डॉ मूसी रज़ा
- मुझे ये जान कर अपने अज़ादार होने पर फ़ख्र हुआ कि विकीपीडिया में दुनिया के जिन 19 सबसे बड़े पुरअम्न इजतिमाआत को सर-ए-फ़हरिस्त रखा गया है उनमें 9 इमाम हुसैन के ज़ाइरीन का इजतिमा है
- विकीपीडिया के आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ साल 2017 में 30 मिलियन ज़ाइरीन कर्बला रौज़ा इमाम हुसैन पर हाज़िर हुए थे। यहां ये बात भी वाजे़ह करना ज़रूरी है कि ये आदाद-ओ-शुमार फ़क़त इन ज़ाइरीन पर मुश्तमिल है जो मर्कज़ी रास्तों से कर्बला में दाख़िल होते हैं। ग़ैर-मारूफ़ रास्तों से आने वाले ज़ाइरीन की तादाद इससे जुदा है।कर्बला में अर्बईन के मौक़ा पर ज़ियारत का सिलसिला तक़रीबन 1400 साल पुराना है। शेख़ तूसी ने जाबिर इबने अबदुल्लाह अंसारी को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पहला ज़ायर क़रार दिया है, जो 20 सफ़र 61 हिज्री को कर्बला में वारिद हुए। इस सफ़र में उनके शागिर्द अतिया ओफ़ी उनके साथ थे और इस वाक़िया को सय्यद बिन ताऊस ने मिसबाहुल ज़ायर में भी लिखा है
दुनिया में न जाने कितने जश्न होते रहे हैं और ला-तादाद तक़रीबात सजाई गई हैं। इन इजतिमाआत की कामयाबी के लिए दावत नामे भेजे जाते हैं। आलमी शोहरत-ए-याफ़ता शख्सियतें मदऊ की जाती हैं, उनके रहने, खाने के इलावा दीगर सहूलयात का ख्याल रखा जाता है मीडिया और सोशल मीडिया पर पैसा ख़र्च किया जाता है तब जा कर मिलियन ऑफ प्यूपिल की गैदरिंग मुम्किन हो पाती है, फिर इतने बड़े इजतिमा को सँभालने के लिए हुकूमत रात-दिन एहतमाम करती है और अपनी तमाम-तर क़ुव्वत सर्फ़ करने के बाद दहाईयों और सदियों में चंद ही ऐसे प्रोग्राम देखने में आते हैं जो इन्सानी ख्यालात का हिस्सा बनने की क़ुव्वत रखते हों। गौरतलब है कि प्रोग्राम की नौइयत भी अपनी मक़बूलियत और असरात की ज़ामिन होती है। पूरी दुनिया में पुरअम्न वसीअ इजतिमा यानी लॉर्जेस्ट पीसफुल गैदरिंग की फ़हरिस्त देखी जाये तो इस में मज़हबी नौइयत के इजतिमाआत की तादाद ज्यादा मिलेगी। मुझे ये जान कर अपने अज़ादार होने पर फ़ख्र हुआ कि विकीपीडिया में दुनिया के जिन 19 सबसे बड़े पुरअम्न इजतिमाआत को सर-ए-फ़हरिस्त रखा गया है उनमें 9 इमाम हुसैन के ज़ाइरीन का इजतिमा है जो हर साल अर्बईन 20 सिफ़र, उस तारीख़ को इमाम हुसैन की शहादत के 40 दिन मुकम्मल होते हैं के मौक़ा पर कर्बला में मुनाक़िद होता है। यानी लॉर्जेस्ट पीसफुल गैदरिंग की टॉप टवंटी की निस्फ़ फ़हरिस्त (हॉफ लिस्ट) पर इमाम हुसैन की फ़तह का परचम लहरा रहा है
विकीपीडिया के आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ साल 2017 में 30 मिलियन ज़ाइरीन कर्बला रौज़ा इमाम हुसैन पर हाज़िर हुए थे। यहां ये बात भी वाजे़ह करना ज़रूरी है कि ये आदाद-ओ-शुमार फ़क़त इन ज़ाइरीन पर मुश्तमिल है जो मर्कज़ी रास्तों से कर्बला में दाख़िल होते हैं। ग़ैर-मारूफ़ रास्तों से आने वाले ज़ाइरीन की तादाद इससे जुदा है।
