अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। अखिलेश यादव जी का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक स्लोगन, विशुद्ध रूप से पसमांदा मुस्लिम विरोधी अपने लचर नेतृत्व में 4 बड़े चुनाव लगातार हार चुके अखिलेश यादव जी ने अपने 5वें चुनाव यानी आगामी 2024 के चुनाव को भी एकतरफा हारने की पूरी तैयारी, लगभग पूरी कर ली है।
यह बात ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने एक बयान की हैं उन्होंने का की इनका नया दिया हुआ स्लोगन ही ये साबित करता है कि इन्हें ना तो सवर्ण हिंदू समाज का वोट चाहिए और ना ही उप्र के 16% पसमांदा मुसलमानों का इस एक स्लोगन से ही साबित हो जाता है कि माननीय सपा सुप्रीमों जी भाजपा के कितने दबाव में हैं अपने इस एक स्लोगन से सपा सुप्रीमों ने पूरे सवर्ण हिंदू समाज को भाजपा की ओर पूरी तरह से लामबंद कर दिया, साथ ही उप्र के 16% पसमांदा मुसलमान, जोकि अबतक हर चुनाव में सपा के सबसे बड़े, भरोसेमंद और वफादार वोटर रहे थे, अपने बयानबाजी, ऐसे स्लोगन और अपने संगठन में नाममात्र हिस्सेदारी देकर, उनको भी मजबूर कर रहे हैं कि ये भी सपा के साथ छोड़, भाजपा या अन्य के साथ खड़े हो जाए ।सपा सुप्रीमों को बखूबी पता है कि मुस्लिम समाज के पिछड़े और दलित मुसलमानों ने अपने धर्म वा समाज के सियासी, मजहबी मठाधीशों / रहनुमाओं से दशकों के संघर्ष के बाद, अपनी अलग एक नई सामाजिक, राजनीतिक पहचान बनाई है यहां तक कि उनकी अपनी इस नई पहचान को मान्यता देने और कुछ सियासी हक़ हिस्सेदारी पाने के बाद, वो अपने धुर विरोधी भाजपा को भी अब वोट देने से संकोच नहीं कर रहे हैं अखिलेश यादव जी पसमांदा मुसलमानों को दशकों संघर्ष के बाद मिली नई उनकी सामाजिक, राजनीतिक और संवैधानिक पहचान को अल्पसंख्यक रूपी धार्मिक समूह के जाल में फसाकर, उनकी इस नई पहचान को खत्म करने यानी मिट्टी में मिलाने की एक सुनियोजित और कुत्सित चाल चल रहे हैं
हकीकत में देखा जाए तो आज अखिलेश यादव जी के PDA नामक शब्दजाल में यानी (P) पिछड़ा में यादव छोड़ कोई अन्य पिछड़ा खुलकर साथ नहीं, (D) यानी दलित जिसके प्रमोशन में आरक्षण जैसे मुद्दे पर, पूरे देश में सबसे बड़े विरोधी अखिलेश जी ही रहे थे और जिस सपा ने अपने गठन से लेकर आज तक किसी भी दलित को कभी MLC और पसमांदा मुसलमानों की तरह कभी किसी एक दलित को राज्यसभा तक नहीं बनाया हो, वो वर्ग कितना इनके साथ खड़ा होगा, इसका अंदाजा भी उन्हें बखूबी है…? रही बात PDA के (A) यानी अल्पसंख्यक वर्ग की, तो उप्र में 2011 की जनगणना के अनुसार, 20.27% कुल अल्पसंख्यक.. जिसमें से अकेले मुसलमान 19.33% … यानी उप्र में लगभग 1% से कम आबादी वाले सिख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध आदि धार्मिक #समूहों को लगभग 20% आबादी वाले मुसलमानों के बराबर खड़ा कर दिया… होना तो ये चाहिए कि सभी धर्मों के इस समूह को मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक कहा जाना चाहिए… लेकिन माननीय सपा सुप्रीमों उप्र से सिर्फ पसमांदा का ही नहीं, बल्कि हमारे पूरे मुस्लिम समाज के धार्मिक वजूद और मुसलमानों के वर्गीय पहचान को नकार देने या खत्म कर देने पर आमादा हैं मेरा पसमांदा समाज के सभी बौद्धिक चिंतकों, जातीय और सामाजिक संगठनों से यही गुजारिश है कि दशकों संघर्ष के बाद मिली अपनी नई सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक पहचान यानी मुस्लिम पसमांदा को नकारने वाले सपा सुप्रीमों के नए स्लोगन के भर्मजाल और साजिश में ना फसकर…. उप्र में सिर्फ उस सियासी दल को साथ खड़े होइए, जो आपको अलग मुस्लिम पसमांदा (पिछड़ा) के रूप में नई पहचान को #मान्यता देकर, आपके आबादी यानी 16% के अनुपात में आपके सियासी हक़ हिस्सेदारी की बात करे और दे भी… फिर भाजपा ही क्यों ना हो…? बगैर किसी संकोच और डर, सिर्फ उस दल का साथ खुलकर दीजिए