बीमार जिलासप्ताल का हाल दावों में चंगा, दवाईयां हैं, मगर डॉक्टर नहीं संसाधन हैं मगर टेक्निशियन नहीं 

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अवधनामा संवाददाता(शकील अहमद)

धूल फांक रहीं हाईटेक मशीने, जिम्मेदार बेपरवाह
कुशीनगर। जिला संयुक्त चिकित्सालय कुशीनगर को योगी सरकार ने मेडिकल कॉलेज का दर्जा दिया है। लेकिन असल में कुशीनगर के जिलासप्ताल में डॉक्टरों और तकनीकी उपकरणों के स्टाफ की भारी कमी देखी जा रही हैं। जिसका खामियाजा जिला संयुक्त चिकित्सालय में इलाज कराने पहुचने वाले मरीजों को भुगतना पड़ता है। इलाज के लिए डॉक्टरों द्वारा लिखे जाँचो की पर्ची मरीजो और तीमारदारों से दलाल लेकर पैसे वसूलते और जो इनका विरोध करते उनसे मारपीट भी करते है। वही दूसरी ओर जिम्मेदार सभी व्यवस्था बेहतर होने का दावा कर रहे।
पूर्वांचल में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने पर योगी सरकार का विशेष जोर है। लेकिन कुशीनगर में प्रशासनिक लापरवाही के चलते सरकारी दावा कागजो में सिमट कर रह गया गया है।कुशीनगर जिला संयुक्त चिकित्सालय प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के सपनों पर पलीता लगता रहा। सरकार ने इसे जिलासप्ताल से मेडिकल कॉलेज का दर्जा देकर उसके निर्माण कार्य को युद्ध स्तर पर करा रही। लेकिन उसी जिला अस्पताल में डॉक्टरों से लेकर मूलभूत सुविधाओं का टोटा है।
कुशीनगर जिला बिहार सीमा से जुड़ा है लिहाजा जनपद ही नहीं बल्कि बिहार के दूर दराज के मरीजों का भी आना जाना लगा रहता हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुशीनगर जिले में अपना कर्मक्षेत्र भी स्वास्थ्य महकमे को बनाये थे। सूबे की कमान संभालने के बाद जिला अस्पताल को मेडिकल कालेज के दर्जा दे दिया। मगर उसके मुकाबले ना तो डॉक्टरों की तैनाती हुई, ना तो टेक्निशियन की। फिलहाल बात अभी जिला अस्पताल की करे तो यहां डॉक्टरों के 25 पद हैं, जिनमें सिर्फ 9 कार्यरत और 16 खाली हैं। महिला डॉक्टरों के पद 12 हैं जो सभी खाली हैं। अस्पताल में जांच करने की मशीन तो है मगर टेक्निशियन नहीं हैं। चतुर्थ श्रेणी में ओटी टेक्निशियन के दोनों पद खाली हैं। ऐसे ही दूसरे संसाधनों की या तो कमी है या उनको ऑपरेट करने वाले तैनात ही नही किये गए। नतीजा अस्पताल में दलालों की चांदी कट रही है। जो मरीजों को बहला फुसलाकर अक्सर निजी अस्पतालों में झोंक देते हैं। जहां मरीजों का पर्चा और खर्चा दोनों उनके बूते के बाहर होता है। अस्पताल के संसाधन और मानव संसाधन की बात अब जरा व्यवस्था पर भी नजर डाल लीजिए। अस्पताल बनने के दो दशकों बाद भी यहां पार्किंग की कोई सुविधा नही। नतीजा गाड़ियों का अम्बार बेतरतीब लगा रहता है। अस्पताल के दूसरे तरफ बने पोस्टमार्टम हाउस का भी हाल इससे अलग नहीं है।
इलाज कराने गए तीमारदारों की जुबानी
जिलासप्ताल पहुचे तीमारदार दिनेश लाल श्रीवास्तव ने बताया किन हम अपने मरीज को भर्ती कराये हैं। एक मैडम से डॉक्टर के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि “उनकी कोई टाइमिंग फिक्स नही। ऐसे में अगर मरीज बहुत सीरियस होगा तो इमरजेंसी के डॉक्टर को दिखा देंगे।” यह जबाब मिला जो बिल्कुल भी संतोजनक नही है पर क्या करे मेरे पास भी व्यवस्था होती तो कहि प्राइवेट में लेकर जाता पर मजबूर हु कर भी क्या सकता। अपनी बहन को इलाज के लिए पहुची तीमारदार संजना ने बताया कि हम इलाज के लिए आये डॉक्टर ने जांच लिखी। जाँच अंदर के बजाय बाहर से कराना पड़ रहा। आखिर जिलासप्ताल में जब बिमारिओ के इलाज के लिए जाँच नही है तो इलाज कैसे होगा। बाहर का इलाज काफी महंगा होता हैं। साथ ही कहा होगा इसकी तलाश के लिए भटको या किसी बिचौलिये के सहारे कराओ हमारी मजबूरी हैं।
बदइंतजामी के बीच सीएमएस ने व्यवस्था चाक चौबंद बताया
जिलासप्ताल के सीएमएस डॉ एस. के. वर्मा से जब इस सम्बंध में बात की गई तो उन्होंने अस्पताल में दवाओं की व्यवस्था को चाक चौबंद बताया। किसी दवा की कमी होने पर जिला अस्पताल से बाईस किलोमीटर की दूर स्थित केंद्रीय स्टोर रूम मंगाने की बात कही। वही जिलासप्ताल में चिकित्सकों की कमी को उन्होंने खुद बताया ब्युजुद बेहतर व्यवस्था होने का दावा भी किया। जिला अस्पताल में चल रहे निर्माण के कारण गन्दगी बताया।
मरीजों के परिजनों से वसूली का भी मामला
कुशीनगर में प्राइवेट एंबुलेंस, झोला पन्नी और दूसरे सामानों के लिए मरीजो के परिजनों से जबरिया वसूली आम बात है। जाहिर है इस बदइंतजामी के चलते जिले के एकमात्र बड़े अस्पताल के सेहत नाजुक है। जिसे सरकारी वेंटिलेटर की सख्त जरूरत है वरना पूरा सिस्टम ध्वस्त होने में समय नहीं लगेगा।

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