विरोध के लिये गतिरोध

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एस. एन. वर्मा

पिछले साल बजट सत्र में लोकसभा में 129 प्रतिशत और राज्य सभा में 99 प्रतिशत काम हुआ था। पिछले साल को देखते हुये इस साल के बजट सत्र में उम्मीद थी और ज्यादा काम होगा महत्वपूर्ण बहस भी होगा। पर संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में अभी तक विरोध के लिये गतिरोध पैदा किया जा रहा है। जबकि बजट सत्र के इस हिस्से में अनुदान मांगा पर चर्चा होनी है। वित्त विघेयक भी पारित किया जाना है। विपक्ष कहता है हमें बोलने नहीं दिया जा रहा है। जबकि स्पीकर कह रहे है हम सभी को बोलने के लिये समय दे रहे है पर लोग बोलने के बजाय वेल में आ रहे है। जब सत्ता पक्ष और विपक्ष में आपसी विश्वास नहीं रहता है तब ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है।
राहुल गांधी हाल ही में ब्रिटेन में एक सभा में बोलने के लिये बुलाये गये थे। वहां उन्होंने सभा के सामने कहा हिन्दुस्तान में किसी को बोलने नहीं दिया जाता है। संसद में विरोध पक्ष खड़ा होता है तो माइक बन्द कर दिया जाता है। पुरानी परम्परा है गरीब से गरीब और अनपढ परिवार के लोग अगर परिवार में कोई खामी है भी तो बाहर नहीं बताते है। परिवार की इमेज भूखे रह कर भी ठीक बनाये रखने के लिये प्रयास करते रहते है। अभी राहुल के चचेरे भाई वरूण गांधी को विदेश न्यौता मिला था मोदी सरकार के आकलन पर बोलने के लिये उन्होंने भाग लेने से मना कर दिया। संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ है सत्य बोलो पर प्रिय सत्य बोलो अप्रिय सत्य मत बोलो। खैर सत्ता पक्ष कह रहा है राहुल अपने बयान के लिये माफी भागे पर राहुल सहित कांग्रेस पार्टी इसके लिये तैयार नहीं है। राहुल अपना पक्ष रखने के लिये स्पीकर से मिले और कह रहे है हम अपना पक्ष सार्वजनिक मंच से बतायेगे।
विपक्ष अमेरेकी शार्ट सेलर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट के सन्दर्भ में अडानी समूह के काम काज को लेकर संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रहा है। केन्द्रीय एजेन्सियों द्वारा विपक्ष दलों के नेताओं के खिलाफ चल रहे जांचोे को लेकर भी मुद्दा उठा रहा है। मांफी मांगने से आदमी की कद घटता नही बढ़ता है। विनम्रता बड़प्पन की निशानी है। जो जितनी बड़ी हस्ती होता है उसी अनुपात में उसका बड़प्पन और विनम्रता नापा जाता है। विपक्ष भी तो जनता की ही आवाज है जैसे सत्तापक्ष है। पारदर्शिता के लिये अगर अडाणी ग्र्रुप की जांच जेपीसी के करा दी जाय तो क्या परेशानी है। अगर कुछ गड़बड़ी होगी तो अडाणी ग्रुप अगर आज बच भी जाये तो कल नही बच पायेगा। मोदी सरकार में सब कुछ काबिले तारीफ चल रहा है दुनियां सराह भी रही है फिर इस मुद्दे पर जांच न कराने की जिद क्यों फिर विपक्ष अपना मुद्दा लेकर सत्तापक्ष अपना लेकर अडियल रूख अपना कर संसद में गतिरोध बनाये हुये है। फिलहाल इसके खत्म होने की कोई उम्मीद नही दिख रही है। फिर विघेयक बिना बहस के बहुमत के आधार पर पारित हो जायेगे जो लोकतन्त्र के लिहाज से दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
एक तो आम चुनाव नजदीक आता जा रहा है। निकट में कर्नाटक, मघ्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगना जैसे राज्यों में चुनाव होने है। दोनो पक्ष इन चुनावों के मद्देनजर अपनी अपनी छवि चमकाने में लगे है।
संसद में बजट सत्र के दूसरे हिस्से में राज्यसभा में 26 विघेयक और लोकसभा में नौ विघेयक भी है। लेकिन दोनो पक्ष अपने अपने मुद्दो पर डटे हुये है। चूूकि सत्तापक्ष के पास सभी सहुलियते और अधिकार होते है इसलिये संसद का सत्र चलाने के लिये सत्तापक्ष की जिम्मेदारी अहम होती है। विपक्ष तो विरोध करेगा ही इसके बिना लोकतन्त्र फलता फूलता भी नहीं है। इसलिये गतिरोध तोड़ने के लिये जल्दी राह निकालनी चाहिये। विपक्ष को भी सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिये। सत्तापक्ष और विपक्ष का सहयोग ही लोकतन्त्र को मजबूत बनाता है। दोनो अपने अपने दायरे में रहकर आगे बढ़े सारी बधाये हटती चली जायेगी। सत्तापक्ष की तारीफ इसी में है कि विपक्ष को भी बोलने पर मजबूर करते रहे। आखिर उन्हें भी क्या क्या किया। अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपने मतदाताओं को बताना पड़ता है कि उनकी लड़ाई कैसे लड़ी।

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