ग्रामीणों को बताई गई गोबर की खाद बनाने की विधि

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अवधनामा संवाददाता

कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन

बांदा। बाँदा कृषि एव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र बाँदा द्वारा कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम में गोबर की खाद बनाने की विधि एवं लाभ विषय पर एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन बड़ोखर विकास खण्ड के ग्राम त्रिवेणी किया गया। प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने कृषकों को बताया कि भूमि में लाभकारी जीवों का मुख्य भोजन कार्बनिक पदार्थ होता है जो गोबर की खाद में उच्च अनुपात में पाया जाता है। गोबर की खाद से अल्प मात्रा में नत्रजन सीधे पौधों को प्राप्त होता है और बडी मात्रा में खाद सडने के साथ साथ लम्बी अवधि तक उपलब्ध होता रहता है। फास्फोरस एवं पोटाश अकार्बनिक स्रोतों की भांति उपलब्ध होते गोबर की खाद में औसतन प्रति टन 5-6 कि0ग्रा0 नत्रजन, 1.2 से 02 कि0ग्रा0 फास्फोरस और 5-6 कि0ग्रा0 पोटाष पाया जाता है। हालांकि गोबर की खाद भारत में एक आम जैविक खाद है परन्तु किसान भाई इसके बनाने की वैज्ञनिक विधि एवं कुशलता पूर्वक इसके उपयोग पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं।
गोबर की खाद के फसलों में निम्नलिखित लाभ है-
ऽ मिट्टी की भौतिक, जैविक व रासायनिक गुणों में सुधार कर उर्वरता बढाता है।
ऽ नत्रजन व पौषक तत्वों का प्राकृतिक स्रोत है।
ऽ मिट्टी में ह्यूमस और धीमी गति से रिलीज होने वाले पोषक तत्वों में वृद्धि करता है।
ऽ भूमि की जलधारण क्षमता बढाकर पोषक तत्वों को बनाये रखता है।
ऽ लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढाता है।
गोबर की खाद तैयार करने की वैज्ञानिक विधिः-
अधिकतर पशुपालकों द्वारा गोबर का एक बडा भाग उपले बनाने में प्रयोग किया जाता है। जो सर्वथा गलत है और पशुओं के लिये बिछी मिट्टी में मूत्र नष्ट हो जाता है। वर्षा के मौसम में उपले न बनने के कारण ही गोबर को सडक किनारे या घरों के पास ढेर लगाकर खाद बनाने का कार्य किसान भाई करते हैं जिससे धूप व वर्षा के कारण पोषक तत्वों का ह्यूमस हो जाता है साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है।
गोबर की खाद तैयार करने के लिये ऐसे उंचे स्थल का चयन करें जहां वर्षा का पानी एकत्र होता है। तेज धूप व वर्षा से बचाने हेतु छायादार स्थान व छत की भी आवश्यकता होती है। इस विधि में 02 मी0 चैडा एवं 01 मी0 गहरा व सुविधानुसार लम्बाई का गढ्ढा खोदा जाता है। गढ्ढे की गहराई एक तरफ 3 फिट और दूसरी तरफ 3.5 फिट होनी चाहिये। वर्षा जल के भराव को रोकने के लिये गढ्ढे के चारों तरफ मेंड बनायी जाती है। प्रत्येक कृषक के पास 2-3 गढ्ढे होने चाहिये जिससे कि क्रम चलता रहे। पशुओं के गोबर को एकत्र करते समय सावधानी बरतनी चाहिये कि पशुओं का मूत्र नष्ट न होने पाये इसके लिये पशुओं के नीचे खराब भूसा बेकार चारा या फसलों के अवषेषों को फैला दिया जाता है। जो पषु मूत्र को सोख लेते हैं इसके लिये धान की पुआल एवं गन्ने की पत्तियां, बाजरे का बबूला आदि उपयुक्त रहते हैं। फसल अवषेषों द्वारा मूत्र सोख लेने से कार्बन और नत्रजन का अनुपात कम हो जाता है और अवषेष जल्दी सड जाता है। पक्के फर्ष की स्थिति में ढाल बनाकर गढढे में मूत्र को एकत्र किया जा सकता है। गढ्ढे में भरने के लिये पषुओं के गोबर को उनके मूत्र से भीगे बिछावन में मिलाकर परत दर परत भरते हैं। कम गहरी तरफ से गढ्ढा भरना शुरू करना चहिये। गडढे को मूत्र में भीगा बिछावन एवं गोबर की परतों से क्रमवार भरना चाहिये। इसी क्रम में गडढा भरते भरते भूमि के स्तर से लगभग 1.5 फिट उंचाई तक ढेर लगा सकते हैं। अन्त में उसके उपर 02 इंच मोटी मिट्टी की परत से ढक देना चाहिये। ऐसा करने से पोषक तत्वों का हा्स नहीं होगा और खरपतवारों के बीज अच्छी तरह सड जायेंगें। गड्ढा भरते समय फसल अवषेष में नमी पर्याप्त होनी चाहिये।
गोबर की खाद की उपयोग विधिः- गोबर की खाद प्रयोग करते समय खेत में नमी होना बहुत आवष्यक है और ढेरी लगाकर कभी न छोंडे। फसल बुआई के 15-20 दिन पूर्व खाद को समान रूप से बिखेर कर नमी की दषा में मिटटी में मिलाना चाहिये बिना सडी खाद का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिये इससे दीमक का प्रकोप बढता है। सामान्य फसलों में 2 से 5 टन/हे0 की दर से एवं सब्जी व गन्ने में 5-10 टन/हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिये। गोबर की खाद के साथ सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना उत्तम रहता है। प्रशिक्षण में पशुपालन के विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह ने केन्द्र की योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। प्रशिक्षण कार्यक्रम में गाँव के 28 कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री कमलनारायण बाजपेयी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। प्रशिक्षण में प्रगतिशील कृषक श्री राज कुमार का सराहनीय योगदान रहा।

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