ताला सैयद की मजार में आज तक न दीवारे बनाई गई और न ही डाली गई छत
महोबा। उत्तर भारत के मशहूर कजली मेला आल्हा ऊदल की याद में मनाया जाता है, लेकिन आल्हा ऊदल के गुरु कहे जाने वाले ताला सैयद की भी कीरत सागर तट पर हुई लड़ाई में अहम भूमिका रही थी। राजा परमाल और दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के मध्य हुई लड़ाई में ताला सैयद के कई बेटे शहीद हुए थे, बावजूद इसके कजली मेले के मौके पर ताला सैयद को बुंदेलखंडी भूलते जा रहे हैं साथ ही कीरत सागर के किनारे स्थित पहाड़ पर ताला तैयाद का बना मजार भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया है। पालिका प्रशासन हर साल कजली मेले के मौके पर आल्हा ऊदल की प्रतिमाओं को रंगरोगन करके चमकाता है, लेकिन ताला सैयद की जर्जर हो रही मजार की तरफ कोई ध्यान नही दिया जाता है।
843 साल पहले कीरत सागर तट पर दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान की सेना ने आल्हा ऊदल और ताला सैयद के महोबा में न होने की सूचना पाकर युद्ध छेड़ दिया था और राजकुमारी चंद्रवल का डोला घेर लिया था, तभी आल्हा ऊदल को युद्ध के लिए बुलाया गया, जिन्होंने पहले युद्ध में जाने में आना कानी की, लेकिन ताला सैयद के कहने पर आल्हा ऊदल अपने साथियों के साथ महोबा के कीरत सागर तट पर पहुंच गए। आल्हा ऊदल के साथ ताला सैयद भी युद्ध की बागडोर एक तरफ से सम्भाले हुए थे और आल्हा ऊदल को सुरक्षा देते हुए फौज के साथ आगे बढ़ रहे थे। दूसरी तरफ से राजा परमाल की सेना चढ़ाई करती जा रही थी। इस युद्ध में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज के तमाम सैनिक मारे गए और दिल्ली नरेश को भागना पड़ा।
कीरत सागर तट पर हुई भीषण लड़ाई में चाचा ताला सैयद और आल्हा ऊदल की तलवार ने जो चमत्कार दिखाया उसका बुंदेलखंडी कलाकार आज भी आल्हा गायन के जरिए बखान करते हैं। यही वजह है कि आल्हा गायन सुनते ही लोगों की भुजाएं फड़कने लगती है और उनमें जोश भर आता है। आल्हा ऊदल के गुरु कहे जाने वाले ताला सैयद की मजार उपेक्षित पड़ी है। कई जगह से दरारे पड़ गई है। मजार पर न दीवारें हैं और न ही छत बनाई गई है, जिससे ताला सैयद की मजार धीर धीरे जर्जर होती जा रही है। इसकी मरम्मत का भी कोई कार्य नहीं कराया जा रहा है, जबकि पालिका प्रशासन कजली मेले के नाम पर हर साल लाखों रुपये खर्च करता है।
दशकों से आधूरी पड़ी ताला सैयद के मजार की सीढ़ियां
ऐतिहासिक कजली मेले में जुटने वाली लाखों की भीड़ कीरत सागर तट पर बने ताला सैयद का मजार देखने जाते हैं, जिसके मद्देनजर दो दशक पहले पहाड़ पर सीढियां बना दी गई थी, लेकिन आधे पहाड़ तक तो सीढ़ियां बनाई गई और उसके बाद ऊबड़ खाबड़ रास्ते से लोग मजार तक पहुंचते हैं। आधी अधूरी पड़ी सीढ़ियों को आज तक पूरा करने की प्रशासन ने जहमत नहीं उठाई, जिससे कजली मेले में जुटने वाली भीड़ को ताला सैयद के मजार पर जाने में भारी मशक्कत का सामना करना पड़ती है। आल्हा सम्राट वंशगोपाल यादव का कहना है कि आल्हा ऊदल के गुरु ताला सैयद के मजार पर सीढ़ियों का निर्माण कराए जाने के लिए कई बार लिखा पढ़ी की गई, लेकिन आज तक अधूरी सीढ़ियों को पूरा नहीं कराया गया है।