अवधनामा संवाददाता
सीएचसी की सेवाओं के हाल हुये बद से बदतर
आला अधिकारी शिकवा शिकायतों पर कान आंख बंद कर बैठे
फतेहपुर बाराबंकी।(Fatehpur (Barabanki) अंदाजा लगाइये क्या हाल होगा स्वास्थ्य सेवाओं का। जब किसी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर के बजाय फार्मेसिस्ट मरीजो का इलाज करता हो। यह अपने आप में कम महत्वपूर्ण विडंबना नही है। उस स्वास्थ्य केंद्र की अन्य सेवा सुविधा का बखान करने की जरूरत नहीं रह जाती। यही वजह है कि मरीज ऐसी जगहों से ऊबकर झोलाछाप या फिर निजी क्षेत्र का सहारा लेने को मजबूर हो जाता है। करेला दूजा नीम चढ़ा यह कि इस स्वास्थ्य केंद्र की सेवाओं में सुधार लाने के लिये हुई शिकवा शिकायतों को भी आला अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया। इन हालातों को देखते हुए ऊपर से नीचे तक मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।
यहां बात हो रही है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फतेहपुर की। जहां की स्वास्थय सेवायें लगभग चौपट हैं या कह लें कि भगवान भरोसे हैं। इन कमियों का हाल जानने के लिए हाल ही में की गई शिकायतों पर नजर डालना जरूरी होगा। मुख्य चिकित्साधिकारी समेत आला अधिकारियों को भेजे गये शिकायती पत्र में साफ कहा गया है कि चीफ फार्मेसिस्ट जेएन पांडे द्वारा अस्पताल में आए मरीजों का इलाज किया जाता है। डी फार्मेसी जेएन पांडे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंदर फार्मेसिस्ट कमरे में ओपीडी चलाते हैं उनके द्वारा अस्पताल के अंदर आए मरीजों का इलाज किया जाता है। चीफ फार्मेसिस्ट व डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाइयां अस्पताल कैंपस में घूम रहे दलालों के द्वारा अस्पताल के गेट पर बिना मानक के गुमटी में खुले मेडिकल स्टोर पर दिलाई जा रही हैं। अधीक्षक एवं बीपीएम की लापरवाही के चलते कोविड-19 का टीका बिना स्टाफ नर्स प्रशिक्षण के द्वारा लगवाए जाता है। आरबीएसके में जो गाड़ियां लगी हैं उनके द्वारा उन गाड़ियों को बारात व शादी में बुकिंग बांधी जाती है। लेबर रूम स्टाफ नर्स अधीक्षक की मिलीभगत से 15 सौ रुपए डिलीवरी करवाने के लिए खुलेआम लिया जा रहा है। डेंटल के डॉक्टर एवं नेत्र डॉक्टर सीएचसी पर आते ही नहीं हैं। आंखों की जांच व ऑपरेशन यहां के अधीक्षक के निजी लोहिया अस्पताल महमूदाबाद में किया जाता है एवं ब्लड की भी जांच वहीं हो रही। बिना विजिट किए हुए लेप्रोसी का पैसा बंदरबांट किया जा रहा। शिकायत तो यहां तक है कि कुछ डॉक्टर व स्टाफ के फर्जी हस्ताक्षर कर उनका वेतन निकालकर बंटवारा कर लिया जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि अगर सीएचसी से आला अधिकारी संतुष्ट हैं तो शिकायत का निपटारा क्यों नहीं करते और असंतुष्टि की दशा में जांच का विषय है पर दोनों ही स्थिति में अधिकारी मौन साधे हैं। तो क्या मान लिया जाये कि एक सीएचसी का अधीक्षक मनमानी में मुख्य चिकित्साधिकारी पर भी हावी साबित हो रहा या फिर यह सब मिलीभगत का परिणाम है।
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