अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताबदी वर्ष के सन्दर्भ में भाषाविज्ञान विभाग द्वारा वेबटॉक का आयोजन किया गया। व्याख्यान के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए वक्ता प्रो. नीलाद्री शेखर दाश का परिचय कराया।
भाषा तकनीक, जिसे अक्सर मानव भाषा प्रौद्योगिकी (एचएलटी) कहा जाता है, मानव व्याख्यान और भाषा शैली का कंप्यूटर प्रोग्राम या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के द्वारा विश्लेषण, संशोधन या प्रतिक्रिया करने का अध्ययन किया जाता है।
उन्होने बताया की भाषा प्रौद्योगिकी, जिसे पहले कम्प्यूटेशनल भाषा विज्ञान के रूप में जाना जाता है, एक बहु-विषयक क्षेत्र है जिसमें तकनीकी उपकरणों और विधियों का अध्ययन विस्तार से किया जाता है, जिसके माध्यम से मानव भाषा, बोली और लिखी जाती है जिसे कंप्यूटर द्वारा संसाधित एक रूप में संरचित किया जाता है।
प्रो. नीलाद्री ने बताया की शैक्षिक प्रौद्योगिकी सीखने की सुविधा के लिए कंप्यूटर और शैक्षणिक प्रणाली और अभ्यास का एक संयुक्त उपयोग है। यह उपयोगकर्ता शैक्षणिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए तकनीकी प्रक्रियाओं और शैक्षिक संसाधनों का निर्माण, उपयोग और प्रबंधन करता है।
प्रो. नीलाद्री ने बताया की अनुवाद तकनीक स्वचालित रूप से ग्रंथों का अनुवाद करती है या मानव अनुवादकों की सहायता करती है। शब्दों, वाक्यांशों और वाक्यों के संभावित अनुवादों के कुशल अनुवाद के लिए मौजूदा अनुवादों के साथ अनुवाद की बड़ी मात्रा में ग्रंथों का एक साथ उपयोग करता है।
उन्होने बताया कि टेक्नोलॉजी के प्रयोग से भाषा और वक्ताओं को पहचानने के लिए भाषण डेटा का विश्लेषण किया जाता है। यह एक स्पीकर या विशिष्ट भाषा शैली, भौगोलिक विशेषताओं, सूचना, आदि के साथ बोलने वालों के समूह को पहचानने के लिए एक प्रणाली में स्थानांतरित किया जाता है।
प्रो. नीलाद्री ने आगे बताया कि संवेदना विसंगति निर्धारित करने की कोशिश करता है कि किसी विशेष संदर्भ में शब्द के उपयोग से किस शब्द का श्अर्थश् सक्रिय होता है। यह कई ऑप्शंस में से एक का चयन करने का भी प्रयास करता है जो एक शब्द लेक्सिकोग्राफिक संदर्भ के अनुसार ले जाने में सक्षम होता है।
साथ ही स्पीच कॉर्पस, बोली जाने वाली भाषा की ऑडियो रिकॉर्डिंग का एक बड़ा संग्रह होता है। अधिकांश भाषण कॉर्पोरा में अतिरिक्त पाठ फाइलें भी होती हैं, जिनमें बोले गए शब्दों के रिकॉर्ड और रिकॉर्डिंग में प्रत्येक शब्द का समय होता है।
व्याख्यान के अन्त में उन्होने बताया कि भाषाविज्ञान में आजकल अनुप्रयुक्त भाषा शास्त्र, बाल भाषा अध्ययन, बोली-विद्या, फोरेंसिक भाषाविज्ञान, कोशरचना तथा न्यूरोलिंगुइस्टिक्स के क्षेत्र में काम करने की असीम संभावनाएं हैं।
व्याख्यान में लगभग 200 श्रोता सम्मिलित हुए। अन्त में विभागाध्यक्ष प्रो. एम जे वारसी ने धनयवाद ज्ञापन किया।