कारगिल विजय दिवस के मौके पर इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को याद किया जा रहा है। इस युद्ध में विजय हासिल कर भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता का परिचय दिया था। वहीं, जालौन के चिल्ली गांव के शहीद योगेन्द्र पाल को आज याद किया जा रहा है। परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है तो सरकार भी सैनिकों के परिजनों को सम्मानित कर रही है।
दरअसल, जालौन के चिल्ली गांव के रहने वाले योगेंद्र पाल ने इस युद्ध में हिस्सा लिया और अपने विरोधियों को धूल चटाई और घायल होने के बाद भी अंतिम सांस भी देश के नाम पर न्योछावर कर दी। शहीद योगेंद्र पाल की शहादत पर उनका परिवार गमगीन है तो यहां के ग्रामीण शहीद का गांव कहलाने पर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
कारगिल युद्ध में शहीद योगेंद्र पाल ने साल 1996 में भारतीय सेना की ईएम6-631 रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। उन्होंने 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई तक करीब 90 दिनों तक चले युद्ध में दुश्मनों को भारतीय सेना का लोहा मनवाया था। 3 महीने तक चलने वाले इस युद्ध में -30 डिग्री के तापमान में भारतीय सेना का हर जवान अपनी आखिरी सांस तक लड़ा। शहीद योगेंद्र पाल कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को युद्ध के बाद सर्च अभियान के दौरान माइंस पर पैर पड़ने के कारण घायल हो गए थे और 7 अगस्त 1999 को शहीद हो गए थे। उनकी याद में चिल्ली गांव में प्रवेश द्वार और स्मारक बनाया गया है।