प्रकृति के स्वागत का पर्व सोहराय, लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

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  • मकर संक्रांति का इतिहास (History Of Makar sankranti)

मकर संक्रांति त्यौहार को लेकर कई अलग-अलग तरह की मान्यताएं (Beliefs) हैं। ऐसा बताया गया है कि भीष्म पितामह को इच्छा-मृत्यु (Wish Death) का वरदान (Gift) प्राप्त था। ऐसे में उनका पुनर्जन्म (Rebirth) न हो इसलिए उन्होंने सूर्य के मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश (Enter) करने पर ही इच्छा-मृत्यु (Wish Death) प्राप्त की। उत्तरायण अवधि के इंतजार में वो अर्जुन (Arjun) द्वारा बनाई गई बाणशैया पर ही पड़े थे। हालांकि, इसके अलावा भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक अन्य कथा भी है। माता यशोदा (Mata Yashoda) ने इसी दिन संतान प्राप्ति (Child Recovery) के लिए व्रत किया था। ऐसे में इस दिन कई महिलाएं (Womens) तिल, गुड़ आदि दूसरी महिलाओं को बांटती हैं। साथ ही कहा जाता है कि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) से तिल की उत्पत्ति हुई थी। इसका इस्तेमाल पापों से छुटकारा (Get rid of sin) पाने के लिए किया जाता है।

 

नववर्ष (New Year) के आगाज के साथ पर्व-त्योहार (Festival) का सिलसिला शुरू हो गया है। गुरुवार को देश भर में मकर संक्रांति और दक्षिण भारत में पोंगल की धूम रहेगी। इन पर्व को मनाने का उद्देश्य एक ही है, प्रकृति को धन्यवाद देना और उनके प्रति अपना आभार प्रकट करना।

आज आदिवासी समाज (Tribal society) सोहराय और पंजाबी समुदाय (Panjabi Community) के लोग लोहड़ी मनायेंगे।

इन पर्वों को नववर्ष (New Years) के आगमन का सुखद संदेश (Happiness Massage) भी माना जाता है। कहा जाता है कि नयी फसल (New crop ) की पूजा (Prayer) व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने से सालों भर हमारा घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा।

इन पर्वों के जरिये अलग-अलग समुदाय (Community) के लोग अपने परंपरा (Tradition) व नियमों (Rules) के मुताबिक पूजा (Prayer) करते हैं और खुशी व्यक्त करते हैं।

आदिवासी समाज (Tribal society) के लोग सोहराय मनायेंगे। रांची के शहरी क्षेत्र से लेकर संताल इलाके में आदिवासी समाज (Tribal society) में अखड़ा सज्जा से लेकर तीन दिवसीय (Three Days) पर्व (Festival) को मनाने का उत्साह देखा जा रहा है। मंगलवार (Tuesday) को लोग अपने घर की साफ-सफाई, लीपाई-पोताई करने के साथ दीवारों पर सोहराय चित्रकला (Painting) व दरवाजे पर अल्पना सजाते दिखे। 14 जनवरी को आदिवासी समुदाय अपने-अपने घर के मवेशियों (Cattles) की साज-सज्जा कर उनके मनोरंजन (Entertainment) व विशेष खान-पान की तैयारी कर रहे हैं।

सात तरह के ‘पखवा’ तैयार किये जायेंगे: साहित्यकार (Writer) गिरधारी राम गंझू (Girdhari Ram Ganjhu) ने बताया कि सोहराय पर्व को आदिवासी समाज (Tribal society) नये फसल के साथ-साथ पशु-पक्षियों को समर्पित करते हैं। खेती-किसानी से जुड़े होने के साथ पशुओं को इस दिन खास तौर पर पूजा (Prayers) जाता है। पशु-पक्षी जो किसान वर्ग (Farmer Class) के लिए गोधन, बाजीधन और साधन है, उन्हें लक्ष्मी मानकर पूजते हैं।

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