Friday, July 25, 2025
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कोविड-19 महामारी ने बढ़ाया वयस्कों में दिमागी बुढ़ापा, इन्फेक्शन नहीं, बल्कि कुछ और है इसकी वजह

कोविड-19 महामारी का सेहत पर कैसा असर पड़ा है इस बारे में हम जानते ही हैं। लेकिन हाल ही में हुई एक स्टडी में पता चला है कि कोविड-19 महामारी के बाद लोगों के दिमाग पर काफी गहरा असर (COVID-19 Affects on Brain) पड़ा है। इस महामारी के बाद वयस्कों के दिमाग की एजिंग प्रोसेस लगभग 5 साल ज्यादा हो गई। आइए जानें क्या कहती है ये स्टडी।

एक नए अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 महामारी का अनुभव करने से दिमाग का बुढ़ापा (COVID-19 Pandemic Effect on Brain) महामारी के पहले और बाद की स्थितियों का लगभग पांच और आधे महीने तेज हो गया है, चाहे किसी की संक्रमण स्थिति कैसी भी हो। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन अलगाव और अनिश्चितता जैसे पहलुओं के अप्रत्यक्ष प्रभावों की ओर इशारा करता है।

क्या कहती है स्टडी?

नाटिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में इस अध्ययन में यूके में वयस्कों के मस्तिष्क स्कैन का विश्लेषण किया गया, जो महामारी से पहले और बाद में लिए गए थे। उन्होंने पाया कि यह परिवर्तन सबसे अधिक उम्रदराज व्यक्तियों, पुरुषों और वंचित पृष्ठभूमियों के लोगों जैसे बेरोजगार और कम आय या शिक्षा वाले लोगों के मस्तिष्क में स्पष्ट थे।

हालांकि, मस्तिष्क का बुढ़ापा संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है, जिसमें ब्रेन फॉग और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई सामान्य लक्षण हैं, यह केवल उन लोगों में पाया गया जो कोविड-19 से संक्रमित थे।

यह सुझाव देते हुए कि मस्तिष्क का बुढ़ापा अकेले लक्षण पैदा नहीं कर सकता। प्रमुख शोधकर्ता अली रेजा मोहम्मदी नेजाद ने कहा कि यह अध्ययन यह दर्शाता है कि महामारी के अनुभव ने अलगाव से लेकर अनिश्चितता तक हमारे मस्तिष्क के स्वास्थ्य को कितना प्रभावित किया है।

मोहम्मदी नेजाद ने आगे कहा, सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का हुआ कि जिन लोगों को कोविड़ नहीं हुआ, उनमें भी मस्तिष्क के बुढ़ापे की दर में वृद्धि देखी गई। महामारी से संबंधित मस्तिष्क का बुढ़ापा आंशिक रूप से उलटने योग्य हो सकता है, लेकिन यह सामाजिक- आर्थिक वंचना से मजबूती से जुड़ा हुआ है, इसलिए असमानताओं को संबोधित करने वाली नीतियों की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि इस समय मौजूदा अंतर बढ़ गए थे।

एआइ संचालित मॉडल का उपयोग

मस्तिष्क की उम्र की भविष्यवाणी के लिए एआइ संचालित माडल का उपयोग किया गया। पहले यूके बायो बैंक से 15,000 से अधिक स्वस्थ लोगों के मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेज (एमआरआइ) मस्तिष्क स्कैन पर प्रशिक्षित किए गए थे।

मॉडल ने ‘मस्तिष्क की उम्र के अंतर को मापने के लिए सीखा यानी किसी के मस्तिष्क की उम्र उनके वास्तविक उम्र से कितनी भिन्न है। फिर इन मॉडलों का उपयोग 996 स्वस्थ प्रतिभागियों के मस्तिष्क के दो स्कैन का विश्लेषण करने के लिए किया गया।

इनमें से 564 लोगों (नियंत्रण) के लिए दो स्कैन महामारी से पहले लिए गए, जबकि ‘महामारी’ समूह में 432 व्यक्तियों में से एक स्कैन पहले और एक बाद में लिया गया।

महामारी के बाद लोगों के जीवन पर कई तरह का दबाव बढ़ा

इसके अलावा दोनों स्कैन के समय लिए गए संज्ञानात्मक परीक्षणों ने यह दर्शाया कि तेजी से हो रहा मस्तिष्क का बुढ़ापा केवल कोविड से संक्रमित प्रतिभागियों में कम संज्ञानात्मक प्रदर्शन के साथ जुड़े है। नाटिंघम विश्वविद्यालय में न्यूरोइमेजिंग की प्रोफेसर और वरिष्ठ लेखक डोरोथी आयर ने कहा, यह अध्ययन हमें याद दिलाता है कि मस्तिष्क का स्वास्थ्य केवल बीमारी से नहीं बल्कि दैनिक वातावरण से भी आकार लेता है।

आयर ने कहा कि महामारी ने लोगों के जीवन पर दबाव बढ़ा, विशेषकर उन लोगों पर जो पहले से ही वंचित थे। हम यह परीक्षण नहीं कर सकते कि क्या हमने जो बदलाव देखे हैं वे उलटेंगे, लेकिन यह निश्चित रूप से संभव है और यह एक उत्साहजनक विचार है।

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