अवधनामा संवाददाता
समृद्धि परियोजना के अन्तर्गत विकास खण्ड जखौरा में हुआ आयोजन
ललितपुर। एक्शन एड के सहयोग से संचालित समृद्धि परियोजना के अन्तर्गत जनपद ललितपुर के विकास खण्ड जखौरा के 15 गांव थनवारा, जैरवारा, आलापुर, धर्मपुरा, अडवाहा, महरौनी खुर्द, सिलगन, बुढवार, महेशपुरा, नैगांव कलां, बम्हौरी कलां, पटौराकलां, भरतपुरा, सतगता, दावनी के लघु सीमांत व भूमिहीन किसान महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण दिया गया यह कार्यक्रम 10 जून से 15 जून तक आयोजित किया गया। कार्यक्रम में समृद्धि परियोजना के जिला इन्वेस्टीगेटर व परियोजना की समस्त टीम उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में 6 गतिविधियों पर जैसे कि पोषण वाटिका, मचान विधि से सब्जी की खेती, बकरी पालन, मुर्गी पालन, जैविक खाद व जैविक टीकनाशक दवा एवं बीज उत्पादन पर उद्यमियो को प्रशिक्षित किया गया। जिसमें सर्व प्रथम समृद्धि परियोजना के फील्ड ट्रेनर शिव सिंह, रवि झां एवं नन्दलाल ने पोषण वाटिका के बारे में बताया गया उन्होने बताया कि सब्जियो की खेती करने का एक तरीका है जिसमें धान की श्रीविधि के सिद्वांतो का पालन कर के अधिक उपज प्राप्त किया जाता है जैसे कम बीज दर, बीज उपचार एवं संशोधन, पौधों के बीच अधिक दुरी, 2 से 3 बार खरपतवार की निकासी एवं वीडर से कोड़ाई, फसल की देखभाल सामान्य सब्जियों की फसल की ही तरह की जाती है। घर पर किशोरियों एवं गर्भवती महिलाओं को पूर्णत: पोषण मिल सके। इसके बाद मचान विधि से सब्जी की खेती पर फील्ड ट्रेनर राहुल श्रीवास्तव व कमलेश कुशवाहा ने बताया कि मचान विधि में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती कीजा सकती है। मचान विधि से खेती करने से कई लाभ हैं। मचान में खेत में बांस या तार का जाल बनाकर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है। मचान का प्रयोग सब्जी उत्पादक बेल वाली सब्जियो ंको उगाने में करते हैं। मचान के माध्यम से 90 प्रतिशत फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है। गर्मियों में अगेती किस्म की बले वाली सब्जियों को मचान विधि से लगाकर किसान अच्छी उपज पा सकते हैं। इनकी नर्सरी तैयार करके इनकी खेती की जा सकती है। पहले इन सब्जियो की पौध तैयार की जाती है और फिर मुख्य खेत में जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाये रोपण किया जाता है। इन सब्जियो की पौध तैयार करने से पौधे जल्दी तैयार होते हैं। इसे लखपति मॉडल भी कहा जाता है। इसमें मचान विधि से कम भूमि पर तथा न्यूनतम लागत मे एक से अधिक तथा वर्ष भर सब्जी का उत्पादन कर किसानो की आय बढाना। इसके पश्चात परियोजना के फील्ड ट्रेनर सीताराम पंथ व रवि झॉ ने मुर्गी पालन के बारे में बताया कि यह एक ऐसा व्यवसाय है जोकि इसको कम पूंजी से प्रारम्भ कर सकते है इसके अधिक स्थान की आवश्यकता नहीं है खेती एवं घर के कामों के साथ कर सकते है। प्रतिदिन अधिकतम तीन घंटे का समय लगता है लाभ ज्यादा है नुकसान की संभावना बहुत कम है अंडे और मांस का बाजार उपलब्ध है ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र सभी जगह आसानी से विक्री है परिवार में एक से अधिक सदस्यों को रोजगार मिलने की संभावना है परिवार का कोई भी सदस्य देखरेख कर सकता है। इसके बाद परियोजना जिला इन्वेस्टीगेटर विनय श्रीवास्तव व फील्ड ट्रेनर कमलेश कुशवाहा ने जैविक खाद जीवामृत, घन जीवामृत व जैविक कीटनाशक दवा नीमास्त्र, ब्रहमास्त्र व अग्निआस्त्र के बारे में बताया कि जैविक खाद व जैविक कीटनाशक दवा से पौधों की वृद्धि और विकास के साथ साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है। यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है। पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है। पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है। प्राकृतिक खेती करने से महिला किसानो की खेती की लागत को कम करना व रासायनिक खादों से मुक्त होना। इसके पश्चात परियोजना के फील्ड ट्रेनर सीताराम ने बीज उत्पादन के बारे में बताया कि आनुवंशिक रूप से एक विशेष किस्म के लिए वर्णित विशेषताओं के साथ शुद्ध इस बीज को एक वर्ग फाउंडेशन बीज नामक होने की आवश्यकता होती है इस तरह के बीज कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य अनुसंधान केन्द्र, आई.सी.ए.आर. के रूप में नामित सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों से प्राप्त किया जाना चाहिए फसल अधिकृत प्रमाणित एजेंसियों से नियमित रूप से निरीक्षण के साथ निर्धारित गुणवत्ता नियंत्रण के साथ विकसित किया जाना चाहिए। फसल कटाई के बाद जो बीज निकलता है वह बुवाई के लिए उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि उसमें बहुत सारे कंकड़-पत्थर, निष्क्रिय सामग्री, इत्यादि भी मिले होते है इसलिए कटाई के बाद बीज को साफ एवं संसाधित करके ही बेचना चाहियेस भौतिक शुद्धता हेतु विभिन्न मानक भी निर्धारित की किये गये है। इसके बाद एफ.पी.ओ. के असिंसटेंड रिसर्चर नन्दलाल ने बताया कि एफ.पी.ओ. बसंत महिला फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के अंतर्गत के माध्यम के उद्यमियों को सीधे तौर पर अपने उत्पाद की ग्रेडिंग की व्यवस्था खेत पर मार्केटिंग उपलब्ध कराना तथा उधमियों के उत्पाद को भंडारण कराना। समय-समय पर खाद बीज उपलब्ध कराना। उधमियों के उत्पाद को सीधे तौर पर मार्केट से लिंग कराना। तकनीकी प्रशिक्षण कृषि यंत्रों की उपलब्धता सरकारी योजनाएं से लाभान्वित कराना। हॉट और सरकार द्वारा संचालक किसान मेले प्रदर्शन आदि की जानकारी कर किसानों को मौके पर एक्स्पोजर आदि की जानकारी प्रदान कराना। इसके बाद कार्यक्रम का संचालन परियोजना के जिला इन्वेस्टीगेटर विनय श्रीवास्तव ने किया।