एस. एन. वर्मा
क्या पंजाब की नव निर्वाचित आम पार्टी की सरकार को अक्षम मान लिया जाये और वहां गवर्नर रूल लगा दिया जाये। पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में अमृतसर के अजनाला में खालिस्तान समर्थक हथियार बन्द भीड़ ने जिस तरह पुलिस के आठ सौ जवानों के रहते हुये थाने पर कब्जा कर लिया और अपने आरोपी साथी को रिहाई के लिये पुलिस के मजबूर कर दिया। क्या इसे साधारण घटना कहेगे। फिर पुलिस ने शास्त्र बल का प्रयोग क्यों नहीं किया। वारिस पंजाब दे के प्रमुख और उपदेशक के करीबी एक व्यक्ति को जिसने एक व्यक्ति का आपहरण कर पिटाई इसलिये की थी उस व्यक्ति ने पिटाई करने वाले के गुरू के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी। आपरहण को लेकर 30 आदमियों कि खिलाफ शिकायत दर्ज हुई थी। उसमें अमृतपाल सिंह का भी नाम था।
अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने गिरफ्तारी को लेकर अपने अन्य समर्थकों को अजनाला थाना पहुचने के लिये पुकार लगाई। समर्थकों ने भी डन्डो तलवार, बन्दूक से लैस पुलिस के आठ सौ जवानों को खदेड़ दिया। इस तरह समर्थकों ने थाने पर कब्जा कर लिया। इसके बाद अधिकारियों ने अमृतपाल सिंह से बात किया और अधिकारी इतने मजबूर हो गये कि उन्हें आरोपी को रिहा करने का आश्वासन देना पड़ा।
पंजाब में कुछ न कुछ विस्फोटक होता रहता है, पंजाब सरकार इस तरफ से क्यों उदासीन रहती है। वारिस पंजाब एक नया संगठन है। इसका गठन खालसा राज स्थापित करने के लिये दिवंगत दीप सिद्धू नें किया था।
पिछले साल वर्तमान वारिस पंजाब के प्रमुख अमृतपाल सिंह दुबई से लैटे थे। उन्हें खालिस्तानी नेता दिवंगत जरनैल सिंह मिनुरवाले के गांव रोडे में इस नये संगठन का प्रमुख घोषित किया गया था। प्रशासन और खुफियां एजेंन्सियों क्यों खामोश रही। जब किसान अन्दोलन चल रहा था जिसमें पंजाब और हरियाना के किसान प्रमुखता से अन्दोलन को गति दे रहे थे तब खालिस्तान का भी नारा गूजता रहता था। 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर निशान साहब फहराया गया था। हाल ही में एनआईने जो आठ राज्यों में छापे मारे। उसी दौरान कनाड़ा में रह रहे खालिस्तान समर्थक आतंकी के करीबी की गिरफ्तारी सभी आन्तरिक सुरक्षा के लिये सवाल पैदा कर रहे है। यह तो एक तरह चुनौती पैदा कर रहे थे।
इन मामलो को तत्काल गम्भीरता से लेकर त्वरित असरदार कारवाई होनी चाहिये। जिससे इन आतंकियो के हौसलो पर रोक लगे। अजनाला थाना के केस में पंजाब के अपना दल सरकार का सुरक्षत्म रवैया और दबाव में आकर आरोपी को रिहा करने का आश्वासन देना, कितना उचित है इसकी तत्काल निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिये। इस तरह के ठीले ढाले रवैये से तो गलत काम करने वालो के हौसले और बढ़ेगें। थानो का लाठी डन्डा, तलवार, हथियार लेकर घेराव कर आरोपियों को छोड़ने के लिये असामाजिक तत्व भी प्रेरित होकर दबाव बनाने की कोशिश करेगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल पंजाब कान्ड पर खामोश क्यों है। अगर उनके चुने हुये लोग इस तरह का रवैया अपनायेगे तो उनका पानइन्डिया पार्टी बनाने का सपना ख्वाब ही रह जायेगा। जनता उनके चुने हुये प्रतिनिधियों की कारवाई पर गौर कर रही है।
लोगो की धारणा बन रही है कि एक नई राजनीतिक पार्टी पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में सुरक्षा प्रदान करने में भी ढीली दिख रही है। चुनाव के समय सत्तापक्ष उनकी पार्टी और उनके नेतृत्व को सवालो के घेरे में खड़ा कर सकती है। लोग आपस में प्रश्न कर रहे है कि जब आठ जिलों से पुलिस इतनी बड़ी संख्या में बुलाई गई थी उन्हें भीड़ के खिलाफ एहतियाती कदम उठाने की इजाजत क्यों नहीं दी गयी। आखिर पुलिस किस तरह के हालातों में बल प्रयोग करने के लिये बनी है।
यह मामला पंजाब सरकार की पूरी असफलता दिखा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री के बारे में लोगो की राय सन्तोषजनक नहीं है। हो सकता है अब और कोई आरोपी को जेल से रिहा कराने के लिये इस घटना से प्रेरणा ले इसी तरह की खौफ पैदा कर आरोपी को छोड़ा लें। यह बहुत भयावह स्थिति होगी। जब पुलिस का खौफ खत्म हो जायेगा तो अपराधी अपराध करने से क्यों परहेज करें। अराजकता फैल जायेगी। बार-बार सवाल मन में कौधता है यह क्या हो रहा है।