कर्बला में अर्बईन के मौक़ा पर ज़ियारत का सिलसिला तक़रीबन 1400 साल पुराना है। शेख़ तूसी ने जाबिर इबने अबदुल्लाह अंसारी को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पहला ज़ायर क़रार दिया है, जो 20 सफ़र 61 हिज्री को कर्बला में वारिद हुए। इस सफ़र में उनके शागिर्द अतिया ओफ़ी उनके साथ थे और इस वाक़िया को सय्यद बिन ताऊस ने मिसबाहुल ज़ायर में भी लिखा जो इस तरह है कि
मैं (अतिया ओफ़ी जाबिर बिन अबदुल्लाह अंसारी के साथ हुसैन बिन अली अलैहिस्सलाम की क़ब्र की ज़ियारत करने के लिए कूफ़ा से निकला। जब हम कर्बला पहुंचे तो जाबिर फुरात के साहिल के क़रीब गए और ग़ुस्ल अंजाम दिया और मुहरिम अफ़राद की तरह एक चादर पहनी, फिर एक थैली से ख़ुशबू निकाली और अपने आपको इस ख़ुशबू से मुअत्तर किया और ज़िक्रे-इलाही के साथ क़दम उठाना शुरू किए, यहां तक कि वो हुसैन इबने अली के मर्क़द के क़रीब पहुंच गए। जब हम नज़दीक पहुंचे तो जाबिर ने कहा कि मेरा हाथ क़ब्र हुसैन पर रख दो। मैंने जाबिर के हाथों को क़ब्र हुसैन पर रखा तो उन्होंने क़ब्र हुसैन इब्न-ए-अली पर अपना सीना रख दिया और बेहोश हो गए। जब मैंने उनके ऊपर पानी डाला तो वो होश में आए। उन्होंने तीन मर्तबा या हुसैन की आवाज़ बुलंद की कहा- (हबीब ला यजीब हबीबा) क्या दोस्त दोस्त को जवाब नहीं देता? फिर जाबिर ख़ुद जवाब देते हैं- आप किस तरह जवाब देंगे कि आप के मुक़द्दस सर को जिस्म से जुदा किया गया है? मैं गवाही देता हूँ कि आप पैग़ंबर ख़ातिम और अमीरूल-मोमनीन अली इबने अबीतालिब और फ़ातिमा ज़हरा के फ़रज़ंद हैं और आप इस तरह क्यों ना हों, क्योंकि ख़ुदा के रसूल ने अपने दस्ते-मुबारक से आपको ग़िज़ा दी है और नेक लोगों ने आप की परवरिश और तरबियत की है। आपने एक पाक और बेहतरीन ज़िंदगी और बेहतरीन मौत हासिल की है, अगरचे मोमिनीन आप की शहादत से मह्ज़ून हैं, नालां हैं। ख़ुदा की रज़ाएत और सलाम शामिल-ए-हाल हो ए फ़रज़ंद रसूल-ए-ख़ूदा। मैं गवाही देता हूँ कि आपको ऐसी शहादत नसीब हुई, जैसे यहया बिन ज़करीया को नसीब थी।
जनाब जाबिर रसूले-ख़ुदा के जलीलुल-क़दर सहाबियों में थे इसी लिए इस सफ़र से न तो उन्हें यज़ीद ने रोका और न ही इमाम हुसैन पर गिरया करने पर कोई पाबंदी लगाई। इस पहली ज़ियारत के बाद से ये सिलसिला जारी हो गया और जब असीराने-कर्बला रिहाई पाकर मदीना वापिस आए तो उन्होंने भी कर्बला का रुख किया और शोहदा की क़ब्रों पर ज़ियारत पढ़ी। अबू रेहान बैरूनी (मुतवफ़्फ़ी 440 हिज्री के मुताबिक़ बीस सफ़र को इमाम हुसैन का नूरानी और मुबारक सर, बदन के पास वापिस पल्टाया गया और बदन के साथ दफ़न किया गया और इस दिन ज़ियारत अर्बईन पढ़ी जाती है और इस दिन इमाम हुसैन के अहल-ए-बैत शाम से कर्बला उनकी ज़ियारत करने के लिए आए थे।
