14वें माइलस्टोन पर हुआ हादसा

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सिक्किम में नाथुला के पास हिमस्खलन, 7 पर्यटकों की मौत; 80 से ज्यादा के फंसे होने की आशंका
सिक्किम में एवलांच, 7 टूरिस्ट की मौत:चीन बॉर्डर पर हादसा; बीआरओ ने 22 पर्यटकों का रेस्क्यू किया, इनमें 11 गंभीर घायल

नई दिल्ली। सिक्किम की राजधानी गंगटोक में मंगलवार को एवलांच (हिमस्खलन) हुआ। इसमें 7 टूरिस्ट की मौत हो गई। मरने वालों में चार पुरुष, दो महिलाएं और एक बच्चा शामिल है। यह घटना दोपहर करीब 12.20 बजे गंगटोक को नाथु ला दर्रे से जोडऩे वाले जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर हुई।
22 पर्यटकों को बर्फ से निकाला गया है, इनमें 11 की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें गंगटोक के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
जानकारी के अनुसार, नाथुला इलाके में मंगलवार को दोपहर करीब 12 बजकर 20 मिनट पर हिमस्खलन हुआ। घटना के बाद, छह लोगों ने नजदीकी सैन्य अस्पताल में दम तोड़ दिया। मरने वालों में चार पुरुष, एक महिला और एक बच्चा शामिल है। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि गंगटोक को नाथुला से जोडऩे वाले जवाहरलाल नेहरू रोड पर हिमस्खलन हुआ है।
पुलिस के अनुसार, 150 से अधिक पर्यटक अभी भी घटनास्थल से आगे फंसे हुए हैं। इस बीच, बर्फ में फंसे 30 पर्यटकों को बचा लिया गया है और उन्हें गंगटोक के एसटीएनएम अस्पताल और सेंट्रल रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
जानकारी के अनुसार, फिलहाल सिक्किम पुलिस, सिक्किम के ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन, पर्यटन विभाग के अधिकारियों और वाहन चालकों द्वारा बचाव अभियान चलाया जा रहा है।
चेकपोस्ट के महानिरीक्षक सोनम तेनजिंग भूटिया के अनुसार, “पास केवल 13वें मील के लिए जारी किए जाते हैं, लेकिन पर्यटक बिना अनुमति के 15वें मील की ओर जा रहे हैं। यह घटना 15वें मील में हुई।
हादसे वाले इलाके में 13वें माइलस्टोन तक जाने का पास जारी किया जाता है। इसके आगे जाने की परमिशन नहीं होती। बताया जा रहा है कि सैलानी जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर 14वें माइलस्टोन तक चले गए और यहीं हादसा हो गया।
नाथुला दर्रा चीन की सीमा पर स्थित है। प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षक जगह है। आर्मी के सूत्रों के मुताबिक, जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर 14वें पड़ाव पर हुए हिमस्खलन में 25-30 पर्यटक फंस गए थे। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने तेजी से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करके 22 लोगों को बचाया है। इसमें छह पर्यटक गहरी घाटी से निकाले गए। करीब 350 लोग और 80 गाडिय़ां सड़क बाधित होने के कारण नाथू ला पर फंसे हुए थे।
अब तक वैज्ञानिक ये भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हैं कि हिमस्खलन कब और कहां होगा। वे बस बर्फ के ढेर, तापमान और हवा की कंडीशन से हिमस्खलन के खतरे का अनुमान लगा सकते हैं। बर्फ में स्कीइंग वाले कुछ इलाकों में एवलांच कंट्रोल टीमें तैनात होती हैं।
कुछ स्कीइंग वाले इलाकों के गश्ती दल हिमस्खलन रोकने के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी भी खतरनाक ढलानों को तोप से उड़ा देते हैं, ताकि किसी ढीले या नए बर्फ के ढेर को हिमस्खलन बनने से रोका जा सके। कनाडा और स्विट्जरलैंड के ऊंचे पहाड़ों पर हिमस्खलन कंट्रोल के लिए स्पेशल मिलिट्री तैनात होती है। स्विट्जरलैंड में कई पहाड़ी गांवों में घरों को बर्फ के ढेर से बचाने के लिए मजबूत ढांचे लगाए जाते हैं।
इस टूरिस्ट प्लेस पर एक पास जारी होता है। सैलानियों को 13 मील तक जाने की परमिशन रहती है, लेकिन लोग 15 मील तक चले गए। हिमस्खलन कब और कहां होगा, इसकी भविष्यवाणी वैज्ञानिक नहीं कर सकते हैं। वे बस बर्फ के ढेर, तापमान और हवा की कंडीशन से हिमस्खलन के खतरे का अनुमान लगा सकते हैं। नाथुला दर्रा चीन की सीमा पर स्थित है। प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षक जगह है।
बर्फ या पत्थर के पहाड़ की ढलान से तेजी से नीचे गिरने को हिमस्खलन या एवलांच कहते हैं। हिमस्खलन के दौरान बर्फ, चट्टान, मिट्टी और अन्य चीजें किसी पहाड़ से नीचे की ओर तेजी से फिसलती हैं।
हिमस्खलन आमतौर पर तब शुरू होता है जब किसी पहाड़ की ढलान पर मौजूद बर्फ या पत्थर जैसी चीजें उसके आसपास से ढीली हो जाती हैं। इसके बाद ये तेजी से ढलान के नीचे मौजूद और चीजों को इकट्टा कर नीचे की और गिरने लगती हैं। चट्टानों या मिट्टी के स्खलन को भूस्खलन कहते हैं।
पहला कई बार पहाड़ों पर पहले से मौजूद बर्फ पर जब हिमपात की वजह से वजन बढ़ता है, तो बर्फ नीचे सरकने लगती है, जिससे हिमस्खलन होता है। दूसरा-गर्मियों में सूरज की रोशनी यानी गर्मी की वजह से बर्फ पिघलने से हिमस्खलन होता है।
एक बड़े और पूरी तरह से विकसित हिमस्खलन का वजन 10 लाख टन या 1 अरब किलो तक हो सकता है। पहाड़ों से नीचे गिरने के दौरान इसकी स्पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 320 किलोमीटर प्रति घंटे तक या इससे भी ज्यादा हो सकती है। आमतौर पर हिमस्खलन सर्दियों में होता है और इसके दिसंबर से अप्रैल में होने के आसार ज्यादा रहते हैं।

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