पीटीआई
मुंबई
यदि उत्तर प्रदेश की नई सरकार चुनाव प्रचार में किए गए वादे के अनुसार किसानों की कर्ज माफी किए जाने से बैंकों को 27,420 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा सरकार के राजकोषीय घाटे का गणित भी गड़बड़ा सकता है। देश के सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक एसबीआई की रिपोर्ट में यह बात कही है। बीजेपी ने यूपी चुनाव से पहले अपने मेनिफेस्टो में सत्ता में आने पर किसानों के कर्ज माफ किए जाने का ऐलान किया था। बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 403 सदस्यों वाली विधानसभा में से 325 सीटें जीत ली हैं, इसके बाद से ही किसानों की कर्ज माफी को लेकर बातें उठने लगी हैं।
सोमवार को जारी की गई एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार कर्मशल बैंकों के 86,241.20 करोड़ रुपये किसानों पर बकाया हैं। औसतन प्रति कर्जधारक किसान पर बैंकों का 1.34 लाख रुपये तक बकाया है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से ज्यादातर लोग छोटे और सीमांत किसान हैं। इन्हीं किसानों के कर्ज को माफ किए जाने की बात की जा रही है। 2012 के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डेटा के मुताबिक 31 प्रतिशत कृषि लोन सीमांत और छोटे किसानों को (2.5 एकड़ तक की जमीन के मालिक) दिए गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सीमांत और छोटे किसानों के लोन माफ किए गए तो बैंकों को 27,419.70 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना होगा। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में करीब 40 फीसदी परिवार सीधे तौर पर खेती से जुड़े हुए हैं। इनमें से लगभग 92 फीसदी किसान छोटे और सीमांत किसान हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में यूपी सरकार का कुल रेवेन्यू 3,40,255.24 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। इस तरह यदि सरकार 27,419.70 करोड़ रुपये का कृषि लोन माफ करती है तो उसे अपने रेवेन्यू में 8 पर्सेंट तक का नुकसान उठाना पड़ेगा।
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