अपनी छोड़ कश्मीर की सोचें

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एस. एन.वर्मा

जम्मू कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का बढ़ती जनसंख्या के परिप्रेक्ष में फिर से सन्धारण किया गया है। तब भी वहां के स्थानीय नेता इसका विरोध कर रहे थे। इस बात को लेकर आशंकित थे कि पुनः संधारण उनका क्षेत्र बदलेगा तो उनके जीत पर असर पड़ेगा। पर समय के साथ बदलाव तो होते ही रहते है। इसे लेकर मतदाता सूची में संशोधन तो होगा ही। क्योंकि आबादी बढ़ रही है। आर्टिकल 370 हटने के बाद तो यह जरूरी भी है क्योंकि 2019 में इसे हटाया गया था। इस अन्तरात में आबादी स्थिर तो रहेगी नही। इसके अलावा प्रदेश के आम नागरिक जो भारत के दूसरे हिस्सों में रोजी रोटी और सुरक्षा के दृष्टि से रह रहे है उन्हें प्रदेश के बदलाव में, यहां सरकार बनाने में उन्हें शामिल न किया जाय यह तो न्यायोचित नही है। प्रदेश यू भी अपनी स्थिति की वजह से बहुत संवेदनशील है। अशान्ति फैलाने वाले सम्प्रदायिक सोच वाले यहां के भौगोलिक संरचना का लाभ उठाकर अशान्ति फैलाते रहते है आपस में वैमन्यस्यता बढ़ाने का उपाय ढूढते रहते है।
ऐसे में प्रदेश के पटरी पर लाने के लिये जो कोशिश हो रही है उसमें आम लोगों को खासकर नेताओं को सहयोग करना चाहिये। चुनाव तो आते जाते रहते है, चुनाव निजी व्यक्त्वि, जनहित कार्य कलापों से जीते जाते है। अगर मतदाता में नये नाम जुड़ रहे है तो सब भाजपा को वोट क्यों देगे अगर वहां के स्थानीय नेता ने क्षेत्र की जनता का सुख दुख में साथ दिया है, प्रदेश के हित को आगे बढ़ाया है। देखने को कई नेता ऐसे मिल जायेगे जिन्होंने जनता के सुख दुख को साथ लेकर उनका दिल जीत लिया है और चुनाव दर चुनाव जीतते रहते है। स्थानीय नेताओं को अपना निजी हित त्यागना होगा राज्य के हित में खानदानी नेता जो वहां कबिज रहे है उनको खुद की असुरक्षा सता रही है जिसे लेकर वे जेके मे जो भी सुधार के कदम उठाये जाते है उनका विरोध करते है।
चुनाव आयोग पुनरीक्षण, संशोधन का काम तो करता रहता है। उसकी जिम्मेदारी है कि वह विश्वसनीयता का वातावरण पैदा करे, लोगो के उचित जिज्ञासाओं को सही उत्तर देकर सही कदम उठा कर शान्त करे। नेता अगर सही सुझाव दे रहे है तो स्वीकार करे, कोई उचित कमी बताये तो उसे दूर करें। कहने का मतलब चुनाव कमीशन उनसे अपनी विश्वसनीयता बढ़ाये। लोगों के लगे चुनाव आयोग उतना ही हमारा भी है जितना सरकारों का पर यह काम दोनो तरफ की इमानदारी से होगा। जिसकी जेके में बहुत जरूरत है। नेताओं को विरोध के नाम पर विरोध की नीति त्यागनी होगी।
राज्य में सामान्य माहौल बनाने के लिये राजनैतिक कदमो को सही तरीके से और सही कदम के रूप में उठाये जाने की महती जरूरत है।
इन सबके लिये आम चुनाव निहायत जरूरी है। जिनके हित चुनाव में जु़ड़े है उन्हें जनता के माध्यम से जो जनादेश आता है उसे स्वीकार करना चाहिये खुले दिल दिमाग से।
मतदाता सूची जो तैयार की जा रही है उसमें 25 लाख लोगो के जुड़ने की सम्भावना है। इसमें वे लोगो भी होगे जो मतदान करने की उम्र पा गये है। नाम जुड़वाने के लिये डोमीसाइल सर्टीफिकेट की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। यहां 15 साल से लगातार रह रहे लोगो को डोमीसाइल सर्टीफीकेट दिया जा रहा है। मैडम मुफ्ती सरकार पर तोहमत लगा रही है कि इस तरह भाजपा चुनाव अपने पक्ष में करना चाहती है। फारूख अब्दुल्ला ने इसे लेकर सभी नेताओं की बैठक बुलाई है जिसमें भाजपा को शामिल नही किया गया है। ऐसे में आपसी भाईचारा कैसे स्थापित होगा। सरकार पर आरोप लगा रहे है डेमोग्राफिक स्वरूप बदलने की तैयारी है।
देश के अन्य हिस्से के जो लोग यहां आकर रह रहे है उन्हें मतदान से वंचित रखना किसी हाल में उचित नहीं कहा जायेगा। यहां रह रहे सभी को अहसास होना चाहिये चुनी हुई सरकार हमारी है। चुनाव आयेगा और सरकार को ऐसी विश्वसनीयता पैदा करनी होगी। जो कानून सम्मत कदम उठा कर ही मिलेगी।
नेताओं और आम आदमी के हर प्रश्नों का सही जवाब दे, अतिरिक्त धीरज से काम ले, बौखलायें नही। जम्मू कश्मीर के लोगों को साथ लेकर उनमें भरोसा पैदा करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। नेता अपना संकीर्ण स्वार्थ त्याग आयोग और सरकार का साथ दे। सही अलोचना करे, आयोग और सरकार कानून सम्मत तथ्यों से लोगो के आलोचनाओं का जवाब दे। जेके की स्थिति दूसरे तरह की है। चुनाव का काम कठिन है पर नामुमकिन नहीं। चुनाव आयोग पर इस समय भारी जिम्मेदारी है। ऐसे अवसर बार बार नही मिलते आयोग अपना करिश्मा दिखा चुनाव के इतिहास में अपना नाम अमर कर सकता है। आगे लोग उनके जेके के कामों को लेकर उदाहरण दिया करें। इतिहास ऐसा अवसर बार बार नहीं देता है।

 

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