उत्तर प्रदेश में प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी मरीजों को मिली आशा की नई किरण
इस दुर्लभ बीमारी के दुनिया भर में केवल 200 विषम मामले रिपोर्ट किए गए, जिनमें विभिन्न परिणामों वाले केवल 10-11 रोगियों को हुए बोन मैरो ट्रांसप्लांट का डेटा उपलब्ध
लखनऊ। अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल ने एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल करते हुए हेमेटोलॉजिस्ट और बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. प्रियंका चौहान के नेतृत्व में एक्टिवेटेड पीआई3के डेल्टा सिंड्रोम (एपीडीएस) के लिए सफलतापूर्वक पहला एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया है। इस दुर्लभ प्राइमरी इम्यूनोडेफिशिएंसी रोग से पीड़ित 14 वर्षीय लड़का है, जिसमें सात साल की उम्र में इस बीमारी को डायग्नोस किया गया था। इलाज के लिए उसके शरीर में एंटीबॉडीज पूरी करने के लिए हर महीने इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन दिया जा रहा था। यह इलाज न केवल महंगा है, बल्कि रोगी की साधारण पारिवारिक स्थिति के चलते इलाज की उपलब्धता भी चुनौती बन चुकी थी।
पिछले वर्ष, मरीज और उसके परिवार ने लखनऊ के अपोलोमेडिक्स अस्पताल में इलाज के लिए संपर्क किया। राहत वाली बात यह रही कि मरीज का भाई बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए पूर्ण एचएलए मैच डोनर पाया गया।
अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल, लखनऊ में हेमोटोलॉजी और ऑन्कोलॉजी की कंसल्टेंट डॉ. प्रियंका चौहान ने बताया, “प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी रोग दुर्लभ आनुवंशिक स्थिति है, जो बार-बार होने वाले या गंभीर संक्रमण, ऑटोइम्यून विकारों और कैंसर के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता के कारण रोगियों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करती हैं। इस रोग के दुनिया भर में केवल 200 मामले सामने आए हैं, लेकिन साइंटिफिक जर्नल्स के अनुसार आज तक केवल 10-11 मामलों में ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट में सीमित सफलता देखी गई है। उत्तर प्रदेश में इस मर्ज से पीड़ित रोगियों के लिए एक आशा की किरण तब जगी, जब 14 वर्षीय लड़के का लखनऊ के अपोलो मेडिक्स अस्पताल में सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया। उपचार के विकल्पों में चल रहे अनुसंधान और प्रगति के साथ, इस दुर्लभ प्राइमरी इम्यूनोडेफिशिएंसी रोग से प्रभावित लोगों के लिए बेहतर परिणाम और जीवन की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद बढ़ी है।”
इस सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया चुनौतियों से भरी हुई थी। मरीज का लीवर भी इस बीमारी से प्रभावित था, जिससे ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई थी। इसके अतिरिक्त, मरीज बार-बार संक्रमण के कारण बेसलाइन फेफड़ों की बीमारी से भी पीड़ित रहा था, जिसके लिए प्रत्यारोपण से पहले और बाद में इसे सावधानीपूर्वक मैनेज किया जाना बेहद आवश्यक था। ट्रांसप्लांट के दौरान श्वसन संक्रमण एक प्रमुख चिंता का विषय था, जिसके लिए एंटीबायोटिक और एंटीफंगल उपचार की आवश्यकता थी, साथ ही उसके इम्यूनिटी सिस्टम बढ़ाने के लिए व्हाइट ब्लड सेल्स (ग्रैनुलोसाइट्स) भी चढ़ाए गए। उपचार के दौरान, रोगी में लक्षणों और जटिलताओं को मैनेज करने के लिए उसकी सहायक देखभाल भी की गईं। इलाज की प्रगति पर नज़र रखने और किसी भी चिंता की स्थिति का तुरंत समाधान करने के लिए नियमित निगरानी और फॉलोअप बेहद आवश्यक था। ट्रांसप्लांट के दो महीने बाद, उसके शरीर में 98% डोनर सेल्स काम कर रही हैं और उसका स्वास्थ्य निरंतर बेहतर हो रहा है, जो सकारात्मक परिणाम का संकेत है।
अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल के सीईओ एंड एमडी डॉ. मयंक सोमानी ने अभूतपूर्व उपलब्धि के बारे में चर्चा करते हुए कहा, “प्राइमरी इम्यूनोडेफिशियेंसी मरीज की सेहत के लिए कई जटिल चुनौतियों को पैदा करती है और इस दुर्लभ रोग के लिए उत्तर प्रदेश का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने में हमारी उपलब्धि एक आशा की किरण लेकर आई है। दुनिया भर में केवल कुछ ही मामलों के अलावा, हमारे प्रयासों और उच्च कुशल डॉक्टरों की एक टीम ने उपचार के विकल्पों को बढ़ाने और रोगियों के लिए उम्मीद बढ़ाने में महत्पूर्ण सफलता हासिल की है।”