एस.एन.वर्मा
गुजरात में कांग्रेस को जितनी बड़ी हार मिली है उनकी भरपाई हिमांचल की जीत नही कर सकती। क्योंकि गुजरात हिमांचल की तुलना में बड़ा राज्य है दूसरे हिमाचल में एक ही सरकार लगातार दो बार इधर नहीं आ पाती है। गुजरात में कांग्रेस का अन्तर बहुत ज्यादा है जबकि हिमाचल में भाजपा के घर का अन्तर बहुत कम है। भाजपा की विधायक संख्या बहुमत से महज नौ सीट कम है। कांग्रेस को इस तरफ बराबर सतर्क रहना पड़ेगा। क्योंकि ऊपर से तो मुख्यमंत्री का चुनाव बहुमत से हुआ है, प्रतिद्वन्दी प्रतिभा सिंह ने कहा भी कि जो हाई कमान्ड का निर्णाय है वह मान्य है। पर अन्दर अन्दर बहुत तेज गुटबाजी है।
चुनावी नतीजों के बाद प्रतिभा सिंह ने अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिये पूरा जोर लगाया अपने समर्थकों के साथ चूकि हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के राजपरिवार का बहुत असर है। शपथ ग्रहण के समय राहुल गांधी को बराबर उठकर प्रतिमा सिंह से मिलना उनके परिवार के महत्व और असर को दिखाता है। पता चला है विक्रमादित्य सिंह को महत्वपूर्ण विभाग देने का वादा किया गया है।
कांग्रेस ने राज परिवार से हटकर आम आदमी को मुख्यमंत्री बनाया है इसका सकारात्मक सन्देश जायेगा। कांग्रेस पर परिवारवाद को प्राश्रय देने का जो आरोप लगता है उसका यह काट होगा। वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह क्षात्र जीवन से ही राजनीति में कार्यशील रहे है, विधायक भी रहे है, संगठन में भी रहे है इसलिये अनुभव की कमी नही होगी। पर कांग्रेस को उनके माध्यम से यहां गवर्नंेस माडल स्थापित करना होगा जो आगे आने वाले चुनवो में उदाहरण स्वस्थय पेश किये जा सके। हिमाचल जैसे छोटे राज्य में उप मुख्यमंत्री बनाना बताता है कि एकता के नाम पर वहां सब कुछ ठीक नही है। जो वादे किये गये है वित्तीय दृष्टि से पूरा कर पाना आसान नही होगा। खासकर पुरानी पेन्शन लागू करने का वादा। मुख्यमंत्री ने कहा है पहली बैठक में इसी वादे को पूरा करेगे। हालाकि विशेषज्ञों को विचार है और भी बहुत से वादे है, नौकरी देने का वादा वगैरह पूरा कर पाना निहायत मुशकिल होगा। आगे के होने वाले चुनावों में कांग्रेस के वादो की हिमाचल में की गई पूर्ति पर आम आम वोटरो का ध्यान रहेगा। राजस्थान जहां विधान सभा चुनाव नज़दीक है वहां पायलट और गहलौत की गुटबाजी थमने का नाम नही ले रही है। हालाकि कहा जा है समस्या सुलझा ली गयी है। वहां पर भी हिमांचल प्रदेश की तरह कई चुनावों से परम्परा चल रही है कि लगातार दो बार एक पार्टी की सरकार नही बन पाती है।
कांग्रेस पार्टी के सामने सत्ता तो बाद की बात है अभी मुख्य विपक्षी दल बने रहने की समस्या है। पार्टी के सामने सबसे बड़ा लक्ष 2024 के चुनाव में अपनी स्थिति सुधारने की होगी और मुख्य विपक्षी दल बने रहने की होगी। संगठनात्मक चुनाव में गैर गांधी परिवार को पार्टी अध्यक्ष बनाकर परिवारवाद के आक्षेप से तो मुक्त हुई है पर वर्चस्व अभी कायम है। खरगे हर बात परिवार सलाह मशविरा करके करते है। संगठन में जमीनी कार्यकर्ताओं को लाना है। पुराने जमे हुये नेताओं को हटाना चुनौतीपूर्ण होगा। लोक सभा चुनाव के लिये इतने कम समय में कांग्रेस को रोड मैप तैयार करने की भी चुनौती सामने है।
आप पार्टी कांग्रेस को विपक्ष की सीट से ढकेलती नजर आ रही है। कई क्षेत्रीय पार्टियां भी कांग्रेस को विपक्ष के तीसरे पायदान पर ला चुकी है। आप पार्टी अपने को कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। कांग्र्रेेस के लिये एक सददर्द यह भी है कि भाजपा जहां हारी वहां भी उसका वोट प्रतिशत कम नही हुआ बल्कि बढ़ा है। संगठनात्मक ढांचा भाजपा का अनुकरणीय है।
खरगे की अध्यक्षता को कांग्रेस पार्टी में बदलाव की पहचान बताती है। अब वह विरासत की जगह जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह दे रही है। पर पंजाब में चन्नी को बदलाव के नाम पर मुख्यमंत्री बनाकर पेश किया था पर वहां पार्टी पूरी तरह नाकाम रही है। छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव भी करीब है वहां पर मुख्यमंत्री और सिंह देव का झगड़ा बरकरार है। कर्नाटक में सिद्ध मैया और शिवकुमार की रार बरकार है।
मतलब कांग्रेस फौरी सफलता से भले खुश हो ले, पर उसके सामने मुशकिल दर मुशकिल है। हिमाचल प्रदेश की जनता को 10 गारन्टियां दी है। पूरा कर पाना नितान्त कठिन लग रहा है। यहां कांग्रेस का लिटमस टेस्ट होगा जो आगे के चुनावों में कांग्र्रेस के भविष्य को रेखाकित करेगा। पिछले दो चुनावों में हिमाचल में कांग्रेस को एक भी लोकसभा सीट नसीब नही हुआ है। हिमाचल की सफलता भले ही खुश खबरी है। पर आगे के डगर की मुशकिल कम नही है। सबसे कम समय में ही निबटना है। इन सबको देखते हुये अभी भी भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है हिमाचल में हार के बावजूद है।