सिर्फ 25 साल की नादिया को आतंकी संगठन ISIS द्वारा महिलाओं के साथ रेप जैसे जघन्यतम जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नादिया का उनकी बहन के साथ अपहरण किया गया था। इस संघर्ष में नादिया ने अपनी मां और अपने छह भाईयों को खो दिया।
दुनिया के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार की घोषणा हाल ही में की गई। इस बार नोबल शांति पुरस्कार कॉन्गो को डॉक्टर डेनिस मुकवेगे और 25 वर्षीय नादिया को मिला। एक तरफ जहां कॉन्गो के डॉक्टर मुकवेज ने अपनी पूरी जिंदगी यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं का इलाज करने में बिता दी तो वहीं सिर्फ 25 साल की नादिया को आतंकी संगठन ISIS द्वारा महिलाओं के साथ रेप जैसे जघन्यतम जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नादिया का उनकी बहन के साथ अपहरण किया गया था। इस संघर्ष में नादिया ने अपनी मां और अपने छह भाईयों को खो दिया। आइए जानते हैं नादिया मुराद के संघर्ष के बारे में। नादिया मुराद उत्तरी इराक के कोचो प्रांत की रहने वाली हैं। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने 2014 में नादिया का अपहरण कर लिया था और तीन महीने तक बंधक बनाकर उनके साथ रेप किया था।
उस वक्त नादिया की उम्र सिर्फ 21 साल थी। लेकिन आतंकियों के कब्जे से छूटकर किसी तरह शरणार्थी बनकर जर्मनी पहुंच गईं। जर्मनी में नादिया को आसरा मिला तो उन्होंने अपनी आपबीती को एक किताब के माध्यम से दुनिया के सामने साझा किया। उन्होंने अपनी किताब ‘द लास्ट गर्ल : माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी एंड माय फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट’ में बताया है कि किस तरह इस्लामिक स्टेट ने उनकी जिंदगी तबाह कर दी थी।
नादिया ने बताया कि इस्लामिक स्टेट के आतंकी महिलाओं को कैसे जबरन उठा ले जाते हैं और उनका बंधक बनाकर रेप करते हैं। आतंकियों के चंगुल में फंसने वाली महिलाएं एक बार इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के कब्ज में आती हैं तो उनका बचना मुश्किल होता है। उनका शोषण करने के बाद उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है।
नादिया ने अपने बुरे अनुभवों को याद करते हुए बताया, ‘मैंने एक बार मैं मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली ड्रेस पहनकर भागने की कोशिश की, लेकिन एक गार्ड ने मुझे पकड़ लिया। इसके बाद मुझे इसकी सजा मिली और उन सभी ने मेरे साथ तब तक बलात्कार किया, जब तक मैं होश नहीं खो बैठी।’ नादिया कहती हैं कि उस वक्त आप कितनी भी मिन्नतें कर लें, आपकी मदद करने कोई नहीं आएगा।’ अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली नादिया उन हजारों महिलाओं में से एक थीं जिन्हें इस्लामिक स्टेट के आतंकी उठाकर ले गए थे।
अपने ऊपर बनी डॉक्युमेंट्री ‘ऑन हर शोल्डर’ में नादिया ने बताया कि अभी भी 3,400 यजीदी महिलाएं इस्लामिक स्टेट के कब्जे में हैं और उनका लगातार शोषण किया जा रहा है। वॉशिंगटन में नेशनल प्रेस क्लब में बोलते हुए नादिया ने कहा, ‘हमें इस नरसंहार को खत्म करने के लिए सामूहिक तौर पर काम करना होगा और उन लोगों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना होगा जो ऐसे अपराध करने की सोचते हैं। तभी जाकर पीड़ितो को सही मायने में न्याय मिल पाएगा। अभी तक हम यजीदियों को न्याय नहीं मिल सका है, खासतौर पर उन महिलाओं को जिनका सामूहिक रूप से यौन शोषण किया जाता है।
इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को उनके किये की सजा दिलानी ही होगी।’ नादिया ने अपनी किताब में बताया कि यजीदी महिलाओं को जानवरों की तरह खरीदा-बेचा जाता है। उन्होंने कहा, ‘इस्लामिक स्टेट के आतंकी आते थे और हम पर बुरी निगाह डालते थे। उनकी नजर सबसे खूबसूरत और कम उम्र की लड़कियों पर होती थी। वे हमसे हमारी उम्र पूछते थे और लड़कियों का मुंह और बाल पकड़कर उत्पीड़न करते थे। इसके बाद वे हमारे शरीर के किसी भी अंग को छूना शुरू करते थे। हमारे साथ ऐसा बर्ताव होता था जैसे हम जानवर हों।’ युद्ध के इतिहास में हमेशा से महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझा गया और उनके साथ रेप किया गया।
नादिया कहती हैं, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझमें और रवांडा की किसी महिला में कोई बात एक सी होगी। इन सब वाकयों से पहले मुझे पता भी नहीं था कि रवांडा कोई देश है। लेकिन अब मुझमें और उनमें एक संबंध है। हम सभी युद्ध के पीड़ित हैं।’ नादिया बताती हैं कि जहां उन्हें पकड़कर ले जाया जाता था वहां निचली मंजिल पर एक रजिस्टर में सभी महिलाओं के नाम दर्ज किए जाते थे। वह अपने निजी अनुभवों के आधार पर कहती हैं, ‘मैं सिर झुकाकर बैठ गई थी और फिर कुछ पैर मेरी तरफ आते दिखे। मैं उन पैरों लिपट गई और मदद की भीख मांगती रही, लेकिन किसी को मुझपर रहम नहीं आया।’ अपहरण के 3 महीने बाद नादिया किसी तरह आतंकियों के कब्जे से बच निकली। दरअसल उन्हें फिर से तस्करी के लिए इराक से बाहर ले जाया जा रहा था जिसके क्रम में वह जर्मनी पहुंच गईं। वहां वह एक शरणार्थी की तरह रहीं। इसके बाद उन्होंने मानव तस्करी के खिलाफ जागरूकता अभियान शुरू किया।
2015 नवंबर में वह जर्मनी से स्विट्जरलैंज गईं और वहां यूएन फोरम में अल्पसंख्यंक समुदाय से संबंधित मुद्दों पर अपने विचार रखे। यह पहली बार हो रहा था जब नादिया को किसी बड़े समूह के सामने अपनी कहानी सुनाने का मौका मिला था। नादिया कहती हैं, ‘मैं उन्हें बताना चाहती थी कि अभी हमें मानवाधिकार की दिशा में ईराक में काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। हमें धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के लिए एक सुरक्षित क्षेत्र स्थापित करना होगा।
इसके साथ ही उन लोगों को सजा दिलानी होगी जो हम पर अत्याचार करते आए हैं। मैं वहां उपस्थित श्रोतागण को बताना चाहती थी कि कितनी बार मेरा रेप किया गया। ताकि दुनिया को इस्लामिक स्टेट की सच्चाई पता चल सके।’ नादिया का कहना है कि इंसानियत को जिंदा रखने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने विश्व के सभी नेताओं खासकर इस्लाममिक धर्मगुरुओं से यजीदी महिलाओं पर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की।