एनपीए का सच

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एस एन वर्मा

एनपीए यानी नान परफर्मागिंग असेट उस लोन को कहते है जो एक दशक से फंसे हुये हो। कर्जदार जिसे अदा नहीं कर रहा हो। ऐसे कर्ज को बहेखाते में डाल दिया जाता है और एन पी ए से निकाल दिया जाता है। बहेखाते में जाने वाले रकम एनपीए से घटा दिया जाता है। तो एन पी ए में जितनी रकम बट्टेखाते में जाती है कम हो जाती है। बट्टखाते का यह मतलब नहीं होता की वसूली की कार्यवाई रोक दी जाया वसूली के बराबर प्रयास होते रहते है। अगर बट्टेखातेे की रकम कोई लौटाता है तो यह रकम एनपीए घोषित नहीं किया जाता है न एन पी ए खाते में जुड़ता है। यह रकम अपग्रेड कर दिया जाता है यानी उसका खाता अपग्रेड हो जाता है।
सरकारी बैकों के आकड़ों के अनुसार सकल और विशुद्ध एनपीए में पांच वर्षो में लगातार कभी आ रही है। पर आरबीआई ने अपने सालाना रिपोर्ट आन टेªन्ड एन्ड प्रोग्रेस आफ बैकिंग इन इन्डियन में सरकारी बैकों के आकड़े को सपोर्ट नहीं करती है। रिपोर्ट ने बताया है 2021-22 में सरकारी बैकों के एनपीए में बड़े पैमाने पर बकाया कर्ज की राशि को बट्टेखातेे में डालकर अपने एनपीए में कभी दिखाई है।
पिछले साल सरकारी बैंको के एनपीए में 2,14,317 करोड़ रूपये की कमी आई है। जिसमें 1,19713 करोड़ रूपये की कमी पुराने कर्जे को बहेखाते में डालने से आई हैै। इसी दौरान वसूली से एनपीए में 56,959 करोड़ रूपये की कभी हुई है। इससे पता चलता है सरकारी बैकों के सकल एवम विशुद्ध एनएपीए में पिछले पांच सालों से लगातार गिरावट हुई है। पिछले एक साल के दौरान कुल अग्रिम के तुलना में सकल एनपीए का स्तर 9.1 प्रतिशत से गिरकर 7.3 प्रतिशत और शुद्ध एनपीए 3.7 प्रतिशत से घट कर 2-2 प्रतिशत पर आ गया है। 2016-17 में सरकारी बैकों का कुल एनपीए 11.7 प्रतिशत और शुद्ध एनपीए 6.9 प्रतिशत था। इसको लेकर सदन में गर्मगर्म बहस हुई है। एनपीए में दर्शाय कमी को वित्तमंत्री सरकार के प्रबन्धन की कुशलता बताती है और विपक्ष इसे बट्टे खाते में डालने की क्रिया बता रहा है। आरबीआई ने वार्षिक रिपोर्ट में साफ-साफ बताया है कि अस्थिर वैाश्विक हालात के मद्देनजर एनपीए बढ़ने का खतरा आ गया है। वित्त वर्ष 2021-22 पर नजर डाले तो तस्वीर इस तरह उभरती है। एनपीए में कुल कमी 2,14317 करोड़ वसूली गई राशि 56959 करोड़, अपग्रेड की गई राशि 37565 करोड़ और बहेखते में डाली गई रकम 1,19,713 करोड़ रूपये।
बैकों में अल्पसंख्यक समुदाय में बकाये की राशि 1.18 प्रतिशत बढ गई है। सार्वजनिक बैकों में यह वृद्धि ग्यारह सालों में आई है। 2011 में इस समुदाय पर बकाया कर्ज, 1,43,397 करोड़ रूपये था जो 2021-22 में बढ़ कर 3,12,566 करोड़ पर पहुंच गया।
बैकों में धोखाधडी के केस बहुत बढ़ गये है और बढ़ते जा रहे है। लोग गलत, नामो, गलत रिकार्डो गलत पता पर भारी भरकम कर्ज ले लेते है। बिना सेक्योरिटी के भी लोन पा जाते है। इसमें, अफसरों, नेताओं, प्रभावशाली हास्तियों और बैंक कर्मचारियों के ऊपर सन्देह जाता है। बड़ा लोन लेकर लोग विदेश भाग जाते है। लम्बे अवधि तक मुकदमा खिचता रहता है। कानून में मकड़जाल में फंसा रहता है। कई हस्तियोे के नाम अखबारों मे आते रहते है जो लोन लेकर विदेश में मौज कर रहे है।
सरकार को इन सबको दृष्टि में रखते हुये वर्तमान कानूनों में संशोधन करना चाहिये। नियम सख्त हो जिससे लोन लेने वाला न तो मंाग पाये और न जो लोग फ्राड लोन दिलाने में पार्ट अदा करते है वो बच पाये। इतनी कठोर हो कि लोग भय खाये। अपराधी तो अपराध करेगे पर संख्या में निश्चित कमी आयेगी। कर्ज अदायगी के नियम भी सख्त होेनंे चाहिये जिससे डिफाल्टर लोन अदायगी में ढीला ढाली नही करें। इसमें आबीआई को पहल करनी चाहिये क्योकि बैकिंग व्यवस्था उसी का विषय है। हमारे आरबीआई गवर्नर बड़े नामी योग्य और अन्तरराष्ट्रीय फलक के सितारे है। उन्हें अपनी चमक पूरी तरह दिखानी चाहिये। जिससे सरकारी पैसा आमजन के टैक्स का पैसा बर्बाद न हो। एनपीए से लोग गुमराह न हो।

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