कांग्रेस के लिए वोट बैंक दलित मुस्लिम, केन्द्र सरकार से आस- वसीम राइन

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Vote bank Dalit Muslims for Congress, from the central government - Wasim Raine

 

 

अवधनामा संवाददाता

बाराबंकी(Barabanki)। आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन का कहना है कि कांग्रेस सरकार द्वारा दशकों पूर्व धारा 341 के तहत लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध असल मे दलित मुसलमान के खिलाफ सोंची समझी साजिश थी। कांग्रेस ने भी बांटो और राज करो की कूटनीति अपनाई और मुसलमान का इस्तेमाल वोट बैंक की तरह अब तक किया। प्रदेश अध्यक्ष ने केन्द्र सरकार से मांग की कि सबका साथ सबका विकास नारे के तहत दलित मुस्लिमों को उनके मूलभूत अधिकार धार्मिक प्रतिबंध समाप्त कर दिए जाएं।
प्रदेश अध्यक्ष ने जारी एक बयान में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह विभिन्न जातियों और कबीलों के नाम एक विशेष सूची में शामिल कर दें। दस अगस्त
1950 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश के जरिए एक अनुसूची जारी की, जिसमें पिछड़ी जातियों या जनजातियों के भागों को शामिल किया गया था। बाद में इन सूचीबद्ध जातियों और जनजातियों को ही अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति कहा गया। इस अनुच्छेद में दो मुख्य प्रावधान हैं, पहले क्लॉज में बताया गया है कि राष्ट्रपति राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की किसी जाति को सार्वजनिक अधिसूचना के जरिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल कर सकते हैं।
वसीम राइन ने कहा कि दलित शक्ति को धर्म के आधार पर तोड़ने की कोई भी साजिश कामयाब नहीं होगी। दलित चाहे किसी भी धर्म को मानता हो वास्तव में वही भारत का मूल निवासी है। संविधान की धारा 341 (३) में लगे धार्मिक प्रतिबंध को हटाने की मांग करते हुए कहा कि दलित चेतना के विस्तार से सत्ता पर सदियों से कब्जा जमाए बैठे लोग घबरा गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष ने राजनीतिक दलों पर आरोप लगाया कि उन्होंने मुसलमानों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है और कभी भी उनकी बुनियादी समस्याओं की तरफ नहीं देखा।
उन्होंने भारतीय संविधान को दुनिया का बेहतरीन संविधान बताया, लेकिन यह भी कहा कि इसकी एक धारा ने अल्पसंख्यकों के एक कमजोर वर्ग के साथ नाइंसाफी कर रखी है। जिन अंग्रेजों को फूट डालने में महारत थी, उन्होंने भी सभी धर्मों के अनुसूचित वर्ग को एक समान सुविधाएं दे रखी थीं। 1950 में धार्मिक अल्पसंख्यकों से यह सुविधाएं वापस ले ली गईं। बाद में सिखों और नव बौद्धों की तो यह सुविधाएं बहाल कर दी गईं, मगर मुसलमानों और ईसाईयों को अभी भी इससे वंचित रखा गया है।ने कहा कि मुसलमानों की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जिन्दगी गुजर कर रही है। नेताओं को इस गरीबी से निजात दिलाने के लिए सबसे पहले उपाय करने चाहिए।
वसीम राइन ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि मुसलमानो को दलितों बदतर हालत में लाने वाली कांग्रेस हैं नेहरू सरकार ने दस अगस्त १९५० को राष्ट्रपति से एक आर्डर करा कर अध्यादेश लाए मुस्लिम ईसाई धर्म मानने वालों को दलित की सुविधाएँ नहीं मिलेंगी इस नेहरू सरकार के फ़ैसले के नेहरु के साथ मौलाना अब्बुल कलाम आज़ाद रफ़ी अहमद किदवाई व मुस्लिम लीडर भी उतना ही ज़िम्मेदार हैं जितना नेहरू हैं अगर ये मुस्लिम लीडर हम पसमाँदा मुसलमानो को अपना बराबर का भाई मानते तो उस वक़्त आवाज़ उठाते।
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