प्रेमजी के अधिवक्ता करुणानिधि यादव का तर्क था कि विप्रो ने एक सर्विस प्रोवाइडर कंपनी मेसर्स जी फॉर जी सिक्योर साल्यूसन्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से मैन पावर सप्लाई करने का समझौता किया था। समझौते में साफ था कि काम करने वाले न तो विप्रो के एजेंट होंगे और न ही उसके कर्मचारी ही कहलाएंगे। यह भी तय था कि उनका भुगतान भी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ही देगी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने विप्रो लिमिटेड कंपनी के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर अजीम प्रेमजी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा खारिज कर दिया। श्रम कानून के कथित उल्लंघन के केस में कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लखनऊ ने इस मामले में प्रेमजी को तलब करने और उनके खिलाफ वारंट जारी करने में अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया।
न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने प्रेमजी की ओर से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल अर्जी को मंजूर करते हुए यह आदेश पारित किया। इस मामले में सुनवाई पूरी करके कोर्ट ने 13 मई को आदेश सुरक्षित कर लिया था, जिसे बुधवार को सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने परिवादी की ओर से पेश सुबूतों व अन्य दस्तावेजों का ठीक प्रकार से परीक्षण नहीं किया, जिससे उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई केस नहीं बनता है।
प्रेमजी के अधिवक्ता ने क्या कहा?
प्रेमजी के अधिवक्ता करुणानिधि यादव का तर्क था कि विप्रो ने एक सर्विस प्रोवाइडर कंपनी मेसर्स जी फॉर जी सिक्योर साल्यूसन्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से मैन पावर सप्लाई करने का समझौता किया था। समझौते में साफ था कि काम करने वाले न तो विप्रो के एजेंट होंगे और न ही उसके कर्मचारी ही कहलाएंगे। यह भी तय था कि उनका भुगतान भी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ही देगी। यह भी कहा गया कि कि प्रेमजी का लखनऊ के विप्रो के लोकल ऑफिस से प्रतिदिन के कामकाज से कोई लेना देना नहीं है।