एस.एन.वर्मा
मो.7084669136
मौसम को लेकर दुनिया भर में अध्ययन हो रहे है सबका निष्कर्ष यही निकल रहा है कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन ही इन समस्याओं का मूल है। पता लगाया जा रहा है कि लू, तूफान, सूखे जैसी घटनाओं की वजह क्या है। इन दिनों की गर्मी ऐतिहासिक रिकार्ड बन रही है। पता लगाया जा रहा है इसकी क्या वजहे है। ख्याल है कि अने वाले दिनों में इनकी क्यों वजहे है। ख्याल है कि अने वाले दिनों में इनकी तीव्रता और तेज होगी।
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से जलवायु का सिस्टम अनुमान से बढ़कर बदल रहा है। आर्कटिक औटर अन्टार्कटिक में बर्फ तेजी से पिघलती है। तो वातावरण में सीधी प्रक्रिया होती है। यह वातारण को ज्यादा गर्म कर देती है। जब औसत तापमान बढ़ता है तो वातावरण में और तापमान में उतार चढ़ाव ज्यादा होता है। हालकि यूनिवर्सिटी के बन्जामिन जैविक के अनुसार जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है। वाष्पीकरण तेज हो जाता है। इससे गर्म और सूखा माहौल तैयार हो जाता है। नतीजा यह होता है कि पौधों और मिट्टी में वाष्पीकरण तेज हो जाता है। मतलब पानी भाप बन कर उड़ने लगता है। फलतह जमीन सूखने लगती है। सूखी हुई जमीन और ज्यादा गर्मी पैदा करने लगती है। इससे वायुमन्डल के तापमान में अत्याधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है। तेजी से बढ़ रही अति विषम जलवायु की घटना वेहद नुकसान पहुचाने वाली घटनायें है।
भारत में गर्म हावाओं को लेकर बेन्जामिन ने 2015 में टीम के साथ गहन अध्ययन किया था। क्योंकि इसने भारत को अत्याधिक प्रभावित किया था। टीम ने बारिश के पैटर्न, मिट्टी की नमी और तापमान का अध्ययन किया था। स्टडी से निशकर्ष निकला था कि भारत की मिट्टी में सूखापन बढ़ गया है। नमी बेहद निचले स्तर पर पाई गई है। नतीजनन गर्मी चरम पर पहुंच गई है। 2015 की गर्म हवाओं ने भारत में भारी तबाही मचाई थी। जानमाल का भारी नुकसान हुआ था। सबसे बुरा असर लोगों के जीवन के गुणवत्ता पर पड़ा है। लोगों के सांसों के प्रणाली पर भी असर पड़ा है। बच्चे में सांसों से जुड़ी परेशानियां बढ़ गई। अस्थमा वगैरह की पेरशानी दिखने लगी है। सबका निचोड़ है की गर्मी हमारे लिये भायनक समस्यायें बढ़ा रही है और गर्मी अभी बढ़ा रही है।
पोर्टलैन्ड स्टेट यूनिवर्सिटी के विवेक शान दास बताते है सबसे पहले शहरी गर्मी द्वीपों पर साल 1850 में दस्तावेज तैयार हुआ था। जिसमें शहरों में तापमान और नमी वाले उन इलाकों की तुलना करता है जहां सड़के इमारते आदि नहीं बनी है। इनमें जो मुख्य फर्क आता है वही शहरी गर्म द्वीव प्रभाव है। उपरोक्त घटनाओं को अन्जाम देने वाली वजहों का हमने पता लगया। शहरों के निर्माण में कांक्रीट, सड़के डामर आदि का इस्तेमाल होता है। इनकी बनावट भी घनी हाती है और इन्हें गहरे रंगों में रंगा जाता है। ये सूर्य के शार्टबेव रेडियेशन को सोख लेते है। पर इसके उलट हरीभरी जगह इसे रेडियेशन को सीखती है और इसे खत्म कर देती है। पेड़ और पौधे पानी का संचार करते है जिससे वातावरण ठन्डा रहता है। पर सख्त सामान गर्मी को बढ़ा देते है। शहरों में ये सब गर्मी बढ़ा देते है। बड़ी इमारते भारी अवरोध पैदा कर गर्मी बढ़ा देते है। क्योंकि समुद्र के किनारे बसे शहरों के इमारतों की ओर जब जलमार्ग से हवायें चलती है तो इमारते उनका रास्ता रोक देती है। नतीजतन वातारण की गर्मी कम नहीं हो पाती हमेशा गर्म वातावरण बना रहता है।
शहरों के भीतर भी तापमान में बहुत फर्क पाया जाता है इन्हें हाटस्पाट कहते है। पड़ोसियों के घरों के बीच 12 डिग्री सेल्सियस का फर्क आम बात है। इससे पता चलता है कि सड़के तापमान बढ़ा देती है। पिछले साल भारत में काफी दिन तापमान 40 डिग्री या उससे ऊपर रहा। जहां दो इलाकों का अन्तर 10 डिग्री का हो वह 20 डिग्री भी हो सकता है। यह फिक्र करने की बात है। जहां निर्माण होगा वातावरण गरम होगा। इसमें सिर्फ ऊंची इमारते ही नहीं है। कम ऊंची इमारते, इटो से बसे दो या एक मन्जिल तक बने घर, पार्किग क्षेत्र जहां सूरज की किरणे यारिडिपेशन सतह से टकराता है। तब गर्मी पैदा करते है। इसलिये योजनाकारों को ऐसी योजनायें बनानी चाहिये जिसमें पेड़ों के लिये पर्याप्त जगहें हों।
कम आय वालो के इलाके ज्यादा गर्म होते है। इसे लग्जरी इफेक्ट कहते है। क्योंकि अमीरों को पास हरियाली के लिय जगह होती है। भारत में हर साल असामान्य ठन्ड या गर्मी से 7,40,000 से ज्यादा मौते होती है। इसमें अधिकतर निम्न आय वर्ग के लोग रहते है। शहरो में खूब पलायन होता है। इसलिये योजना कर ऐसी इमारते बनानी चाहिये जो तापमान रोकने में कामयाब हो। इसके लिये हरियाली का इन्तजाम बहुत जरूरी है। शहरो को बसाने के लिये जंगलों की कटाई आम बात है। जिस तुलना में कटाई हो उससे ज्यादा तुलना में पेड़ लगाना चाहिये। अगर आज पेड़ लगाये जायेगे तो 2030 तक, जैसा कि अनुमान है ज्यादा गर्मी बढ़ जायेगी तो ये पेड़ उस गर्मी के रोकने लायक तैयार हो जायेगे। ऐसा नहीं है कि आज पेड़ लगायेगे तो कल तैयार हा ेजायेगे। व्यवस्थित लगातार पेड़ लगाने की योजना चलती रहनी चाहिये। निर्माण और विनाश तो साथ-साथ चलेगे ही पर इस विनाश के बीच पेड़ो का विकास भी जरूरी है। अन्यथा मानवता घोर संकट में फंस जायेगी।
नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता पर सृष्टि का नवगान फिट फिट