पुस्तकालयों का महत्व बढ़ा लेकिन विकास नहीं
(राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह विशेष १४-२० नवंबर २०२०)
शिक्षा के किसी भी युग या भविष्य में भी, पुस्तकालय के बिना शिक्षा का अस्तित्व असंभव है क्योंकि पुस्तकालय शिक्षा का मुख्य केंद्र है जहां दुनियाभर का ज्ञान निहित है। समय के साथ, इसका महत्व सर्वोपरि हो गया है। पुस्तकालयों में देश का सुनहरा भविष्य तैयार होता है। विश्व में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा शिक्षासंस्थान वाला भारत देश है। अगर देश की शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना है, तो पहले पुस्तकालयों को बेहतर बनाना होगा। पुस्तकालय जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा है और यह विद्वानों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। अध्ययन, अनुसंधान, किसी प्रश्न का हल ढूंढना, या विश्व के किसी भी प्रकार के विषयों पर नवनविन ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकालय हमेशा हमारे साथ होते है। पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र में नित नए आविष्कार हो रहे हैं जो पाठकों के ज्ञान की तृष्णा को शांत करने के लिए तत्पर है। आज, पुस्तकालय अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य कर रहे है। पारंपरिक पुस्तकालय से लेकर आज के वर्चुअल पुस्तकालय तक, इस क्षेत्र के हर पहलू में बहुत सारे प्रगतिशील बदलाव हुए हैं।
क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग पुस्तकालय होते हैं जैसेः- राष्ट्रीय पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय, व्यावसायिक पुस्तकालय, शैक्षिक पुस्तकालय, सरकारी पुस्तकालय इसके अलावा विषय विभाग के अनुसार विशेष पुस्तकालय हैं जैसे: चिकित्सा पुस्तकालय, रेलवे पुस्तकालय, बैंक पुस्तकालय, जेल पुस्तकालय, विभागीय पुस्तकालय, विभिन्न मंत्रालयों के पुस्तकालय, प्रांतीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय, कानून पुस्तकालय, समाचारपत्र पुस्तकालय, अन्ध पाठक हेतु पुस्तकालय, संगीत पुस्तकालय, बाल पुस्तकालय, सेना पुस्तकालय एवं मोबाइल (सचल) पुस्तकालय आदि ऐसे प्रत्येक क्षेत्र और विभाग का अपना पुस्तकालय होता है। दुनिया में किसी भी देश के अत्यंत दुर्लभ ग्रंथों, ताम्रपत्र लेखन, फिल्मों, पत्रिकाओं, मानचित्र, हस्तलिखीत पत्रों व ग्रंथों, ग्रामोफ़ोन अभिलेख, दृश्य-श्रव्य अभिलेख, ऐतिहासिक दस्तावेज़, विश्व के मशहूर हस्तियों के दस्तावेज़ जैसे डायरी, पत्र, वार्तालाप रिकॉर्ड, मुहर आदेशपत्र, विधिलिखित निर्णय और सैकड़ों वर्ष पुराने ऐसे अनेक अमूल्य साहित्य भी पुस्तकालय से आपको इंटरनेट द्वारा एक क्लिक पर तुरंत उपलब्ध है, इसके साथ ही दुनियाभर मे सभी क्षेत्रों में विकसित साहित्य, घटीत घटनाओं, अनुसंधान, पेटेंट व वर्तमान गतिविधियों का पूरा लेखा-जोखा पुस्तकालय द्वारा उपलब्ध होता है। पाठकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए संसाधन उपलब्ध हो रहे हैं जो गुणवत्तापुर्ण ज्ञान के साथ ही पाठकों के समय की भी बचत करते हैं।
पुस्तकालय महत्वपूर्ण है तो विकास क्यों नहीं :- आज हम आधुनिक युग में जी रहे हैं, विश्वभर मे पुस्तकालयों ने तेजी से प्रगति की है हमारे देश के आयआयटी, आयआयएम, एम्स जैसे केंद्रिय संस्थानों के पुस्तकालय या कुछ बड़े निजी संस्थानों के पुस्तकालय विकसित नजर आते हैं। लेकिन जब हम अपने आसपास के पुस्तकालयों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि पुस्तकालयों का विकास कहां है? देश के हजारों छोटे-बड़े पुस्तकालय अविकसित दिखते हैं, जबकि देश का सबसे बड़ा पाठक वर्ग इन पुस्तकालयों से है। इन पुस्तकालयों मे पाठकों के लिए अत्याधुनिक संसाधन देखना तो दूर आधारभूत पुस्तकालय सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। कई पुस्तकालयों में साहित्य के नाम पर कुछ अखबार ही दिखाई देते हैं। सरकार ने हर क्षेत्र, विभाग, स्कूल, कॉलेज, संस्थान, समाज के लिए पुस्तकालय के महत्व को माना है लेकिन पुस्तकालय के विकास में हम अब भी बहुत पिछड़े हैं।
