अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। रेलवे स्टेशन परिसर में साइकिल स्टैंड दबंग ठेकेदार की कार्यप्रणाली ने यात्रियों और उनको छोड़ने या लेने रेलवे स्टेशन परिसर तक अपने वाहन से आने वाले उनके रिश्तेदारों व शुभचिंतकों के लिए रेलवे स्टेशन परिसर तक आना किसी सजा से कम साबित नहीं हो रहा। आप गाड़ी में बैठे हों या गाड़ी पर बैठे भी हों जो नियमानुसार वाजिब है तो भी या तो आप दबंग ठेकेदार की मांगी रकम दे दें नहीं तो आपकी बेईज्जती भी होगी और जीआरपी से शिकायत की तो भी अपमान का डोज और ज्यादा ही होना है। गाड़ी स्टैंड व परिसर से दूर भी हो तो दबंग ठेकेदार के कहर से बचना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है। यही नहीं जिसका जिम्मा केवल केवल ट्रैफिक पुलिस को है वो काम भी साइकिल स्टैंड चलाने वाले ठेकेदार के गुर्गे ही अंजाम दे रहे हैं। फिर आप मोटरसाइकिल पर बैठे हो या फिर मोटरसाइकिल पकड़कर खड़े हो आप की फोटो खिंच जाएगी और चालान घर पहुंच जाएगा। चालान पहुंच जाएगा तो अलग बात आपकी बेईज्जती भी किस हद तक सारे नियम कायदों को दरकिनार कर ठेकेदार के गुर्गे आरपीएफ के संरक्षण में करते हैं कहना मुश्किल है।
पूरा वाकया उस समय स्पष्ट हुआ जब एक पत्रकार को छोड़ने दूसरे पत्रकार रेलवे स्टेशन तक गए और उसे अपनी स्कूटर से उतारा ही था कि प्रेस लिखे होने के बावजूद साइकिल साइकिल स्टैंड के ठेकेदारों ने गुर्गों ने अपनी फितरत दिखाते हुए पत्रकारों की बेजती और उनकी स्कूटी की फोटो खींचना शुरू कर दिया और 50 ₹100 मांगने लगे विरोध करने पर 2 एसआई भी मौके पर पहुंचे और साइकिल स्टैंड ठेकेदार का पक्ष लेकर उसी की भाषा बोलने लगे। जब पत्रकारों ने अपना कैमरा निकाला वर्दी धारियों को ध्यान हुआ कि मामला पत्रकार से उलझ गया है जिसके बाद अपनी करनी को छुपाने के प्रयास करते हुए आसपास एकत्र सैकड़ों की भीड़ को पहले उन्होंने तितर-बितर किया। फिर पत्रकारों को थाने चल कर बात करने की बात कही। जब पत्रकारों ने नियम कायदे कानून जानना चाहा तो अपनी जान बचाते एसआई सफाई देने लगे। यह कोई एक मामला नहीं है वहां मौजूद पेशे से अधिवक्ता ने भी पत्रकारों की बातों का समर्थन करते हुए बताया कि जबसे दिग्विजय सिंह ठेकेदार साइकिल स्टैंड का ठेका पाया है आम लोगों का जीना मुहाल कर रखा है फिर आप चाहे रेलवे परिसर में हो या चाय की दुकान पर आपसे पैसा वसूली लेगा नहीं देंगे तो पुलिस वालों का हाजिर नाजिर है। अंग्रेजी हुकूमत का परिदृश्य बाराबंकी रेलवे स्टेशन पर दिखाई दिया और अभी तक गुलाम हिंदुस्तान होने की बात भी महसूस हुई हुई कि क्या वाकई में हम आजाद हैं हमारे कुछ संविधानिक अधिकार हैं या सब जिसकी लाठी उसकी भैंस वाले हिसाब किताब पर खाकी की मर्जी पर टिका है।