अवार्ड न लेने का फैसल मीडिया में हो रही बदनामी और हुकूमत की जवाब तलबी का नतीजा

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उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के ज्यादातर $फैसलों में पारदर्शिता पर संदेह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की जानिब से जब ईनामात की तक़सीम में बंदरबाट की तफसील सामने आयी तो ना सिर्फ मोहिब्बाने उर्दू बल्कि हर साहबे अक़ल और ईमान पसंद शख्स की आंखें हैरत से फटी रह गयीं क्योंकि ईनामात पाने वालों की फेहरिस्त में अकादमी की चेयरपर्सन पदमश्री प्रो. आसफा ज़मानी और अकादमी के तीन मेम्बरान के नाम भी शामिल थे।

आमतौर पर उर्दू वाले खामोश तबा वाक़े हुए हैं और इससे पहले होती रही बदउन्वारियों पर ख़ामोशी का मुज़हरा करते आये हैं लेकिन इस मर्तबा जब अकादमी का रवैया बदउन्वानी की इंतिहा को पार कर गया तो न सिर्फ उर्दू बल्कि दीगर ज़बानों के अख़बारात और सोशल मीडिया पर सख्त एहतिजाज सामने आया जिसके पेशे नजऱ प्रो. आसफा जमानी और दिगर तीनों मेम्बरान ने एक प्रेस रिलीज जारी कर अपने अवार्ड वापिस करने का एलान किया जबकि उनके अवार्ड वापसी के एलान से पहले ही प्रिंसिपल सेक्रेटरी हुकूमत उत्तर प्रदेश जितेंद्र कुमार ने अपने पत्र संख्या (1-उर्दू/21/2019) के ज़रिए सेक्रेटरी उर्दू अकादमी से तीन दिन के अंदर फाइल समेत रिपोर्ट मांगते हुए ईनामात की रक़म की अदाएगी पर जाँच मुकम्मल होने तक हुक्में इम्तीनाई भी जारी कर चुके थे।
क्या उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी में यह बंदरबाट पहली बार सामने आयी है। नहीं। इससे पहले सालभर अकादमी उर्दू के फरोग़ के नाम पर सेमिनार और मुशाएरों के लिए दी जाने वाली इमदादी रक़म में भी पारदर्शिता नहीं बरती गयी जिसे जितना चाहा उतना पैसा दे दिया गया और मुशायरे के आयोजको से कोई जवाब नहीं मांगा गया। उन्होंने हासिल की गयी रकम को कहां और कैसे खर्च किया इन प्रोग्रामों में शिर्कत करने वाले लेखको और कवियों को लिफाफे में क्या दिया गया, इसके बारे में आज हमने शहर के कवियों और साहित्यकारों व सोशल मीडिया पर आने वाली टिप्पणियों का जायज़ा लिया।
मारूफ़ शायर वासिफ़ फारूकी ने लिखा कि मौजूदा हुकूमत ने कुछ ऐसे फैसले किये हैं जिनकी उम्मीद नहीं थी। उर्दू अकादमी में जो कुछ हुआ वह निहायत अफसोसनाक है इन हालात में अगर अकादमी के जि़म्मेदारान इसी तरह की लापरवाही बरत्ते रहे और तमाम नियम क़ानून की अनदेखी करते रहे तो मुम्कीन है कि कहीं मौजूदा हुकूमत अकादमी को बंद करने का फैसला ना सुना दे।
अबरार मुजीब ने लिखा कि आप चेयरपर्सन और एग्जि़केटिव कमेटी के मेम्मबर की हैसियत से ईनामात के फैसले में भी शामिल रहे होंगे। लिस्ट पर आपके दस्तख़त होंगे। आपको उसी वक्त एतराज़ करना चाहिए था अपना इस्तिफा भी दे सकते थे। बात मीडिया तक आ गयी अब ईनाम वापसी की कोई इख्लाक़ी एहमियत नहीं रह गयी।
आदिल फराज़ ने उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अवार्ड तक़सीम में हुई बेज़ाब्तगी और हंगामें के बाद अकादमी की चेयरपर्सन पदमश्री आसफा ज़मानी और दिगर अवार्ड कमेटी के मेम्बरान के खुद को दिये गये अवार्ड ना लेने के फैसले पर लिखा कि अवार्ड ना लेने वाली प्रेस रिलीज़ उस वक्त जारी की गयी जब हुकूमत ने जब्ते के खिलाफ दिये जा रहे ईनामात पर रोक लगाते हुए तीन दिन में अकादमी को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब तलब किया। इसलिए चेयरपर्सन और दिगर दो मेम्बरान का अवार्ड ना लेने का फैसला उनकी मुंसीफाना सोच की ग़म्माज़ी नहीं करता बल्कि उन्होंने जाब्ते की खिलाफवर्जी के डर और उर्दू दां तब्के में जारी हंगामें की बुनियाद पर यह फैसला लिया। अगर मीडिया के ज़रिए इस बदउन्वानी की पोल ना खोली जाती तो शायद चेयरपर्सन और मेम्बरान अवार्ड न लेना फैसला ही ना करते। इसलिए हुकूमत को मुल्ज़मीन के खि़लाफ सख्त कार्यवाही करना चाहिए। चेयरपर्सन आसफा ज़मानी की मौजूदगी में ही खेल खेला गया है। इसलिए अवार्ड न लेने का फैसला और हो रही बदनामी व जारी हंगामें के सबब लिया गया।
