अवधनामा संवाददाता
देखके जिसको जी नहीं भरता, शहर-ए-मदीना ऐसा है, छुप-छुप के मैं रोता रहता हूँ, जब याद मदीना आता है
मैं पागल सा हो जाता हूँ जब याद मदीना आता है
ललितपुर। कौमी एकता के प्रतीक अजीमुश्शान हजरत बाबा सदनशाह रहमत उल्ला अलैह की दरगाह पर इस 105वां उर्स इजलास के आखरी दिन सोमवार की रात से सहरी तक कब्बालियों कि महफि सजी रही। अतिथियों व मेहमान कब्बाल सलीम जवेद का उर्स कमेटी के न सदर हाजी बाबू बदरुद्दीन कुरैशी के अलावा कमेटी के पदाधिकारियों ने फूलमाला पहनाकर व बैज लगाकर स्वागत किया। अजीमुश्शान हजरत बाबा सदनशाह रहमत उल्ला अलैह का 105वाँ उर्स इजलास 31 मार्च से शुरू हो गया था। उर्स के आखरी दिन यहाँ काफी संख्या में जायरीन पहुंचे। उन्होंने बाबा के आस्ताने जियारत कर चादर पेश करते हुये देश के हक में अमन-चैन के लिए दुआ की। इसके अलावा नूरानी चादरों का भी सिलसिला जारी रहा। बाबा के आस्ताने पर धूमधाम से चादर पेश कर तबर्रुख बाँटा। हिन्दुस्तान के मशहूर कब्बाल सलीम जावेद ने उर्स के आखरी दिन अपने कलाम से लोगों को झूमने को मजबूर कर दिया। श्रोता रात से सहरी तक झूमते रहे और नोटों की बारिस करते रहे। उन्होंने सबसे पहले खुदा की शान में हम्द-ऐ-पाक सुनाई। फिर दौर चला नात-ए-पाक- छुप-छुप के मैं रोता रहता हूँ, जब याद मदीना आता है। मैं पागल सा हो जाता हूँ जब याद मदीना आता है, तकदीर बनायेंगे आका हमको भी बुलायेंगे आका, घटों दिल को समझाता हूँ जब याद मदीना आता है, उस दर की मोहब्बत क्या कहना दीदार की हसरत क्या कहना, दो चार कदम बढ़ जाता हूँ जब याद मदीना आता है, ना अपना पता न अपनी खबर न घर का पता ना घर की खबर, मैं जाने कहाँ खो जाता हूँ जब याद मदीना आता है ,श्रोता झूमते रहे और बार -बार इस नात-ए-पाक को सुनने की मांग करते रहे। कब्बालियों का सिलसिला आगे बढ़ते हुए मनकवत का दौर आया तो सबसे पहले हजरत अली की शान में अली अली, मौला अली अली, मौला अली अली,मौला अली अली अली मस्जिद बोली मिम्बर बोला, तेरह रजब को काबा बोला, अली अली मौला, अली अली मौला, साफ जवां से दिल ये बोला, अली अली मौला, अली अली मौला, चारों तरफ मिदहद की फजायें, आओ जमाने भर को सजाएं, आज जहूर है मौला अली का, क्यों न खुशी में नारा लगाएं, वजद में आकर नारा लगाया, अली अली मौला, हैदर मौला। अली अली मौला, अली अली मौला- साफ जवां से दिल ये बोला, अली अली मौला, अली अली मौला। तेरह रजब को काबा बोला को सुनकर महफिल में बैठे लोगों ने खूब सराहा। कब्बालियों का सिलसिला आगे बढ़ते हुये कब्बाल सलीम जवेद ने मनकबत पेश की, किस्मत में मेरी चैन से जीना लिख दे, डूबे ना कभी मेरा सफीना सफीना लिख दे ,जन्नत भी गवारा है मगर मेरे लिए, ए कातिब-ए-तकदीर मदीना लिख दे, ताजदार-ए-हरम हो,निगाह-ए-करम, हम गरीबों के दिन भी सँवर जायेंगे। हामीं-ए बेकसाँ क्या कहेगा जहाँ, आपके दर से खाली अगर जायेंगे, ताजदार-ए-हरम, ताजदार-ए-हरम, कोई अपना नहीं गम के मारे हैं हम। आपके दर पर फरयाद लाये हैं। हो निगाहे-ए-करम, वरना चौखट पे। हम आपका नाम ले-ले मर जाएँगे।ताजदार-ए-हरम, ताजदार-ए-हरम को लोगों ने खूब सराहा। मुज्तबा नाजा ने ख्वाजा की शान में जिनका चेहरा मोहम्मद की तस्वीर है,वो चमकता सितारा है अजमेर में, गम के मारे शकवा-ए- गम न कर,बदनसीबी पे तू अपनी मातम न कर ,बेकसों बेकसी भी साम्भर जाएगी,बेकसों का सहारा है अजमेर में को सुनकर महफिल में बैठे लोगों ने खूब सराहा आधी रात के बाद सहरी तक गजल का दौर चला। कौमी एकता के प्रतीक हजरत बाबा सदनशाह रहमत उल्लाह अलैह के उर्स को माना जाता है कि देश में अजमेर शरीफ के बाद दूसरे सबसे बड़े सालाना इजलास का आयोजन जिले में किया जाता है। इस वर्ष चादर शरीफ के अलावा अन्य कार्यक्रमों में भागीदारी जताने के लिए लाखों की संख्या में लोग सम्मिलित होते है। उर्स के दौरान कोई अव्यवस्था न हो इसके लिए सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त कर ली गयीं थीं। जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी स्वयं व्यवस्थाओं पर नजर बनाए रहे। मेला परिसर में साफ सफाई, बिजली, पानी सुचारु आपूर्ति के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, सुरक्षा की दृष्टि से चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया था। कोई अप्रिय घटना न हो जाए इसके लिए पूरी मुस्तेदी पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी के अलावा सिविल वर्दी में जिम्मेदार दिन रात निगरानी करते रहे।