सूर्यषष्ठी का महाव्रत रविवार को, सोमवार को अर्घ्य से होगा समापन

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अवधनामा संवाददाता

कुशीनगर। नहाय खाय के साथ शुक्रवार से सूर्यषष्ठी का महाव्रत शुरू हो गया। रविवार की सायंकाल निर्जला व्रतधारी महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य को सायं 5.34 बजे अर्घ्य देंगी। दूसरे दिन छठ घाटों पर सुबह 6.29 बजे उगते हुये सूर्य को अर्घ्य देकर महाव्रत का समापन करेंगी।
महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह व्रत मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां धन, धान्य, पति -पुत्र व सुख, समृद्धी से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं। सूर्य षष्ठी का व्रत चार दिनों तक चलता है। 28 अक्तूबर दिन शुक्रवार (चतुर्थी)को नहाय खाय से व्रत प्रारम्भ होगा। नहाय-खाय के साथ ही छठ पूजा का प्रारम्भ होगा। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करने के बाद सात्विक भोजन किया जाता है। इसके अगले दिन 29 अक्तूबर दिन शनिवार(पंचमी) को खरना है। छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना इस दिन से व्रत शुरू होता है और रात में खीर खाकर फिर 36 घण्टे का कठिन निर्जला व्रत धारण जाता है। खरना के दिन सूर्य षष्ठी पूजा के लिए प्रसाद बनाया जाता है। 30 अक्तूबर दिन रविवार को षष्ठी व्रत रहते हुए सायं काल अस्त होते हुए सूर्य को सूर्यार्घ पूजन के बाद अर्घ्य दिया जाता है। यह व्रत महिलाएं 36 घण्टे तक रहती हैं। 31अक्तूबर दिन सोमवार को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं पारणा कर व्रत का समापन करेंगी।
समस्त कष्ट दूर होने के साथ घर में आती है सुख, शान्ति व समृद्धि
ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय ने बताया कि सूर्यषष्ठी व्रत करने से विशेषकर चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को निष्ठा पूर्वक पूजा करने के साथ अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणों को अवश्य देखना चाहिए। मान्यता है कि प्राचीन समय में बिन्दुसार तीर्थ में महिपाल नामक एक वणिक रहता था। वह धर्म-कर्म तथा देवताओं का विरोध करता था। एक बार सूर्य नारायण के प्रतिमा के सामने होकर मल-मूत्र का त्याग किया, जिसके फल स्वरूप उसकी दोनों आखें नष्ट हो गईं। एक दिन यह वणिक जीवन से उब कर गंगाजी में कूद कर प्राण देने का निश्चय कर चल पड़ा। रास्ते में उसे ऋषि राज नारद मिले और पूछे -कहिए सेठ जी कहा जल्दी जल्दी भागे जा रहे है? अन्धा सेठ रो पड़ा और बताया कि सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से प्रताड़ित हो प्राण- त्याग करने जा रहा हूँ। मुनि नारद बोले- हे अज्ञानी तुम प्राण-त्याग कर मत मर। भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हें यह दुख भुगतना पड़ रहा है। तुम कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सूर्य षष्ठी का व्रत रख। तुम्हारा कष्ट समाप्त हो जायेगा। वणिक ने समय आने पर यह व्रत निष्ठा पूर्वक किया, जिसके फल स्वरूप उसके समस्त कष्ट दूर हो गए और वह सुख-समृद्धि प्राप्त करके पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया। अतः इस व्रत व पूजन करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
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