अलबत्ता यहां पर कुछ इख़्तेलाफ़ ज़रूर है लेकिन हज़रत वली अस्र तहक़ीक़ाती मर्कज़ के वैब पोर्टल पर एक मज़मून मौजूद है जिसपर इन तमाम इख्तेलाफ़ात के ताल्लुक़ से मुदल्लिल बहस की गई है और नतीजा अख़्ज़ करते हुए लिखा है-
इमाम हुसैन के अहल-ए-बैत के शाम से कर्बला-ए-के सफ़र की तफ़सील की रौशनी में और इसके मुशाबेह दूसरे तूलानी सफ़र का कमतरीन वक्त में तय होने की तफ़सील से वाजे़ह हो जाता है कि अहल-ए-बैत 20 सफ़र को अर्बईन के दिन कर्बला-ए-पहुंचे थे और इस अज़ीम दिन में इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़ियारत का शरफ़ हासिल किया था।
इस के इलावा तारीख़ी कुतुब के मुताबिक़ ऐम्मा मासूमीन और उनके असहाब ने भी कर्बला की ज़ियारत का बहुत एहतमाम किया है। यहां तक कि इस हवाले से कई अहादीस भी वारिद हुईं मसला कामिलुल ज़ियारात की। ये मुलाहिज़ा कीजिए-
’’जो शख्स अपने घर से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र की ज़ियारत की नीयत से निकले अगर वो पैदल सफ़र करे तो अल्लाह उसके हर क़दम पर उसके लिए एक नेकी लिखता है और एक गुनाह महव करता है यहां तक कि हरम की हुदूद में दाखिल हो जाये उस वक्त ख़ुदावंद आलम उसे मुंतख़ब मुस्लिहीन में से क़रार देता है यहां तक कि वो ज़ियारत के मनासिक अंजाम दे ज़ियारत की अंजाम देही के बाद उसे कामयाब लोगों में से क़रार देता है यहां तक कि जब वो वापसी का इरादा करे तो ख़ुदा उसके पास एक फ़रिश्ता भेजता है वो फ़रिश्ता इससे कहता है कि रसूल-ए-ख़ूदा ने तुम्हें सलाम कहा है और कहा है कि तुम अपने आमाल नए सिरे से शुरू करो इस लिए कि तुम्हारे गुज़िश्ता तमाम गुनाह माफ़ कर दिए गए हैं।’’।
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मज़कूरा बाला हदीस में बयान करदा अज्र के ताल्लुक़ से शक की गुंजाइश इस लिए पैदा नहीं होती कि इस में पहले रसूल के सहाबी जनाब जाबिर ने की, जिनकी अज़मत के लिए यही काफ़ी है कि जब 1932 ईस्वी में पानी आने की वजह से जनाब जाबिर के जसदे-मुबारक को दूसरी जगह मुंतक़िल किया गया तो सैंकड़ों अफ़राद ने उनकी खुली और रौशन आँखों की ज़ियारत की और उन अफ़राद के मुताबिक़ जाबिर का कफ़न तक सलामत था और यूं लगता था जैसे वो ज़िंदा हैं! इतनी बात ज़रूर काबिल-ए-तवज्जो है कि इस अज्र को हासिल करने के बाद ज़ायरीन उसकी हिफ़ाज़त किस तरह करते हैं क्योंकि बहुत से गुनाह हमारी नेकियों को ख़त्म कर देते हैं जैसे ग़ीबत वग़ैरा।
ये भी एजाज़ से कम नहीं कि कर्बला की ज़ियारत का ये सिलसिला कभी भी मुनक़ता नहीं हुआ यहां तक कि हुकूमतों ने ज़ायरीन पर बेपनाह सख्तियां कीं। एक इराक़ी मुसन्निफ़ ने लिखा है कि पाबंदियों के बावजूद नज्फ़ के बाशिंदों ने 15 सफ़र 1398 हिज्री बमुताबिक ़1977 ईस्वी को कर्बला का पैदल सफ़र करने का इरादा किया। 