पुस्तकालय में तज्ञ कर्मचारी ही नहीं :- पुस्तकालय में पाठकों को केवल इस क्षेत्र का विशेषज्ञ ही बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकता है लेकिन देश के कई राज्यों के स्कूलों, विभागों में बरसों से पुस्तकालय कर्मचारियों की भर्ती ही नहीं हुई है। कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहते है लेकिन नए कर्मचारी नहीं आते, कई स्थानों पर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों भरोसे पुस्तकालय चल रहे हैं, कुशल कर्मचारी वर्ग, अच्छे पाठ्य साहित्य सामग्री, सुविधाओं, पर्याप्त निधी का अभाव है, स्थानीय प्रशासन (महानगर पालिका, नगरपालिका) के सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थिति भी ऐसी ही है। पाठक बुनियादी सेवाओं से भी वंचित है। अन्य विषय क्षेत्रों के पुस्तकालयों की स्थिति भी चिंताजनक है। इस तरह के पुस्तकालयों में न ही अप-टू-डेट संसाधन हैं, और न ही पुस्तकालय नियम के हिसाब से काम किया जाता है। एक तरफ हम शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं और दूसरी तरफ पुस्तकालयों के विकास की अनदेखी कर रहे हैं।
कई पुस्तकालय बन रहे खंडहर :- देश के हजारों पुस्तकालय अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं अर्थात कई पुस्तकालय पर्याप्त निधी और बेहतर प्रबंधन की कमी के कारण खत्म होने के कगार पर हैं, वहा की बहुमूल्य पाठ्य साहित्य सामग्री खराब हो रही है, कई पुस्तकालयों में पाठकों के लिए पर्याप्त मेज, कुर्सियां, पंखे, रोशनी, पीने का पानी, शौचालय, बिजली भी नहीं है और पुस्तकालय भवन की खिड़कियां, दरवाज़े, दीवारें कमजोर हो गई हैं। बारिश में छत से पानी टपकता है। पुस्तकालय भवन जर्जर हालत में है। यह स्थिति छोटे गाँवों से लेकर बड़े शहरों तक हर जगह नजर आती है फिर भी ऐसे हालात में भी पाठक बड़ी संख्या में पुस्तकालयों का उपयोग कर रहे हैं। उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहतर पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण पुस्तकालय के प्रति युवाओं का झुकाव बढ़ा है। पुस्तकालय, पाठकों को स्कूल से जीवन के अंत तक साथ देते है और आज ऐसे कई पुस्तकालय खुद ही अपने अंतिम दिनों में पहुंच गए हैं।
प्रत्येक पुस्तकालय का विकास अत्याधुनिक हो :- यदि शिक्षा प्रणाली को उन्नत करना है, तो पुस्तकालयों के विकास पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्रीय, राज्य, स्थानीय प्रशासन को शिक्षा के अलावा अपने बजट में पुस्तकालय के लिए बड़ी मात्रा में वित्तीय सहायता प्रदान करना चाहिए। देश के सभी प्रकार के पुस्तकालयों मे हर साल आवश्यकता अनुरूप कर्मचारी भर्ती होनी ही चाहिए। जिस प्रकार नगर अब एक महानगर का रूप ले रहे है, बढ़ती जनसंख्या के अनुसार, शहर बढ़ रहे हैं उस हिसाब से पुस्तकालयों की संख्या नहीं बढ़ रही है। पुस्तकालय में पढ़ने के लिए छात्र दूर-दूर से आते हैं, देश में पुस्तकालयों की कमी है इसलिए पुस्तकालयों का विस्तार किया जाना अत्यावश्यक है। आयआयटी आयआयएम के पुस्तकालय जैसे गुणवत्तापुर्ण पुस्तकालय हर शहर में होने चाहिए।
प्रत्येक जिले में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पुस्तकालय होना चाहिए जिससे उस जिले के सभी कस्बों और गाँवों के सभी पुस्तकालय इससे पूर्णतया जुड़े हों ताकि हर गांव के पाठकों को गांव में ही अंतरराष्ट्रीय पुस्तकालय की सुविधा संसाधन साझाकरण और इंटरनेट द्वारा मिल सकेगी और हर गाँव में, शहर के हर वार्ड में, पुस्तकालयों की स्थापना होनी चाहिए। मोबाइल पुस्तकालय को गति देनी होगी, बच्चों को स्कूली शिक्षा के शुरुआती दिनों से ही पुस्तकालय का महत्व सिखाया जाना चाहिए। प्रत्येक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को अंतरराष्ट्रीय मानक का पुस्तकालय बनाकर, विश्वविद्यालय अंतर्गत आने वाले प्रत्येक कॉलेज के पुस्तकालय से ऑनलाइन जोड़ा जाना चाहिए। प्रत्येक स्कूल और महाविद्यालय या अन्य शैक्षिक विभाग के पुस्तकालय को ई-पुस्तकालय बनाना होगा, जो अपने संस्थान के साहित्य को ऑनलाइन अपलोड कर इसे डिजिटल पुस्तकालय का स्वरूप दें और अपने संस्थान की ई-रिपॉजिटरी स्थापित करे। हमारे देश में राज्यों की स्कूलस्तरीय पुस्तकालयों और सार्वजनिक पुस्तकालयों की हालत गंभीर है इसे सुधारने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर पुस्तकालय सूचना विज्ञान के क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञों की समितियों का गठन किया जाना चाहिए । यह समिति विभिन्न स्तरों के पुस्तकालयों की मूल्यांकन कर सरकार को इसके विकासात्मक पहलुओं पर सुझाव देगी और अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय पुस्तकालय के निर्माण के लिए कार्यपद्धति पर नजर रखेगी।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम
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