डॉ अब्दुल मोईद (जनरल सेक्रेट्री जदीद मौलाना अली मियाँ वेलफेयर सोसाइटी) ने इस पूरे मामले पर अफसोस का इज़हार करते हुए कहा कि इस खुलमखुल्ला बेजाब्तगी के लिए मोहिब्बाने उर्दू को अकादमी के उन मेम्बरान इस्तिफ़े का मुतालबा करना चाहिए। यह हरकत काबिले माफी नहीं है और न ही प्रोफेसर आसफा जमानी की वज़ाहत लायके इतमीनान है दरअस्ल यह बेईमानी और बदउन्वानी की इंतिहा है।
शकील अश्रफ कहते हैं अकादमी की चेयरपर्सन और सेक्रेटी के तरीक़ए कार में पारदर्शिता नहीं है। साल 2017 में अकादमी ने नौजवान सहाफी का अवार्ड एक ऐसे सहाफी को दिया था जो अपनी मुलाज़मत से सुबुकदोश हो चुके थे यानि उनकी उम्र 60 साले से तजावुज़ कर चुके थे। इसी तरह गुजिश्ता साल सहाफत का अवार्ड एक ऐसे शख्स को दिया गया जो बाक़ायदा सहाफी ही नहीं है और उन किताबों पर अवार्ड दिया था जो अकादमी के ही माली मदद से शाया हुईं थी। इस पर भी कुछ लोगों ने अखबारात में सवाल किये थे लेकिन अकादमी ने मनमाने और ग़ैरदस्तूरी रवैया पर क़ायम रही।
डॉ मुईनुल इस्लाम बस्तवी कहते हैं कि प्रो. आसफ ज़मानी अकादमी के माली मदद से होने वाले अकसर प्रोग्रामों कहीं सदर कही मेहमाने खुसूसी के तौर पर शिर्कत करती नजऱ आती रही हैं। क्या उनकी निगाह वाकई इतनी कमज़ोर कि उन्हें प्रोग्राम की नौवइयत और इस पर होने वाले खर्च का अंदाज़ा भी नहीं हो सका। अकादमी ने ऐसी बहुत सी फर्जी तंजिमो को भी माली मदद दी जो सिर्फ इसलिए बनाई गयी थी कि अकादमियों से पैसा लिया जाये और अपने ज़ाती खर्च चलाए जाययें इसमें ऐसी भी तंजि़में हैं जो खुद अकादमी के मुलाज़मीन की हैं। इस मर्तबा अकादमी ने हदें पार ली। तो हंगामा होना ही था।
अक़ील किदवई कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि बदउन्वानी सिर्फ चेयरपर्सन और तीन दिगर मेम्बरान के ईनाम लेने तक महदूद है बल्कि ईनामात में हर साल यही होता है और इस साल भी यही हुआ है। लेकिन चेयरपर्सन और मेम्बरान के नाम जुड़ जाने से हंगामा बढ़ गया। अगर पूरे मामले कि जाँच करायी जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। उन्होंने यह भी सवाल किया कि मौजूदा सेक्रेटी एस रिज़वान अहमद तकऱीबन गुजि़ष्ता दस वर्षो से अकादमी में जमे हुए हैं। क़ागज़़ी खाना पूरी करने के लिए वह तीन मर्तबा अकादमी से थोड़े थोड़े वक्फे के लिए अलग हुए। उन्होंने अकादमी के ट्रेजऱार की तक़रूरी पर भी सवाल उठाया कि अकादमी के दस्तूर के मुताबिक अकादमी का ट्रेजऱार फाइनेंस डिर्पामेंट से होना चाहिए लेकिन वह भी भाषा से ही आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि खबरें तो यहा ं तक हैं कि अकादमी का सारा निज़ाम सेक्रेटरी ही चला रहे हैं और चेयरपर्सन भी उनके सामने कुछ नहीं है। इसी तरह सेक्रेटरी साहब मेम्बराने को मुशायरे का कन्वीनर बना कर पांच पांच लाख रूपये उनके एकाउंटस में ट्रांस्फर करवा देते हैं फिर वह जाने और मुशायरा।
शेख़ फिरासत हुसैन ने कहा कि अख़बारात में जो कुद अकादमी के बारे ख़बरें आ रही हैं वह अफसोस नाक हैं। उन्होंने कहा कि हैरत तो प्रो. आसफा जमानी के उस बयान पर है जिसमें उन्होंने सारी हदें पार कर दीं। चेयरपर्सन साहबा फरमाती हैं कि पहले भी अवार्ड इसी तरह लिये जाते रहें हैं इसमें कुछ भी ग़लत नहीं किया।
ज़रूरत इस बात की है कि ना सिर्फ चेयरपर्सन उर्दू अकादमी के मेम्बरान बल्कि ईनामात की मुकम्मल कार्यवाही की उच्चस्तरीय जाँच की जाये और इस जाँच के दायरे में तमाम माली मामलात को भी शामिल किया जाये। क्योंकि अकादमी को हुकूमत के ज़रिए दिया जाने वाला बजट किसी शख्स का निजि माल नहीं है कि जैसे चाहे और जहाँ चाहे खर्च कर दे, इसलिए हुकूमत को अपने समस्त कामों में पारदर्शिता का यकीन दिलाने के लिए ज़रूरी है कि वह फ ौरी तौर मौजूदा सेक्रेटरी और चेयरपर्सन को बर्खास्त करे ताकि जाँमें किसी किस्म की रूकावट न आने पाये और अवाम में अकादमी की धूमिल होती छवि फिर से बहाल हो सकें।

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