ज़कात देने वालों को क़यामत के दिन हर तरह के ग़म और डर से महफूज़ रखा जाएगा। (कुरान)
हिफजुर्रहमान
ज़कात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक स्तंभ है और अति महत्वपूर्ण इबादत है। ज़कात दो अर्थो मे इस्तेमाल होता है पाकीज़गी (पवित्रता) और इजाफा (बढोतरी) ज़कात अदा करने से इन्सान का माल पाक होजाता है अल्लाह ताला बन्दे को गुनाहों से भी पाक करते हैं। ज़कात अदा करनें से बन्दे के अजर-व-सवाब में भी इजाफा होता है और अल्लाह ताला उस का माल भी बढ़ा देते हैं। अल्लाह ताला नें पवित्र कुरान में कई जगह पर ज़कात अदा करनें का हुक्म दिया है।
🔺 जो कोई ज़कात नहीं देगा, उसे क़यामत के दिन कड़ी सज़ा दी जाएगी। (सूरा अल-तौबा 34-35)
🔺 ज़कात देने वालों को क़यामत के दिन हर तरह के ग़म और डर से महफूज़ रखा जाएगा
(अल-बकराह 277)
🔺 ज़कात का भुगतान पापों से प्रायश्चित और दरजात की उन्नति का एक बड़ा साधन है (अल-तौबा 103)।
हज़रत मोहम्मद (सल0) नें भी हज्जातुलवदा के मौका पर इर्शाद फरमाया “लोगो अल्लाह से डरते रहो पांच वक्त की नमाज़ पढ़ो रमज़ान के रोज़े रखो और अपनें मालों की ज़कात अदा करो।
ज़कात किस तरह की संपत्ति पर लागू होती है?
व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये रखी गई ज़मीन, फ्लैटों या खेत पर भी ज़कात देना होती है । लेकिन घर बनाने के लिये रखे गये ज़मीन पर ज़कात नहीं देनी होती है ।
अगर कोई अपने बच्चे के लिये या इस तरह के इस्तेमाल के लिये फ्लैट रखता है तो उस पर भी ज़कात लागू नहीं होतीहै।
अगर किसी की दुकान है तो वहां रखे सामान पर ज़कात अदा करना होगा, लेकिन दुकान की इमारत या ज़मीन पर ज़कात लागू नहीं होगी।
अधिकांश लोगो को यह नही मालूम होता है कि जेवरात और नकदी के अलावा व्यापारियों, जमींदारों और पशुपालकों जैसे वर्ग के लिए भी ज़कात देनी होती है अगर वह ज़कात के कराईटेरिया को पहुंच जाते हैं।
ज़कात चार चीजों पर फर्ज़ है।
1. सोना और चाँदी
2. ज़मीन की पैदावार
3. माल व्यापार(सामाने तिजारत)
4. पशु.
[सोने की ज़कात]
87 ग्राम यानी साढ़े सात तोला सोने पर जकात फर्ज है
(इब्न माजा 1/1448)
सोना चाहे पूंजी के रूप में हो या इस्तेमाल में, हर एक पर जकात वाजिब है। जेवरात जो जाती इस्तेमाल में है उस पर विद्वानों में मत भेद है ज्यादातर का मानना है कि इस पर भी जकात वाजिब है लेकिन कुछ का कहना है कि इस्तेमाल के जेवरात में जकातात वाजिब नही होगी दोनों की अपनी-अपनी दलीलें हैं लेकिन इस्तेमाल के जेवरात में भी जकात देना बेहतर होगा।
[चांदी पर ज़कात]
612 ग्राम यानी साढ़े बावन तोला चांदी पर जकात फर्ज है, उससे कम वजन पर नहीं (इब्ने माजा)।
जकात की दर कीमत या वज़न के हिसाब से ढ़ाई प्रतिशत है।
ज़मीन की पैदावार पर ज़कात
जो फसल कुदरती पानी से पैदा होई हो उस मे दसवां हिस्सा यानी बीस मन में से दो मन और जो फसल ट्यूबवेल या कुएं वगैरह से सींची गयी हो उस के बीस मन मे से एक मन यानी बीसवां हिस्सा जकात होगी।
अल्लाह ताला कुरान में कहता है कि “फसल की कटाई के वक्त उस का हक अदा करो” (सूरातुल्अनाम आयत न0142)
जानरों की ज़कात
पाँच ऊँटों की ज़कात एक बकरी है और दस ऊँटों की ज़कात दो बकरियां हैं। पाँच ऊँटों से कम पर ज़कात वाजिब नहीं है।
भैंसों और गायों की जकात
30 गायों पर एक बकरी जकात है।
40 गायों पर दो साल से अधिक उम्र के एक बछड़ा जकात दें। (तिर्मिज़ी 1/509)
भैंसों की ज़कात की दर भी गायों के समान ही है।
