धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है सोनभद्र : रमेश

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अवधनामा संवाददाता

सोनभद्र के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रारंभ : उपेंद्र जी

काशी प्रांत के सभी जिलों के स्वयं सेवकों का प्रमुख स्थलों का भ्रमण

सोनभद्र/ब्यूरो जिले की आध्यात्मिक ऊर्जा , धार्मिक विशिष्टता और सांस्कृतिक वैभव को नजदीक से देखने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दल ने सोनभद्र का भ्रमण किया । काशी प्रांत के 27 जिलों के विभाग व जिला प्रचारकों ने पंचमुखी महादेव, अमिला धाम व गुरु मत्स्येंद्रनाथ की तपःस्थली मच्छरमारा का भ्रमण किया । काशी प्रांत के प्रचारक रमेश जी के नेतृत्व में कुल 60 स्वयंसेवकों ने दो दिवसीय भ्रमण के दौरान सोनांचल की प्राकृतिक सुषमा , ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत का अवलोकन किया । धनरौल बंधे के निर्माण में संघ के चतुर्थ सर संघ चालक रज्जू भईया के पिता जी ने मुख्य अभियंता के रूप में भूमिका निभाई थी, भोलानाथ मिश्र ने इस गुणवत्तापूर्ण निर्माण की भूरि भूरि प्रसंशा की , उन्होंने बताया कि सिर्फ सोनभद्र ही नहीं मिर्जापुर की सिंचाई व्यवस्था का था मुख्य स्रोत है।अमिला धाम में स्वयंसेवकों और उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए रमेश जी ने कहा कि विंध्य पर्वत की कैमूर पर्वत श्रृंखला आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत है, यही वजह है कि ऋषि मुनियों सहित कई प्रमुख संतों ने इस स्थान को साधना स्थल बनाया । बौद्धिक सम्बोधन करते हुए विजय शंकर चतुर्वेदी ने अघोर पंथ के साधना स्थल अमिला धाम शक्तिपीठ और गुरु गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ के साधना स्थल मच्छरमारा के बारे में विस्तार से जानकारी दी , उन्होंने बताया कि विंध्य पर्वत को जीवित पर्वत के रूप में जाना जाता है। सोनभद्र के विभाग प्रचारक उपेंद्र जी ने बताया कि सोनभद्र के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य किया जाएगा । प्रतापगढ़ के विभाग प्रचारक प्रवेश कुमार ने कहा कि कि भारत वैभव की श्रीवृद्धि के लिए प्रत्येक जिलों में बिखरी विरासतों को सहेजना होगा।
स्वयंसेवकों के दल ने पंचमुखी पहाड़ी पर भगवान भोलेनाथ का विधिवत पूजन किया, आचार्य लक्ष्मण दुबे और बृजेश शुक्ला ने मंत्रोच्चार के साथ मुख्य जजमान रमेश जी को संकल्प दिलाकर जगतकल्याण के लिए पूजन अर्चन कराया ।
चुर्क स्थित एक अतिथि गृह में एक बैठक भी आयोजित की गयी जिसे प्रांत प्रचारक रमेश जी ने संबोधित किया । भ्रमणदल में सह प्रांत प्रचारक मुनीश जी , प्रचारक प्रमुख रामचंद्र की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही ।

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