उर्दू पत्रकारिता के दृढ़ स्तम्भ रहे वक़ार रिज़वी की पहली बरसी आज

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मोहम्मद कमर खाँ

वक़ार रिज़वी की मौत, महज़ एक उर्दू पत्रकार की मौत नहीं वरन् यह उन प्रयासों का अन्त था जो हालात को नियन्त्रित करने में तल्लीन थे। दरअसल यह प्लेटफ़ार्म गत वर्ष ढह गया जहाँ पर उन समस्याओं को रखकर, शान्तिपूर्वक, दूरदर्शिता के साथ सुलझा लिया जाता था जो समाज के लिये घातक हुआ करती थीं। गत वर्ष एक व्यक्तित्व के न रहने से सारा कुछ वीरान हो गया। वह एकता के लिये, लीक से हट कर हर काम को अन्जाम देेने वाले व्यक्ति थे। विक़ार रिज़वी क़लम के धनी, उर्दू भाषा और अदब के सच्चे सेवक, सर्वप्रिय व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने ‘‘अवधनामा’’ के माध्यम से उर्दू के चिराग़ को मरते दम तक रौशन रखा।
सम्भवतः उन्हें इस संसार से जल्द ही प्रस्थान करना था तभी उन्होंने बड़े बड़े काम जल्दी जल्दी निस्तारित किये। विक़ार रिज़वी मूलतः लखनऊ के थे और अपनी तमाम सरगर्मियों को मरते दम तक लखनऊ से ही अन्जाम देते रहे। मगर उनकी ख्याति लखनऊ तक ही नहीं, बल्कि पूरे भारत व उसकी सीमाओं के बाहर हर उस स्थान तक फैल चुकी थी, जहाँ उर्दू लिखने पढ़ने और बोलने वाले मौजूद हैं। इतनी अल्पायु में ऐसा मान सम्मान और ख्याति, यह विक़ार रिज़वी के संघर्ष और अथाह परिश्रम का ही परिणाम था।

उन्होंने 2001 में जब उर्दू ‘अवधनामा’ अख़बार निकाला तो लखनऊ के उर्दू क्षेत्रों में उसको कोई अधिक महत्व नहीं दिया गया क्योंकि फ़ाइल कापी वाले उर्दू के अन्य समाचार पत्र निकलते रहते थे। छोटी पूंजी से निकलने की वजह से उन्हें इस अख़बार के लिये कड़ा संघर्ष और मुस्तकि़ल मिज़ाज़ी के साथ अथाह परिश्रम करना पड़ा। फलस्वरूप आहिस्ता आहिस्ता अख़बार इस्टेब्लिश होता गया। उन्होंने मरहूम हफ़ीज़ नोमानी और आलिम नक़वी जैसे उर्दू पत्रकारिता के योद्धाओं को अख़बार से जोड़ा फिर क्या था, देखते ही देखते अख़बार के न केवल कई संस्करण निकलने लग गये। बल्कि अख़बार जनता के बीच लोकप्रिय होने लगा जिसके बाद उत्कर्ष सिन्हा जैसे आल राउन्डर पत्रकार के सहयोग से मरहूम विक़ार रिज़वी ने 2006 आते आते ‘अवधनामा’ का हिन्दी एडीशन भी शुरू कर दिया।
वह समाजी कामों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया करते थे। उन्होंने शिया-सुन्नी धर्मगुरुओं की सियासत में रुचि लेना आरम्भ की। वे इस दिशा में लगातार प्रयासरत रहते कि दोनों एक प्लेटफ़ार्म पर आ जायें। इस संदर्भ में यदा कदा वह सेमिनार भी कराते। मसलक सम्बन्धी मामलों में उन्होंने सदैव दिल-ओ-दिमाग़ से काम लेते हुये महत्वपूर्ण निर्णय लिये। धर्म और मसलक के नाम पर फूट व लूट मचाने वाले धर्म अधिकारियों की वह जमकर बखि़या उधेड़ा करते थे। मरहूम ने ‘अवधनामा’ अख़बार को किसी दृष्टिकोण विशेष, किसी प्रमुख गिरोह, अथवा सामयिक सरकार के प्रभाव के अधीन होने से बचाये रखा। मरते दम तक उन्होंने ‘अवधनामा’ में निष्पक्षता को बरक़रार रखा। इसी प्रकार कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये, गत वर्ष 10 मई 2021 सोमवार की सहरी का वह अन्तिम क्षण भी आ गया, जब विक़ार रिज़वी ऐसे महत्वपूर्ण कामों को अधूरा छोड़ अपनी अन्तिम यात्रा के लिये कूच कर गये। मरहूम विक़ार रिज़वी को 10 मई, सोमवार को गुफ़रान मआब इमामबाड़े में सिपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया।
वक़ार रिज़वी की मृत्यु पर राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पूर्व राज्यपाल रामनाइक सहित अन्य नेताओं ने अपनी संवदेनाएं व्यक्त करते हुये, शोक प्रकट किया। पूर्व राज्यपाल राम नाइक ने अपने शोक सन्देश में विक़ार रिज़वी को अपना क़रीबी दोस्त बताते हुये उनके बारे में कहा था कि ‘‘विक़ार रिज़वी’’ ने मज़हब और ज़बान से हट कर सहाफ़त का मज़हब निभाया। अभी हाल ही में दिनांक 8 मई को ‘‘अवधनामा एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबिल ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक समारोह में मरहूम द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘‘मेरा नज़रिया मेरी बात’’ का विमोचन पूर्व राज्यपाल रामनाइक ने कैफ़ी आज़मी एकेडमी के आडिटोरियम में किया। इस अवसर पर प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को ‘विक़ार रिज़वी मेमोरियल स्कालरशिप एवार्ड’ भी वितरित किये गये।
अन्त में मरहूम को श्रद्धान्जली अर्पित करते हुये हमारी दुआ है कि भगवान उनकी मृत्यु के उपरान्त हम सबको मरहूम के उद्देश्यों के प्रति सजग रहते हुये उन्हें हासिल करने की हिम्मत और तौफ़ीक़ प्रदान करे एवं मरहूम को जन्नत में आला मक़ाम अ़ता करे।

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