भेड़-बकरियों की जकात
40 से 120 भेड़-बकरियों पर एक बकरी जकात है
120 से 200 तक दो बकरी जकात।
(सही बुखारी ज़कात की किताब)
चालीस बकरियों से कम मे ज़कात नहीं।
वाहनों की ज़कात
किराया पर चलने वाली गाड़ियों में ज़कात नही है बल्कि उस के किराया पर है वह भी इस शर्त के साथ कि किराया साल भर जमा होता रहे और निसाब को पहुंच जाए।
घरेलू इस्तेमाल वाली गाड़ियों, जानवरों, हिफाज़त के हथियारों व मकान आदि पर ज़कात नही है।
माल व्यापार पर जकात
दुकान चाहे किसी भी प्रकार की हो, उसके माल के व्यापार पर ज़कात देना अनिवार्य है, शर्त यह है कि माल निसाब तक पहुंच जाए और एक साल बीत चुका हो।दुकान की सारी संपत्ति का हिसाब करें और उसमें से ज़कात दें, दुकान की उस आमदनी पर ज़कात नही है जो एक साथ खर्च होती रहे सिर्फ उस आमदनी पर ज़कात देना है जो बैंक आदि मे साल भर पड़ी रहे और वह इतनी हो जिस से साढ़े बावन तोला चांदी खरीदी जा सके ।
ज़कात किन को दी जा सकती है?
ज़कात के हकदार आठ प्रकार के लोग हैं जिन को ज़कात दी जा सकती है इन की विस्तृत जानकारी अल्लाह ताला नें कुरान की सूरा तौबा आयात नम्बर 60 में बयान कर दिया है
1. फुकरा:फकीर का पर्यावाची है इस का अर्थ ऐसे लोग हैं जिन के पास गुजर बसर के लिए कुछ न हो।
2. मिसकीन:इस से मुराद वह लोग हैं जिन के जायज खर्चे ज्यादा हों और आमदनी कम हो
3. आमलीन (जकात प्राप्तकर्ता) :जो ज़कात वसूल करनें उस का हिसाब-किताब रखने के जिम्मेदार हों।
4मोअल्लाफातुलकुलूब:इस से मुराद वह काफिर है जिस से उम्मीद हो कि वह माल लेकर मुसलमान होजाएगा।
5. गारमीन (ऋणी) जो अपना कर्ज़ अदा नही कर सकते उन को ज़कात दे उन को कर्ज़ से निजात दिलाने के लिए।
6. फिर्रकाब (कैदी) गुलाम मुसलमानों को आजाद कराने के लिए और मुसलमानों को दुश्मन की कैद से रिहाई के लिये।
7.फीसबीलिल्लाह:तमाम वह नेकी के काम जिन में अल्लाह की रज़ा हो
8. मुसाफिर (यात्री) जिस का सफर के दौरान जादेराह (सफर खर्च) खत्म होगया हो।
ज़कात न अदा करनें वालो की सजा
जो लोग सोने और चांदी को जमा करते हैं और अल्लाह की राह में खर्च नही करते हैं उन्हें दर्द नाक अजाब की सजा पहुंचा दीजिए। जिस दिन उस खजाने को जहन्नम की आग में पाया जाएगा फिर उस से उन की पेशानीयां (माथा) पहलू और पुश्तें (कन्धे) दागी जाएगीं और उन से कहा जाएगा यह है वह ख़ज़ाना जिसे तुम जमा रखते थे पस अपनें ख़ज़ानों का मज़ा चखो (सूरा तौबा आयत 34-35)
अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद (सल0) नें फरमाया जो आदमी अपनें माल की ज़कात अदा नही करता क़यामत के दिन उस का माल व दौलत गंजे सांप की शक्ल में उस पर मुसल्लत कर दिया जाएगा जो उसे लगातार डसता रहेगा और कहेगा मै तेरा माल और ख़जाना हूं”
ज़कात को लेकर लोगों में यह भ्रम है कि ज़कात अपनें सगे संबंधियों को नही दी जानी चाहिए तो जान लीजिए यह सही नही अगर आप के सगे
भाई, बहन, चचा, फूफी तथा अन्य रिश्तेदार ज़कात के मुस्तकिल हैं तो उन को देने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। बल्कि उन्हें ज़कात देना सदक़ा और रिश्तेदारी निभाना दोनों है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘मिसकीन को सदक़ा देना दान है, और रिश्तेदार को सदक़ा देना दान और सिला रेहमी (रिश्तेदारी निभाना) है।” इसे इमाम अहमद (हदीस संख्या : 15794) और नसाई (हदीस संख्या : 2582) ने रिवायत किया है।