30 हज़ार अफ़राद पर मुश्तमिल एक क़ाफ़िला ने कर्बला की तरफ़ हरकत की। हुकूमत ने इस कारवाँ के खि़लाफ़ कार्रवाई की जिसके नतीजे में कई लोग शहीद हो गए यहां तक कि नज्फ़ से कर्बला जाने वाले रास्ते में फ़ौज ने भी ज़ायरीन पर हमला किया और हज़ारों लोगों को गिरफ़्तार कर लिया। इन सब ज़ुल्म के बाद भी ज़ायरीन की तादाद कम न हो सकी। इस में बेशक हमारे उलमा का किरदार भी काबिले-यादगार और एहतराम रहा है मसला आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद सदर ने चौदहवीं सदी हिज्री के अवाखि़र में कर्बला के सफ़र को वाजिब क़रार दे दिया था। इसके इलावा सय्यद मुहम्मद बाक़िर हकीम, आयतुल्लाह खुमैनी और आयतुल्लाह खामनई और आयतुल्लाह सैस्तानी ने भी कर्बला की ज़ियारत की अहमियत को जा-ब-जा वाजे़ह किया है। नीज़ गुज़िश्ता ज़माना की मिसाल भी दुनिया के सामने है जब कर्बला में दहशतगर्द गिरोह दाइश का ज़ोर था और उसने ये ऐलान कर दिया था कि अर्बईन के मौक़ा पर अगर ज़ायरीन कर्बला आए तो वो उनपर हमला-आवर होगा। ऐसी सूरत में आयतुल्लाह सैस्तानी और आयतुल्लाह खामनई ने तशवीक-ओ-ताकीद फ़रमाई कि लोगों को चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा तादाद में कर्बला पहुंचें, नतीजा में करोड़ों ज़ायरीन ने कर्बला पहुंच कर एक-बार फिर यज़ीदियत को शिकस्त-ए-फ़ाश का मज़ा चखा दिया।
बहुत से ऐसे ज़ायरीन भी हैं जिन्होंने ये सफ़र अपने मुल्क से पैदल तय किया है हिन्दोस्तान में भी ये रिवायत रही है। ज़माना-ए-क़दीम से सर्फ-ए-नज़र चंद बरस क़ब्ल 06 जनवरी 2018 को हिन्दोस्तान से सात (7) लोगों ने पापियादा कर्बला के सफ़र का आग़ाज़ किया और जुलाई 2018 को सरज़मीने-कर्बला पहुंचे। इन सात अफ़राद में 06 लोगों का ताल्लुक़ हैदराबाद से है। जिनमें सबसे बुजुर्ग 70 साल के अली साहिब बहैहसयत क़ाफ़िला सालार इस ग्रुप की रहनुमाई कर रहे थे और उनका कर्बला का यह चौथा पैदल सफ़र था, 32 साल के मुहम्मद अली जिन्होंने ये सफ़र बीमारे-कर्बला इमाम सय्यद सज्जाद की याद में तौक़, हथकड़ी और बेड़ियाँ पहन कर मुकम्मल किया था। इसके इलावा हुसैन (उम्र तक़रीबन 32 साल), अली (उम्र 28 सालए अब्बास और आसिम रज़ा उनके साथ थे। उत्तरप्रदेश में बिक नाला सादात से ताल्लुक़ रखने वाले और लखनऊ में नीयर कॉलोनी में रहने वाले सय्यद साकिब ज़िया नक़वी भी इस सफ़र में शामिल थे जिनसे ये मालूमात हासिल की गई है। उन्होंने बताया कि वो हैदराबाद से वागह बॉर्डर (सरहद) तक पैदल गए मगर वहां से पैदल आगे जाने की इजाज़त नहीं मिली लिहाज़ा वहां से वापिस मुंबई आकर हवाई जहाज़ के ज़रिया ईरान पहुंचे और वहां ज़ाहिदाँ यानी पाकिस्तान के बॉर्डर से दोबारा मशी का आग़ाज़ किया और इस तरह उन तमाम ज़ायरीन ने 06 महीने में तक़रीबन ये सफ़र मुकम्मल किया था। हिन्दोस्तान के अख़बारात दी टाइम्स आफ़ इंडिया, दी हिंदू के इलावा ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसीज़, ईरानी नशरियात और आलमी मीडिया ने उसे एहतमाम के साथ शाया किया।
(https://youtu.be/9GXPxEeVuxw)،
