अवधनामा संवाददाता
लखनऊ भारत में हरेक व्यक्ति अपनी स्वास्थ्य की देखभाल किफ़ायती ढंग से कर पाए, इसे लेकर 20 साल के अर्जुन देशपांडे ने एक मुहिम सी छेड़ रखी है. अपने इसी उद्देश्य को नई दिशा देने के लिए आज अर्जुन देशपांडे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ से विशेष रूप से मुलाक़ात की. हरेक ज़रूरतमंद शख़्स के लिए स्वास्थ्य लाभ किफ़ायती बन सके, इसे लेकर दोनों में गहन विचार-विमर्श हुआ. दोनों ने इस परिकल्पना को और विकसित करने और ‘जेनरिक आधार’ के ज़रिए इस दिशा में आनेवाले क्रांतिकारी बदलावों को लेकर भी बातचीत की. ‘जेनरिक आधार’ के चलते ग्राहकों को 80% कम मूल्य में दवाइयां मुहैया कराई जाती हैं. अर्जुन देशपांडे और श्री योगी आदित्यनाथ ने इस क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स को सहयोग प्रदान करने और इससे मिलते-जुलते सेक्टरों में विकास को और गति देने पर भी विमर्श किया.
अर्जुन देशपांडे भारत में हरेक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य लाभ को किफ़ायती बनाने के अपने लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में हो रहे सकरात्मक बदलाव को लेकर अर्जुन देशपांडे काफ़ी ख़ुश हैं. अर्जुन इस बात को लेकर भी बेहद संतुष्ट हैं कि उनके प्रयासों को ऐसी बड़ी राजनीतिक हस्तियां का समर्थन मिल रहा है जो ख़ुद भी देश की बेहतरी के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं.
अर्जुन देशपांडे कहते हैं, “मैं श्री योगी आदित्यनाथ का बहुत शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे निजी तौर पर मिलने का वक्त दिया और भारत में औषधि क्षेत्र के बेहतर भविष्य को लेकर मेरे विचारों को अपना समर्थन दिया. हम साझा तौर पर इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि आज की युवा पीढ़ी और भविष्य के उद्यमियों को कैसे आगे बढ़ने का मौका दिया जाए. मैं बहुत ख़ुश हूं और आज के दिन को अपने लिए बेहद भाग्यशाली समझता हूं क्योंकि स्वास्थ्य लाभ को किफ़ायती बनाने, युवा उद्यमियों को सशक्त और भारत में फ़ार्मा से जुड़े लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के मेरे प्रण ने आज एक मूर्त रूप धारण कर लिया है.”
अर्जुन देशपांडे के बारे में
अर्जुन देशपांडे की उम्र इस समय महज़ 20 साल है जिन्हें ‘फ़ार्मा वंडर किड’ के नाम से भी जाना जाता है. उनकी पहचान श्री रतन टाटा के सबसे विश्वसनीय व करीबी लोगों में से एक के तौर पर भी होती है. अर्जुन देशपांडे के प्रयासों से शुरू की गई योजना ‘जेनरिक आधार’ की मौजूदगी देश के 150 शहरों में है जहां पर उन्होंने अनेकों सिंगल मेडिकल स्टोर्स और रीटेलर्स के साथ गठजोड़ कर रखा है.
उल्लेखनीय है कि फ़ार्मसी-जमाकर्ता ब्रांड्स की बजाय सीधे तौर पर उत्पादक से ही दवाइयां हासिल करते हैं और फिर उसे ख़ुदरा व्यापारियों तक पहुंचाने का इंतज़ाम किया जाता है. इस तरह से बिचौलियों की भूमिका ख़त्म हो जाती है और दवाइयां की क़ीमतें प्रत्यक्ष तौर पर कम हो जाती हैं. इस फ़्रेंचाइस मॉडल के तहत ‘जेनरिक आधार’ के ज़रिए ना सिर्फ़ रोज़गार की संभावनाएं बढ़ रहीं हैं, बल्कि सूक्ष्म स्तर पर उद्यमियों को भी काफ़ी बढ़ावा मिल रहा है. पूरे भारत में कंपनी 1500 से अधिक माइक्रो उद्यमियों और
प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर 8000 से अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करने में सफल साबित हुई है.
‘जेनरिक आधार’ की सफलता की पृष्ठभूमि बड़ी रोचक है. अर्जुन देशपांडे का सफ़र तब शुरू हुआ जब वो महज 16 साल के थे. उस उम्र में एक बार उन्होंने एक बुजुर्ग शख़्स को एक औषधि की दुकान के बाहर देखा था जो दुकानदार से अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी के लिए उधार पर दवाइयों देने की गुहार लगा रहा था. ज़ाहिर है कि उस बुजुर्ग शख्स के पास दवाइयां ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे और यही वजह है कि वह दवाइयां उधार देने की मांग कर रहा था. आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर उस बुजुर्ग शख़्स की ये हालत देखने के बाद अर्जुन बहुत ही भावुक हो गये थे. ऐसे में उन्होंने समाज में आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके के लिए कुछ करने के बारे में सोचा. वहीं से उन्हें ‘जेनरिक आधार’ की शुरुआत करने का ख़्याल आया ताकि वे अपनी कोशिशों से ज़रूरतमंद मरीज़ों तक मदद पहुंचा पाएं.
ग़ौरतलब है कि लगभग 60% भारतीय रोज़मर्रा की दवाइयां ख़रीदने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं क्योंकि उन्हें फ़ार्मा ब्रांड्स सीधे तौर पर दवाइयां ख़रीदने के लिए अतिरिक्त पैसे देने पड़ते हैं. इस बारे में जानकारी मिलने के बाद अर्जुन देशपांडे ने ‘जेनरिक आधार’ की परिकल्पना रची. यह एक ऐसा स्टोर है जिसका अनगिनत फ़ार्मास्युटिकल स्टोर्स के साथ साझेदारी है और इसका मूल उद्देश्य B2B और B2C के फ्रेंचाइस मॉडल के आधार पर कम क़ीमतों पर मरीज़ों के लिए दवाइयां बेचना है. उल्लेखनीय है कि इसके तहत ग्राहकों को 80% तक कम क़ीमतों पर दवाइयां बेची जाती हैं जो सीधे WHO-GMP फ़ैसिलिटीज़ से मुहैया कराई जाती हैं.