विश्व पर्यटन दिवस (27 सितंबर) के अवसर पर उत्तर प्रदेश का हमीरपुर जिला ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देकर सतत विकास और समुदाय आधारित आजीविका की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। यमुना और बेतवा नदियों के बीच बसा यह जिला अपने प्राचीन मंदिरों, नदी किनारे के वनक्षेत्रों और बुंदेली संस्कृति की जीवंतता के लिए जाना जाता है। पर्यटन को भीड़-भाड़ वाले गंतव्यों से हटकर ग्रामीण और जन-केंद्रित अनुभव के रूप में पुनः परिभाषित करने की दिशा में हमीरपुर नई संभावनाएँ तलाश रहा है।
जिले के महेश्वरी माता, चौरादेवी, गौरा देवी, मरही माता, भुवनेश्वरी माता और शेर माता जैसे विरासत मंदिर, यमुना पाथवे पर सूर्योदय भ्रमण और सामुदायिक हस्तशिल्प पथ पर्यटकों को ग्रामीण अनुभव प्रदान करते हैं। बुंदेलखंड की समृद्ध संस्कृति—राइ नृत्य, रसिया गीत, लोककथाएँ और ग्राम्य उत्सव—हमीरपुर महोत्सव और तीज महोत्सव जैसे आयोजनों के माध्यम से जीवंत होती है। स्थानीय व्यंजन, जैसे मोटे अनाज, दालें, मौसमी सब्जियाँ और पारंपरिक मिठाइयाँ, होमस्टे और पाक कला कार्यशालाओं के जरिए पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं।
पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि हमीरपुर की भौगोलिक सघनता छोटे सर्किटों के माध्यम से स्थानीय पंचायतों, होटल संचालकों, शिल्पकारों और कलाकारों के सहयोग को बढ़ावा देती है। ग्रामीण पर्यटन से होमस्टे, गाइड सेवाओं और हस्तशिल्प में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, साथ ही कृषि पर निर्भरता कम होगी। हालांकि, इसके लिए स्वच्छ शौचालय, संकेतक, कचरा प्रबंधन, मेजबानों का प्रशिक्षण और प्रभावी विपणन रणनीति जैसी बुनियादी सुविधाएँ आवश्यक हैं।
जिला प्रशासन, उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और स्थानीय समुदायों के सहयोग से हमीरपुर पर्यटन को ग्रामीण समृद्धि और सांस्कृतिक गर्व का साधन बना सकता है। यहाँ की कहानी भव्य रिसॉर्ट्स की नहीं, बल्कि दीयों की रोशनी में सजे होमस्टे, नदी किनारे की सैर और लोकगीतों की स्मृतियों की है। हमीरपुर यह साबित कर सकता है कि छोटे जिले भी पर्यटन के जरिए बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकते हैं।