अमरे इलाही के साथ जो मरकज़े क़ायनात होता है उसे इमाम कहते- मौलाना गुलाम रसूल नूरी

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अवधनामा संवाददाता

बाराबंकी। अमरे इलाही के साथ जो मरकज़े क़ायनात होता है उसे इमाम कहते। बग़ैर मरकज़ के क़ायनात का चलना मुमकिन नहीं इसी लिए परवरदिगार ने जब कायनात का इरादा किया तो इमाम को भी बनाया।
यह बात अहमद रज़ा द्वारा आयोजित अशरये मजालिस की पांच मजलिसों को खिताब करने श्रीनगर कश्मीर से मौलाना गुलाम अस्करी हाल मे आए आली जनाब मौलाना गुलाम रसूल नूरी ने कही। मौलाना ने यह भी कहा कि कायनात की चक्की का चलना मरकज़ की मौजूदगी की दलील है। दिखाई दे या न दिखाई दे। ग़ैबत मे इमाम की मौजूदगी की दलील है की कायनात चल रही है जो अली की इताअत करता है ज़र्रा ज़र्रा उसकी इताअत करता है जो अपने ज़माने के इमाम से तजल्लियां पाता है कोई ख़ामनाई, सीस्तानी तो कोई सुलेमानी बन जाता है। अगर ज़्यारते इमामे ज़माना चाहिए तो दुनियां की लालच से बाहर आईये। जब मुसलमान बग़ैर अली एक खंदक पार न कर पाए तो पुले सिरात क्या पार कर पायेंगे।
आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किये जिसे सुनकर सभी रोने लगे। मजलिस से पहले कशिश संडीलवी ने पढ़ा करबला में देखकर सिब्ते पयम्बर का मिजाज़ एक नुक़्ते परसिमट आया बहत्तर का मिजाज़। अजमल किन्तूरी ने पढ़ा महवे मातम बर्क़ क्यों अपने अज़ाख़ाने में है, बादलों की अंजुमन भी अश्क बरसाने मे है। जिना जफराबादी ने पढ़ा जिसको भी मौला अज़ाखाना तुम्हारा मिल गया, ख़ुल्द जाने का यक़ीनन उसको रस्ता मिल गया। मुजफ्फर इमाम ने पढ़ा वारिसे हैदरे कर्रार यही हैं लोगों, हक उधर जाता है शब्बीर जिधर जाते है। हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा – मुमकिन नहीं है शाह का ग़म हो सके रक़म, सर वर तख़य्युलात की चादर समेट ले। इसके अलावा ज़ाक़िर इमाम नजफ़ी मो. सादिक़ मो. हसनैन व मो. जवाद ज़ैदी ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया। नौहाख्वानी व सीनाज़नी अंजुमन ग़ुन्चये अब्बासिया ने किया। मजलिस का आग़ाज़ तिलावते कलाम ए इलाही से मो. जवाद व मो. हसन ज़ैदी ने किया। बानियाने मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।

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