ गया. इसके साथ ही यह तय हो गया कि अब इस मसले का कोई अंतरराष्ट्रीय हल निकालना बेहद मुश्किल होगा.

समझौता होने के बाद हादी के मंत्रियों के पिछले मंगलवार को वतन लौटने की उम्मीद थी पर ऐसा नहीं हुआ. अधिकारियों ने दक्षिणी अलगाववादियों पर समझौते को लागू करने में देरी का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने शहर के मुख्यालयों और राष्ट्रपति के आवास को सौंपने से इनकार कर दिया था.

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अलगाववादियों के साथ दो हफ्ते पहले सत्ता के बंटवारे पर समझौता हुआ जिस पर सऊदी अरब के रियाद में दोनों पक्षों ने दस्तखत किया. इसके तहत दोनों पक्ष अदन से सेना को हटाने पर रजामंद हुए हैं.

इसका मतलब है कि यह शहर गठबंधन के नियंत्रण में रहेगा और अगर निर्वासन में रह रहे हादी यहां लौटने का फैसला करते हैं तो उनकी रक्षा के लिए प्रेसिडेंशियल गार्डों को यहां आने की अनुमति होगी.

समझौते में यह भी शर्त रखी गई है कि अलगाववादी अपने सैन्य संगठनों को भंग कर उन्हें हादी की सेना में शामिल कराएंगे.

प्रधानमंत्री सईद ने बताया, “सुरक्षा सेवाओं को मिलाने की योजना को स्पष्ट और पारदर्शी रखने की जरूरत है. हमारे साथ सऊदी और गठबंधन के नेताओं का समर्थन है, यह सब घटक जमीन पर भरोसेमंद कदमों के जरिए समझौते को लागू करने में मदद करेंगे.”

अरब जगत के सबसे गरीब देश में यह लड़ाई 2014 में शुरू हुई जब हूथी विद्रोहियों ने राजधानी सना समेत देश के ज्यादातर उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया. 2015 में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन ने इसमें दखल देना शुरू किया ताकि हूथियों को बाहर निकाल कर हादी सरकार की सत्ता कायम की जा सके.

बीते कुछ महीनों में सऊदी अरब ने दक्षिणी यमन में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है खासतौर से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अचानक अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला करने के बाद. यूएई की फौज के वापस जाने के कारण गठबंधन कमजोर हो गया था.

करीब पांच साल तक चली इस जंग में 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है और दसियों लाख से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं. देश भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी

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