https://www.thenewsminute.com/article/hyderabad-iraq-mostly-foot-seven-men-walk-holy-site-karbala-74336
आम तौर पर इस सफ़र को बहुत से अफ़राद नज्फ़ से कर्बला पैदल चल कर मुकम्मल करते हैं जिसको ‘‘मशी’’ कहा जाता है। इस मशी में मुख्तलिफ़ ममालिक से लोग शिरकत करते हैं। छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े अफ़राद इस सफ़र-ए-इश्क़ में गामज़न दिखाई देंगे। इन दो शहरों (नज्फ़ से कर्बला के दरमियान 80 किलोमीटर का फ़ासिला है। दोनों शहरों के दरमियान सड़क पर नस्ब खंबों की तादाद 1452 है। हर किलोमीटर के दरमियान 20 खम्बे नस्ब हैं जिनमें से हर दो खंबों का दरमियानी फ़ासिला 50 मीटर है। पैदल चलने वालों को ये तमाम फ़ासिला तय करने के लिए तक़रीबन 20 से 25 घंटे दरकार हैं। इस सफ़र को तय करने के लिए ज्यादा-तर लोग 10 सफ़र के बाद मशी का आग़ाज़ करते हैं।
ज़ायरीन की मेहमान-नवाज़ी और उन्हें हर तरह की सहूलयात फ़राहम करने के लिए शाहराहों के किनारे और दीगर रास्तों में कैंप लगे रहते हैं जिनको ‘‘मौकब’’ कहा जाता है। इराक़ के इलावा दीगर ममालिक के मोमिनीन भी इसका एहतमाम करते हैं। मेरे एक अज़ीज़ सय्यद ज़फ़र हुसैन साकिन नज्फ़ रुस्तम नगर लखनऊ जिनको दो बार मशी में शरीक होने की सआदत हासिल हो चुकी है, बताते हैं कि 327،777،850 खंबों के पास अपने मुल्क हिन्दोस्तान के मोमिनीन मौकब लगा कर ज़ायरीन की हर मुम्किन खि़दमत अंजाम देते हैं। यहां हर तरह की ज़रूरियात का सामान मौजूद होता है। सिर्फ वो मौकब जो हज़रत इमाम हुसैन-ओ-हज़रत अब्बास के रौज़ों पर रजिस्टर्ड हैं तसनीम ख़बररसां एजेंसी के मुताबिक ़2019 में उनकी तादाद दस हज़ार थी। जब कि ग़ैर रजिस्टर्ड मौकबों की तादाद उनसे कहीं ज़्यादा है। बीबीसी ने 19 अक्तूबर 2019 की अपनी एक ख़ुसूसी रिपोर्ट में लिखा-
दुनिया-भर के हवाई अड्डों पर खाने पीने की चीज़ों से लेकर पीने का पानी तक ख़रीदना पड़ता है और वो भी ज्यादा क़ीमत पर, लेकिन बस्रा एयरपोर्ट पर ज़ायरीन के लिए पानी का मुफ़्त इंतज़ाम था। देखा जाये तो अर्बईन के मौके़ पर सिवाए जहाज़ के टिकट और वीज़े के हर चीज़ ही तक़रीबन मुफ़्त है। सिर्फ खाने पीने की चीज़ें ही नहीं बल्कि ज़ायरीन के दस्त-ओ-पा की मालिश, उनके कपड़ें धोने का इंतज़ाम और अपने घर में क़याम के लिए उनसे इल्तिजा करना इस सफ़र की अज़मत को रौशन करता है। ग़रज़ कि जिससे जैसी खि़दमत मुम्किन होती है वो इसको अंजाम देता है मसला मीडिया हाऊस से मुताल्लिक़ अल-कफ़ील प्रोडक्शन सेंटर ने अर्बईन के क़ाफ़िले का प्रोग्राम बराह-ए-रास्त दिखाने के लिए अपनी फ्रीकवेंसी तमाम चैनल्ज़ दीगर नशरियात को मुफ़्त फ़राहम की थी।
कोरोना की वजह से दो साल तक इस सफ़र से ज़ायरीन महरूम रहे थे। मगर अब ख़ुदावंद के फजल से तमाम मस्दूद राहें खुल चुकी हैं और ज़ायरीन इस सफ़र-ए-इश्क़ पर फिर रवाना हैं। ख़ुदा से दुआ है कि हम सबको रोज़हाए मुक़द्दसा की ज़ियारत नसीब फ़रमाए।’ ’
9807694588