ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी भले ही एक क्षेत्रीय पार्टी के नेता हैं, किन्तु उनके बयान उनके विरोधियों को विवश कर देते हैं कि वो ओवैसी को गम्भीरता से लें।
भारतीय सियासत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ओवैसी को सबसे अधिक गम्भीरता से लेती है। अब ममता बनर्जी भी इसी जाल में उलझती हुई नज़र आ रही हैं।
भाजपा की तर्ज़ पर ही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की सीएम ने भी ओवैसी को भाव देने की राह पकड़ ली है।
तभी तो 19 नवम्बर को कूचबिहार में टीएमसी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में ममता बनर्जी ने ओवैसी का नाम लिये बिना कहा था कि, ‘मैं देख रही हूँ कि कट्टरपंथी हैदराबाद से हैं, वो भाजपा की बी टीम जैसा व्यवहार कर रहे हैं।’
इसका मतलब स्पष्ट है कि ममता को पश्चिम बंगाल में जहाँ भाजपा-ए से चुनौती मिल रही है, वहीं उन्हें भाजपा-बी के असर की भी चिन्ता सता रही है।
उन्हें नज़र आ रहा है कि यदि उनके मुस्लिम वोट बैंक में ओवैसी ज़रा सा भी सेंधमारी करने में कामयाब रहे, तो उसका नुकसान तृणमूल को ही झेलना होगा। इसीलिए वो ओवैसी पर कट्टरपन्थी होने का तमग़ा लगाकर, उनका समर्थन करने वाले मुसलमानों को आगाह करना चाहती हैं।