ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के कारण शरीर को कई बदलावों से गुजरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि धरती पर लौटने पर शरीर को गुरुत्वाकर्षण के अनुसार ढलने में कठिनाई होती है जिससे चलना भी मुश्किल हो जाता है। हालांकि यह स्थिति अस्थायी होती है।
लखनऊ। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष यात्रा पूरी करने के बाद अपने अनुभव सोशल मीडिया पर साझा किए। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में रहना शरीर के लिए एक बिल्कुल नया अनुभव होता है, क्योंकि इंसान का शरीर हमेशा गुरुत्वाकर्षण वाले माहौल में जीता है। अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में शरीर को ढलने के लिए कई बदलाव करने पड़ते हैं।
शुभांशु ने लिखा, हम गुरुत्वाकर्षण में बड़े होते हैं, शरीर को इसके अलावा कुछ पता नहीं होता। जब हम अंतरिक्ष में जाते हैं तो शरीर कई तरीकों से बदलता है।’
उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में रहते हुए शरीर के तरल पदार्थ कम हो जाते हैं। दिल की धड़कन धीमी हो जाती है क्योंकि उसे खून को सिर तक पहुंचाने के लिए गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ मेहनत नहीं करनी पड़ती। इतना ही नहीं, संतुलन बनाए रखने वाली प्रणाली यानी वेस्टिबुलर सेंस को भी नए वातावरण में खुद को ढालना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह है कि शरीर जल्दी ही इन बदलावों को अपना लेता है और अंतरिक्ष यात्री सामान्य महसूस करने लगते हैं। लेकिन असली चुनौती तब आती है जब मिशन पूरा होने के बाद हम वापस धरती पर लौटते हैं।
शुभांशु ने लिखा, जब हम पृथ्वी पर लौटते हैं, तो शरीर को फिर से गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से ढलना पड़ता है। इस समय सीधा चलना भी चुनौती बन जाता है। रिएक्शन टाइम कम हो जाता है और संतुलन बिगड़ जाता है। हालांकि यह सब अस्थायी होता है और कुछ समय में शरीर सामान्य हो जाता है।’
उन्होंने यह भी कहा कि इन बदलावों को समझना बेहद जरूरी है ताकि लंबे समय तक चलने वाले अंतरिक्ष अभियानों के लिए वैज्ञानिक समाधान खोजे जा सकें। शुभांशु ने पोस्ट के अंत में लिखा, यह मैं स्प्लैशडाउन के तुरंत बाद हूं। ऐसा लग रहा है जैसे अंतरिक्ष से लौटकर फिर से चलना सीख रहा हूं। कहा, अंतरिक्ष यात्रियों को तकनीकी चुनौतियों के साथ-साथ शारीरिक बदलावों से भी गुजरना पड़ता है।